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ईंट भट्ठों में काम करने वाले बंधुआ मजदूर अपने अधिकारों को समझ रहे हैं

by रीना चंद्रन | @rinachandran | Thomson Reuters Foundation
Tuesday, 22 March 2016 01:00 GMT

Labourers shape mud bricks as they work at a kiln in Karjat, India, March 10, 2016. Thousands of brick kiln workers in India's western Maharashtra state are learning from activists that they have the right to a minimum wage, basic amenities and fair treatment - but remain in debt bondage to owners who deny them these rights with impunity. REUTERS/Danish Siddiqui

Image Caption and Rights Information

करजत, 22 मार्च (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) – कार्यकर्ता पश्चिमी महाराष्‍ट्र के ईंट भट्ठों में काम कर रहे हजारों मजदूरों को न्‍यूनतम वेतन, मूलभूत सुविधाओं और अच्‍छे व्‍यवहार के बारे में उनके अधिकारों की जानकारी दे रहे हैं। लेकिन इन ऋण बंधकों को उनके मालिक यह अधिकार नहीं देते हैं और न ही उन्‍हें मुक्‍त करते हैं।

  कार्यकर्ताओं का कहना है कि इनमें से ज्‍यादातर मजदूर भूमिहीन आदिवासी जनजाति के है, जिन्‍हें अपना ऋण चुकाने के लिये छह माह तक ईंट भट्ठों में जबरन काम करना पड़ता है। उनके पूरे परिवार को बहुत ही कम मेहनताने या बगैर मजूरी, बिना नागा और मूलभूत सुविधाओं के अभाव में प्रतिदिन 14 घंटे काम करना पड़ता है। उन्‍हें यह भी नहीं पता होता है कि उन पर कितना कर्ज बकाया है।

  मुंबई के नजदीक करजत में सामुदायिक संस्‍था- दिशा केंद्र के निदेशक अशोक जंगाले ने कहा, "सरकार और पुलिस को लगता है कि बंधुआ मजदूर को जंजीरों से बांधा जाता है या कमरे में बंद रखा जाता है। वे इन मजदूरों को बंधुआ नहीं मानते हैं। 

  जंगाले ने कहा, "हम मजदूरों को बताते है कि उन्‍हें वेतन पाने और छुट्टी लेने तथा अपने बच्‍चों को स्‍कूल भेजने का अधिकार है, उनके साथ मार-पीट या दुर्व्‍यवहार नहीं किया जा सकता है।"   

  ऑस्‍ट्रेलिया के वॉक फ्री फाउंडेशन द्वारा संपादित वैश्विक गुलामी सूचकांक 2015 के अनुसार विश्‍व के 3 करोड़ साठ लाख गुलामों में से लगभग आधे भारत में हैं।

   अधिकतर भारतीयों को उनके द्वारा लिये गये कर्ज या उनका पैतृक ऋण चुकाने के लिये खेतों, वेश्‍यालयों और छोटे कारोबार में काम करने के लिये बरगलाया जाता है। आमतौर पर निर्माण उद्योग विशेष रूप से ईंट बनाने या पत्‍थर खदानों जैसे अनियमित क्षेत्रों में इनसे काम करवाया जाता है।

  बंधुआ मजदूर उन्मूलन कार्यक्रम के लिए एक्शन एड के राष्ट्रीय समन्वयक चंदन कुमार ने कहा, "ज्यादातर भट्ठें अवैध हैं, इसलिए उन पर नज़र रखना कठिन होता है और वे कोई रिकॉर्ड भी नहीं रखते हैं।"

      उऩ्होंने कहा, “इस उद्योग में कई लोगों को अवैध तरीके से काम पर लगाया जाता है और बंधुआ मजदूरी करवाई जाती है। लेकिन यह एक फायदेमंद कारोबार है और आमतौर पर मालिकों के संबंध राजनीतिकों से होते हैं, इसलिए अधिकारी इस मामले में आंखे मूंद लेते हैं।”

      देश के हजारों ईँट-भट्ठों में कितने लोग हाथ से ईंटे बनाने और पकाने का काम करते हैं, इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है।

