मुंबई, 17 फरवरी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) – मजदूरों और कार्यकर्ताओं के विरोध के बाद पंजाब पुलिस यह जांच कर रही है कि दूसरे प्रदेशों से आने वाले मजदूरों और उनके बच्चों को क्या एक ईंट भट्ठा मालिक ने ऋण के बदले बंधक बना कर रखा, हालांकि प्रारंभिक जांच में पता चला कि वहां श्रम कानूनों का कोई उल्लंघन नही हुआ।
कार्यकर्ताओं और अन्य मजदूरों की शिकायत के बाद इस सप्ताह पंजाब के बठिंडा जिले से वयस्क श्रमिकों और करीबन बारह बच्चों सहित आठ परिवारों के चालीस लोगों को ईंट भट्ठा छोड़ने की अनुमति दी गई। कार्यकर्ताओं और मजदूरों का कहना था कि मालिक ने उनपर पैसा बकाया होने की बात कहकर उन्हें उनकी मर्जी के खिलाफ वहां रखा हुआ था।
कार्यकर्ताओं ने कहा कि एक महिला गर्भवती थी और सबसे छोटा बच्चा कुछ ही महीने का था।
पुलिस उपायुक्त बसंत गर्ग ने कहा कि लगता है कि समस्या श्रमिकों के बकाया वेतन की है, लेकिन
तीन बार पूछताछ करने के बाद भी पुलिस को "बंधुआ मजदूरी का कोई सबूत नहीं मिला।"
उन्होंने कहा, "क्या वहां किसी प्रकार का उल्लंघन हो रहा था यह जांचने के लिये हम अब ईंट भट्ठा के रिकॉर्ड की जांच कर रहे हैं और आगे की कार्रवाई उसी के आधार पर की जायेगी।"
कार्यकर्ताओं ने निराशा व्यक्त की और कहा कि अधिकारी ऋण बंधक की परिभाषा समझ नही पाये है।
एक स्वयंसेवक और वकील गंगाम्बिका शेखर ने कहा कि पिछले साल अक्टूबर में मजदूरों को पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश से 5000 से 10,000 रुपए का अग्रिम भुगतान कर बठिंडा लाया गया था। उन्हें क्षेत्र में दौरे के दौरान इस मामले का पता चला।
मजदूर बुनियादी सुविधाओं के बगैर प्रतिदिन 14 से 16 घंटे काम करते थे और उन्हें उनकी पूरी मजदूरी के बजाय केवल गुजारे भर के लिये पैसा दिया जाता था।
शेखर ने कहा, "यह स्पष्ट रूप से बंधुआ मजदूरी का मामला है, लेकिन पुलिस और जिले के अधिकारी इसे स्वीकार नही कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि बंधुआ मजदूरों को जंजीरों से बांध कर रखा जाता है। ऋण बंधक की अवधारणा से वे अभी भी अपरिचित है, इसलिये वे इससे इनकार कर रहे हैं।"
2014 के वैश्विक गुलामी सूचकांक के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 36 लाख लोगों को ग़ुलाम बना कर वेश्यालयों में भेजा जाता है, जबरन मजदूरी करवायी जाती है, ऋण बंधक बनाया जाता है या वे गुलामी में ही पैदा होते है।
लगभग आधे-16 लाख- गुलाम भारत में हैं। गरीब, ग्रामीण क्षेत्रों से कईंयों को अच्छी नौकरी या शादी का लालच देकर लाया जाता है, लेकिन बाद में उन्हें घरेलू काम, वेश्यावृत्ति, या ईंट भट्ठा अथवा कपड़ा उद्योग में काम करने के लिये बेच दिया जाता है। इनमें से अधिकतर को वेतन नही दिया जाता या ऋण बंधक के रूप में रखा जाता है।
स्वयंसेवकों और अन्य समूहों के कार्यकर्ताओं ने पिछले सप्ताह बठिंडा में तीन दिन का विरोध प्रदर्शन किया। बठिंडा में करीबन 200 ईंट भट्ठें है और प्रत्येक भट्ठें में लगभग 200 मजदूर काम करते है।
शेखर ने कहा कि इस सप्ताह मजदूरों और उनके बच्चों को उनकी मजदूरी देकर वापस उनके गृह नगर भेज दिया गया और अब पुलिस जांच के परिणाम का इंतजार है।
उन्होंने कहा, "सबूत देने के बावजूद अधिकारी कह रहे है कि वहां बंधुआ मजदूरी नही कराई जाती थी।
यह कर्मचारियों के खिलाफ उस मालिक के शब्द है, जो शायद ही उन्हें, कर्मचारी मानता हो।"
(रिपोर्टिंग-रीना चंद्रन, संपादन-एलिसा तांग। कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। और समाचारों के लिये देखें http://news.trust.org)
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