×

Our award-winning reporting has moved

Context provides news and analysis on three of the world’s most critical issues:

climate change, the impact of technology on society, and inclusive economies.

भारत और कम्बो डिया के कारखानों में श्रमिकों की स्थिति में सुधार के लिये कार्य कर रहे हैं- एच एंड एम

by Nita Bhalla | @nitabhalla | Thomson Reuters Foundation
Saturday, 21 May 2016 21:25 GMT

-    नीता भल्‍ला 

नई दिल्ली, 22 मई (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) – स्वीडेन की फैशन कंपनी हेन्‍स एंड मॉरिट्ज (एच एंड एम) का कहना है कि एक अध्‍ययन में भारत और कंबोडिया में उनके आपूर्तिकर्ता कपड़ा कारखानों में नियमों के उल्‍लंघन के बारे में पता चलने के बाद से वह श्रमिकों की स्थिति में सुधार के लिये श्रमिक संघों, सरकार और संयुक्त राष्ट्र के साथ सहयोग कर रही है।

एशिया फ्लोर वेज एलायंस (एएफडब्‍ल्‍यूए) के अध्ययन में पाया गया कि दिल्ली और नोम पेन्ह के कारखानों में एच एंड एम के लिए कपड़ों की सिलाई करने वाले श्रमिक कम मजदूरी, निर्धारित अवधि अनुबंध, अतिरिक्‍त समय तक जबरन काम करने और गर्भवती होने पर नौकरी से निकाल दिये जाने जैसी समस्याओं का सामना करते हैं।

श्रमिक संघों और श्रम अधिकार समूहों के गठबंधन- एएफडब्‍ल्‍यूए ने पश्चिम की उच्‍च श्रेणी की खुदरा कंपनी पर आरोप लगाया है कि वह अपनी आपूर्ति श्रृंखला में सुधार के वादे को पूरा करने में विफल रही है।

एच एंड एम के एक अधिकारी ने शनिवार को थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया कि यह फैशन कंपनी कई वर्षों से परिधान कर्मियों के जीवन में सुधार लाने के लिए सक्रिय रूप से कार्य कर रही है।

एच एंड एम के प्रेस और संचार विभाग की थेरेस संडबर्ग ने कहा, "रिपोर्ट में महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाया गया है और हम अपने स्‍त्रोत बाजार के कपड़ा उद्योग में काम कर रहे लोगों के लिए लंबी अवधि के सकारात्मक विकास कार्य में योगदान के लिए समर्पित हैं।"

उन्‍होंने कहा, "रिपोर्ट में उठाये गये मुद्दे संपूर्ण उद्योग जगत की समस्याएं हैं। इनका निवारण करना अकेली कंपनी के लिये कठिन है और हमारा दृढ़ विश्वास है कि इसके लिये सहयोग महत्‍वपूर्ण है।"

उन्‍होंने एक ईमेल बयान में बताया कि समस्‍या के समाधान के लिए एच एंड एम ने अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, स्वीडेन की अंतर्राष्ट्रीय विकास सहयोग एजेंसी और वैश्विक तथा स्थानीय श्रमिक संघों के साथ साझेदारी की है।

फैशन उद्योग पर विशेष रूप से तीन साल पहले, बांग्लादेश में राना प्लाजा परिसर में हु्ई दुर्घटना के बाद से कारखानों की स्थिति और मजदूरों के अधिकारों में सुधार के लिए दबाव बढ़ रहा है। राना प्‍लाजा दुर्घटना में 1,136 परिधान कर्मियों की मौत हो गई थी।

"जबरन ओवरटाइम, गर्भावस्था में बर्खास्त"

अध्ययन में अगस्त से अक्टूबर 2015 के दौरान भारत के पांच कारखानों के 50 कामगारों और कंबोडिया के 12 कारखानों के 201 कर्मियों का सर्वेक्षण किया गया।

इसमें पाया गया कि सभी कारखानों के मालिक ओवरटाइम की अपेक्षा करते हैं। कम्बोडियाई कर्मियों ने बताया कि उन्‍हें रोजाना दो घंटे अतिरिक्‍त काम करना पड़ता है, जबकि भारतीय कामगार एक दिन में कम से कम नौ से 17 घंटे काम करते हैं।

भारतीय कारखानों में श्रमिकों की स्थिति का जिक्र करते हुये इसमें कहा गया कि, "उत्पादन लक्ष्य को पूरा करने के लिए श्रमिकों को नियमित रूप से देर रात दो बजे तक काम करना पड़ता है और उसके बाद सुबह नौ बजे वे फिर काम पर आ जाते हैं।"

अध्‍ययन में बताया गया कि, "निर्वाह मजदूरी मानकों से कम न्यूनतम मजदूरी को वित्‍तीय जरूरत के रूप में देखा जा सकता है, जिसके कारण श्रमिक मर्जी के बिना या अतिरिक्त समय तक जबरन काम करने को मजबूर होते हैं।"

अध्ययन में यह भी पाया गया कि सर्वेक्षण किये गये कम्‍बोडिया के 12 कारखानों में से नौ में और सभी भारतीय कारखानों में निर्धारित अवधि अनुबंध किये जा रहे है।

कार्यकर्ताओं का कहना है कि इन अनुबंधों के तहत श्रमिकों को मनमाने ढंग से नौकरी से हटाया जा सकता है और रोजगार सुरक्षा, पेंशन, स्वास्थ्य देखभाल, वरिष्ठता लाभ और ग्रेच्युटी जैसी कोई सुविधा नहीं होती है।

अध्ययन में कहा गया कि भारतीय और कम्बोडियाई कारखानों में श्रमिकों ने मातृत्व सुविधा में भेदभाव के बारे में भी बताया।

अध्ययन के अनुसार कारखाना कर्मियों ने बताया, कम्‍बोडिया के 12 में से 11 कारखानों मे कर्मियों को गर्भावस्था के दौरान काम से हटा दिया जाता है, जबकि सभी पांच भारतीय कारखानों के कर्मियों ने बताया की गर्भवती महिलाओं को बर्खास्‍त कर दिया जाता है।

इसमें कहा गया कि, "स्थायी कर्मियों को गर्भावस्था के दौरान बिना वेतन के जबरन छुट्टी लेने को मजबूर किया जाता है।"

"अनुबंध पर, प्रति नग की दर से काम करने वाली और आकस्मिक कर्मियों ने बताया कि हालांकि गर्भावस्था के बाद अमूमन उन्‍हें दोबारा काम पर रख लिया जाता है, लेकिन  तब उन्‍हें नया अनुबंध करना पड़ता है जिसके कारण उनकी वरिष्ठता समाप्‍त हो जाती है।"

एच एंड एम की संडबर्ग का कहना है कि इन सभी मुद्दों का समाधान एक दीर्घकालीन प्रक्रिया है,  जो "कदम-दर-कदम" जारी रहेगी। उन्‍होंने कहा कि उनकी कंपनी परिधान बनाने वाले कारखानों में श्रम अधिकारों में सुधार लाने के लिए प्रतिबद्ध है।

संडबर्ग ने कहा, "कंबोडिया और भारत जैसे देशों के विकास के लिए लगातार लंबी अवधि तक जिम्मेदार खरीददार उपलब्‍ध रहना जरूरी है और हम चाहते हैं है कि इन बाजारों में सुधार के लिए योगदान जारी रहे।"

(रिपोर्टिंग- नीता भल्‍ला, संपादन- बेलिंडा गोल्‍डस्मिथ; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org) 

Our Standards: The Thomson Reuters Trust Principles.

-->