      अधिकतर मजदूर अशिक्षित होते हैं और वे उन्हें किए गए भुगतान का कोई रिकॉर्ड नहीं रखते हैं और उन्हें यह भी नहीं पता होता है कि उनका कर्ज कब समाप्त होगा। कुछ लोग मूल ऋण के अलावा त्यौहारों और शादियों के लिए अतिरिक्त ऋण लेते हैं।

      विज्ञान और पर्यावरण केंद्र के आंकड़ों के अनुसार कम से कम एक करोड़ लोग ईंट-भट्ठों में काम करते हैं, जो अधिकतर शहरों और कस्बों की सीमा पर होते हैं।

      मुंबई से करीब 60 किलोमीटर दूर करजत के वंजारवाड़ी गांव के मुख्य रोड़ पर स्थित एक ईंट-भट्ठे पर गणेश मुकुंद ने बताया कि उसने मालिक से करीबन 50,000 रुपये उधार लिए थे। उसे यह नहीं पता है कि उसे अभी और कितना कर्ज चुकाना है। उसने कहा कि वह पहले जिस ईंट-भट्ठे में काम करता था, वहां एक मजदूर की बुरी तरह से पि‍टाई की गई थी, जिसमें उसका हाथ भी टूट गया था।

      जंगाले ने कहा, “जब हम इस प्रकार के मामलों के बारे में सुनते हैं तो हम उसकी जांच करते हैं और पुलिस थाने में शिकायत करते हैं।” उन्होंने कहा कि एक साल में ऐसे कम से कम पांच मामले होते हैं और ऐसे भी मामले सामने आए हैं, जिसमें मजदूरों की हत्या की गई है।

      उन्होंने कहा, “हालांकि पुलिस अकसर पैसों का मामला सुलझाने के लिए मजदूरों पर दबाव डालती है, लेकिन हम उन्हें डटे रहने को कहते हैं।”

      राज्य सरकार ने कई मजदूरों की मौत के बाद बंधुआ मजदूरी पर रोक लगाने के लिए 2012 में एक सतर्कता समिति गठित की। राज्‍य के श्रम विभाग के प्रवक्‍ता ने कहा कि वह तथाकथित बंधुआ मजदूरी के मामलों पर निगाह रखे हुये है।

     इस महिने के शुरूआत में एक बड़े अभियान के तहत तमिलनाडु में 564 ईंट भट्ठा कर्मियों को बचाया गया।

   करजत के फंसावाड़ी गांव में एक ईंट भट्ठे पर अपना काम रोक कर रामाबाई ने दिशा केंद्र के एक अधिकारी को एक छोटी सी लॉग बुक दिखाई। इसमें काम शुरू होने के समय यानि दिसम्‍बर से उसके परिवार वालों ने प्रतिदिन कितनी ईंटे बनाई हैं, इसका ब्यौरा लिखा गया है।

      रामाबाई ने तीन वर्ष पहले अपनी बेटी की शादी के लिए 60,000 रुपये और इसके अलावा त्यौहारों के लिए 15,000 रुपये उधार पर लिए थे, जिसका भुगतान करने के लिए वह ईंट-भट्ठे पर काम करने के लिए राज़ी हुई थी।

      वह, उसका पति और उसके दो बेटे दिसंबर से मई के दौरान तीन वर्ष से ईंट-भट्ठे पर काम कर रहे हैं। वे ईंट-भट्ठा मालिक के द्वारा तय 1,000 ईंटे रोज़ाना बनाते हैं। उन्हें नहीं पता कि और कितने समय तक उन्हें वहां काम करना पड़ेगा।

      जंगाले ने कहा, “हमने उसके शिक्षित बेटे को लॉग भरने और मालिक के खाते को जांचने के लिए प्रशिक्षित किया है।”

      “हमने उन्हें बताया कि वे त्यौहारों और विवाह के लिए बहुत ज्यादा पैसा उधार न लें। उन्हें पता होना चाहिए कि वे किस जाल में फंस रहे हैं। जब वे अपनी उधारी चुका दें तो उन्हें काम छोड़ने का पूरा अधिकार है।”

(रिपोर्टिंग रीना चंद्रन, संपादन-टीम पीयर्स। कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। और समाचारों के लिये देखें http://news.trust.org)

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