Repatriation is often biggest challenge and can take years, with lack of international coordination to verify victims' identities
-नीता भल्ला
सिलीगुड़ी, 15 फरवरी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - दक्षिण एशिया के धर्मार्थ संगठन मानव तस्करी से बचाये गये ऐसे पीडि़तों की स्वदेश वापसी में तेजी लाने के लिए सॉफ्टवेयर तैयार कर रहे हैं, जिन्हें नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों से अवैध रूप से लाया गया और भारत में उनसे जबरन गुलामी करवाई गयी।
संयुक्त राष्ट्र नशीली दवाओं और अपराध कार्यालय (यूएनओडीसी) के अनुसार विश्व में पूर्वी एशिया के बाद, दक्षिण एशिया में मानव तस्करी सबसे तेजी से बढ़ रही है और यह मानव तस्करी का दूसरा बड़ा क्षेत्र है, जिसका केंद्र भारत है।
पीडि़तों के पूर्नवास पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं धर्मार्थ संगठनों का कहना है कि उनके लिये अक्सर प्रर्त्यपण सबसे बड़ी चुनौती होती है और कुछ मामलों में तो वर्षों लग सकते है।
उन्होंने कहा कि पीडि़त की पहचान सत्यापित करने और उनके मूल स्थान का पता लगाने में देशों के बीच प्रभावी अंतर्राष्ट्रीय समन्वय की कमि है। उनके मूल स्थान अमूमन दूर-दराज के, गरीब, आंतरिक क्षेत्र होते है, जहां दूर संचार और बुनियादी ढ़ांचा बहुत कम उपलब्ध होता है।
विज्ञापन एजेंसी प्लान इंडिया और बांग्लादेश का सामाजिक उद्यम ‘डीनेट’ द्वारा तैयार किया गया, लापता बच्चा चेतावनी (एमसीए)- एक डेटाबेस कार्यक्रम है, जिसमें नाम, फोटो और मूल स्थान सहित पीडि़त का डेटा है, जिसे दक्षिण एशियाई देशों के बीच साझा किया जा सकता है।
प्लान इंडिया के कार्यक्रम कार्यान्वयन निदेशक, मोहम्मद आसिफ ने शनिवार को कहा, "हमारे समक्ष ऐसे मामले आये, जिनमें व्यक्ति को स्वदेश वापस भेजने में तीन साल लग गये और इस दौरान उन्हें आश्रय घरों में रहना पड़ा।"
"इस तकनीक का परीक्षण के बाद, हमने पाया कि जानकारी के आदान प्रदान और व्यक्ति के घर का पता तुरंत मिल जाने से स्वदेश वापसी अधिक तेजी से की जा सकती है और एजेंसियां जल्दी से उन्हें अपने परिवार से मिलाने की कोशिश कर सकती हैं।"
दक्षिण एशिया में तस्करी की जा रहे लोगों की संख्या के बारे में कोई सटीक आंकड़े हैं, लेकिन कार्यकर्ताओं का कहना है कि गरीब पड़ोसी देश नेपाल और बांग्लादेश से हर साल अधिकतर हजारों महिलाओं और बच्चों की तस्करी कर भारत लाया जाता है।
अधिकतर महिलाओं को जबरन शादी या बंधुआ मजदूर के रूप में मध्यम वर्गीय घरों में, छोटी दुकानों और होटलों में काम करने के लिये बेच दिया है या वेश्यालयों में भेज दिया जाता है, जहां उनके साथ बार बार दुष्कर्म होता है।
भारत, बांग्लादेश और नेपाल के दस धर्मार्थ संगठनों द्वारा संचालित की जा रही एमसीए, बचाये गये पीडि़त की विस्तृत जानकारी प्रणाली में डालेगी और उस पीडि़त के मूल देश की एजेंसियों को तुरंत सतर्क किया जायेगा।
सिलीगुड़ी में मानव तस्करी रोधी सम्मेलन से अलग श्री आसिफ ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया कि एक वर्ष की यह पाइलट योजना जनवरी में शुरू हुई थी और 2016 के अंत में इसका आंकलन किया जाएगा।
उन्होंने कहा, "अगर हम इसे अधिक कुशल प्रणाली के रूप में प्रदर्शित करने में सफल होते है, तो तीन देशों की सरकारें इसे अपना सकती है और अंततः पूरा क्षेत्र। इससे सुरक्षित और तेजी से स्वदेश वापसी संभव होगी।"
"अगर इस चेतावनी प्रणाली को अपनाया जाता है और जब तस्करों को यह पता चलेगा कि यह जानकारी सीमाओं के पार देशों के बीच साझा की जा रही है तो उन पर दबाव पडेगा और महिलाओं तथा बच्चों के खिलाफ ऐसे अपराध करने वालों के लिये भी यह कार्य आसान नही होगा।"
(रिपोर्टिंग- नीता भल्ला, संपादन- रोस रसेल; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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अनुवादक- मनीषा खन्ना
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