मुंबई, 24 फरवरी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - एक पायलट अध्ययन से पता चला है कि भारतीय शास्त्रीय नृत्य मानव तस्करी और यौन हिंसा के पीड़ितों के इलाज में काफी कारगर होता है। नृत्य से उनके दर्दनाक अनुभव को दूर करने और उनका आत्मविश्वास वापस लाने में मदद मिलती है।
कोलकाता और मुंबई में 50 महिलाओं पर किये गये छह महीने के अध्ययन में पाया गया कि पारंपरिक परामर्श और अन्य पुनर्वास प्रयासों के साथ नृत्य चिकित्सा से उनकी चिंता, अवसाद, क्रोध और सदमे के बाद के तनाव को कम करने में मदद मिली।
यह अध्ययन करने वाली धर्मार्थ संस्था-‘कोलकाता संवेद’ की संस्थापक और निदेशक सोहीनी चक्रवर्ती ने कहा, "तस्करी और यौन हिंसा के पीड़ितों के पुनर्वास में अक्सर उनके शरीर पर पड़े प्रभाव को अनदेखा किया जाता है।"
उन्होंने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "नृत्य का संबंध शरीर से होता है और कुछ हद तक महिलाएं इन नृत्य के प्रकारों से परिचित होती हैं, इसलिये इसके माध्यम से दर्दनाक अनुभव से उभरने में हम उनकी मदद कर सकते है और उनकी सकारात्मक छवि बना सकते है।"
महिला अधिकार समूहों का कहना है कि आमतौर पर भारत में पीड़ितों का पर्याप्त और सुसंगत पुनर्वास नही हो पाता है, क्योंकि यहां की संस्कृति में महिलाओं को बोलने या परामर्श लेने के लिए प्रोत्साहित नही किया जाता है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार देश में अभी भी लिंग आधारित हिंसा की उच्च दर है। 2014 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के 3,30,000 से अधिक मामलें दर्ज किये गये है।
मानव तस्करी के पीडि़तों के स्वास्थ्य पर पिछले वर्ष किये गये सबसे बड़े सर्वेक्षण में पाया गया कि दक्षिण पूर्व एशिया के पीडि़त अधिकाधिक दुर्व्यवहार और गंभीर शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे।
1966 में स्थापित ‘अमरीकी नृत्य चिकित्सा संघ’ जैसी संस्थाओं के प्रयासों की वजह से पिछले कुछ वर्षों में नृत्य को चिकित्सा के रूप में अपनाने की धारणा तेजी से बढ़ी है। अध्ययन दर्शाते हैं कि नृत्य से व्यक्ति की भावनात्मक, संज्ञानात्मक, शारीरिक और समाज कल्याण की भावनाएं बढ़ती है।
कथक के ऊर्जावान ततकार का हवाला देते हुए, चक्रवर्ती ने कहा कि भारतीय नृत्य के
विभिन्न प्रकार उपचार के लिए विशिष्ट रूप से अनुकूल होते है।
उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के कथक-नृत्य से क्रोध शांत करने में मदद मिलती है, जबकि तमिलनाडु के भरतनाट्यम नृत्य की हस्त मुद्राओं और दृष्टि भेदों से कई भावनाओं को प्रदर्शित किया जा सकता है। लोक नृत्य से भी लगाव की भावना बढ़ती है।
चक्रवर्ती ने कहा कि वैज्ञानिक पद्धति से नृत्य चिकित्सा की "क्षमता और प्रभाव बताने" तथा पुनर्वास के स्तर में सुधार के लिये यह अध्ययन आवश्यक था, ताकि तस्करी और यौन हिंसा के पीडि़तों के लिये आश्रय घरों में इस विकल्प को बढ़ावा दिया जा सके।
अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. उपाली दासगुप्ता ने कहा कि ‘कोलकाता संवेद’ का नृत्य चिकित्सा मॉड्यूल भारतीय परिपेक्ष के लिये विशेष रूप से उपयुक्त है।
उन्होंने कहा, "अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में संकोच करने वाली इन महिलाओं के लिये यह चिकित्सा न तो आलोचनात्मक है और ना ही वर्गीकृत। हम पहले से ही जानते थे कि नृत्य का चिकित्सीय प्रभाव होता है, लेकिन अब हमें इसके पुख्ता प्रमाण मिल गये हैं कि यह वास्तव में कारगर है।"
(रिपोर्टिंग-रीना चंद्रन, संपादन-केटी गुवेन। कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। और समाचारों के लिये देखें http://news.trust.org)
अनुवाद- मनीषा खन्ना
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