- रीना चंद्रन
मुंबई, 4 मई (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) – एक स्थानीय धर्मार्थ संस्था के अनुसार मुंबई की सड़कों पर रहने वाले बच्चों में से आधी लड़कियां हैं, जिनकी संख्या हाल ही के दिनों में बढ़ी है। संस्था का कहना है कि सड़कों पर रहने वाली इन लड़कियों की तस्करी और शारीरिक शोषण का खतरा अधिक होता है।
शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली मुंबई की एक संस्था-प्रथम ने ट्रैफिक सिग्नलों, रेल स्टेशनों और पर्यटक स्थलों पर 18 वर्ष या उससे कम उम्र के 651 बच्चों का सर्वेक्षण किया और पाया कि उनमें से 47 प्रतिशत लड़कियां थीं।
सर्वेक्षण में पाया गया कि एक तिहाई से अधिक बच्चे पांच वर्ष से कम आयु के थे, जबकि लगभग 60 प्रतिशत छह से 14 साल के थे।
प्रथम काउंसिल फॉर वलनरेबल चिल्ड्रन की निदेशक फरीदा लाम्बे ने कहा, "हमने पाया कि लगभग समान संख्या में लड़के और लड़कियां थीं, जो बड़े ही आश्चर्य की बात थी।"
उन्होंने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "इससे उनकी सुरक्षा के बारे में चिंता बढ़ जाती है, क्योंकि ये लड़कियां तस्करी, शोषण और बाल विवाह जैसे अपराधों की आसान शिकार होती हैं।"
2013 में धर्मार्थ संस्था- एक्शन एड और टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान द्वारा कराये गये अध्ययन में पाया गया कि मुंबई में 37,000 से अधिक सड़कों पर रहने वाले बच्चे थे, जिनमें से 70 प्रतिशत लड़के थे।
सेव द चिल्ड्रन के 2011 के सर्वेक्षण के अनुसार दिल्ली में करीबन 51,000 बच्चे सड़कों पर रहते है और उनमें से लगभग 10,000 लड़कियां हैं।
माना जाता है कि दुनियाभर में करोड़ों बच्चे सड़कों पर रहने को मजबूर हैं। कुछ का अनुमान है कि यह संख्या 10 करोड़ तक हो सकती है।
देशभर और पड़ोसी देश नेपाल तथा बांग्लादेश से आने वाले लोग बेहतर आर्थिक अवसरों के लिये देश के वित्तीय केंद्र- मुंबई की ओर आकर्षित होते हैं।
प्रथम के सर्वेक्षण में अधिकतर बच्चों ने बताया कि वे अपने माता-पिता के साथ रहते हैं, जबकि केवल 10 प्रतिशत बच्चे अकेले रह रहे थे। उनमें से आधे से अधिक स्कूल नहीं जाते थे।
सर्वेक्षण में बताया गया कि करीबन आधे बच्चे सड़कों पर भीख मांगते और लगभग आधे बच्चे मामूली वस्तुएं बेचते हुये पाये गये थे। कुछ प्रतिशत बच्चों को नशीले पदार्थों की लत थी।
लाम्बे ने कहा कि विशेष तौर पर अपने परिवारों के साथ सड़को पर रहने वाले बच्चों के लिये बचाव हमेशा व्यवहारिक विकल्प नहीं होता है। उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों में धर्मार्थ संस्थाएं उनके परिजनों को परामर्श देती हैं और बच्चों को रात्रि विद्यालयों दाखिल कराने या अन्य प्रशिक्षण दिलाने का प्रयास करती हैं।
उन्होंने कहा कि अकेले या मित्रों के साथ रहने वाले बच्चों पर हमेशा खतरा मंडराता रहता है, क्योंकि उनकी तस्करी और शोषण अधिक आसानी से किया जा सकता है।
संयुक्त राष्ट्र नशीली दवाएं और अपराध कार्यालय के अनुसार दक्षिण एशिया में मानव तस्करी की घटनाएं तेजी से बढ़ रही है और विश्व में पूर्व एशिया के बाद यह मानव तस्करी का दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है।
लाम्बे का कहना है कि देश में दशकों के सबसे भीषण सूखे के कारण लाखों लोगों के बेघर हो जाने से भी कई बच्चे सड़कों पर आ गये हैं।
नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी ने प्रधानमंत्री से राहत उपायों में बच्चों को प्राथमिकता देने का आग्रह किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनकी तस्करी ना हो या उनका जबरन विवाह न करवाया जाये अथवा उन्हें बंधुआ मजदूर न बनाया जाये।
सरकार ने ज्यादातर राज्यों में मानव तस्करी रोधी और नाबालिग ईकाइयां स्थापित की हैं।
मुंबई पुलिस के सहायक आयुक्त राजदूत रूपवते ने बताया, "पिछले वर्षों में सड़कों पर रहने वाले बच्चों की संख्या कम हुई है, लेकिन बच्चों के भीख मांगने और काम करने की समस्या अभी भी बरकरार है।"
उन्होंने कहा, "हम बच्चों के पुर्नवास की कोशिश करते हैं और तस्करी से बचाये गये बच्चों को गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर वापस उनके परिजनों से मिलाने का प्रयास करते हैं।"
(रिपोर्टिंग- रीना चंद्रन। संपादन – अलीसा तांग। कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। और समाचारों के लिये देखें http://news.trust.org)
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