- अनुराधा नागराज
चेन्नई, 19 जुलाई (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - एक भारतीय अदालत ने तमिलनाडु के लाखों परिधान कर्मियों के वेतन में 30 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी का आदेश दिया है। 12 वर्ष से भी अधिक समय के बाद उनके न्यूनतम वेतन में यह पहली वृद्धि है।
लेकिन कई अंतरराष्ट्रीय ब्रांडों की आपूर्ति करने वाले 500 वस्त्र निर्माताओं और निर्यातकों के वकीलों का कहना है कि वैश्विक बाजार की कड़ी शर्तों को देखते हुए नया वेतन दे पाना "व्यावहारिक रूप से असंभव" है।
कार्यकर्ताओं का कहना है कि आदेश के तहत कर्मियों का औसत मासिक वेतन 4500 रुपये से बढ़कर 6500 रुपये होगा, जो अधिकांश अन्य राज्यों के कपड़ा कर्मियों की मजदूरी के बराबर है।
महिला कर्मियों की यूनियन- पेन थोझीलालरगल संगम की सुजाता मोदी ने कहा, "कर्मियों को उनका उचित मेहनताना दिलाने के लंबे संघर्ष में यह एक बड़ी जीत है।"
उन्होंने कहा, "श्रमिक मंहगाई और बढ़ती कीमतों के बीच गरीबी में गुजर बसर कर रहे हैं।"
कार्यकर्ताओं की मांग है कि राज्य सरकार कपड़ा कंपनियों से अदालत के फैसले पर तुरंत अमल सुनिश्चित करें।
भारत दुनिया के सबसे बड़े कपड़ा और परिधान निर्माताओं में से एक है। सालाना 4000 करोड़ डॉलर के इस उद्योग में साढ़े चार करोड़ श्रमिक काम करते हैं।
न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के तहत राज्य सरकारों द्वारा हर पांच साल में मूल न्यूनतम मजदूरी बढ़ाना जरूरी है, लेकिन तमिलनाडु के कपड़ा निर्माताओं ने बार-बार इस वेतन वृद्धि के खिलाफ याचिकाएं दायर की हैं।
पिछली बार राज्य सरकार ने 2004 में वेतन बढ़ाया था, लेकिन यह मामला तुरंत अदालत में चला गया और बढ़ा हुआ वेतन लागू नहीं किया गया।
2014 में मजदूरी बढ़ाने के सरकार के आदेश के बाद से मद्रास उच्च न्यायालय में चली लंबी कानूनी लड़ाई के दौरान न्यायधीशों ने निर्माताओं और निर्यातकों द्वारा दायर 500 से अधिक याचिकाएं खारिज कर दीं।
13 जुलाई के अपने फैसले में अदालत ने निर्माताओं से कर्मियों को तुरंत बढ़ा हुआ वेतन और दिसंबर 2014 से बकाया वेतन का भुगतान करने को कहा।
कपड़ा काटने वालों, दर्जियों और बटन बनाने वालों सहित कर्मियों को मंहगाई से जुड़ा अतिरिक्त भत्ता भी दिया जाएगा।
शर्ट सीलने वाली ए. धनलक्ष्मी ने निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि प्रति माह 6,000 रुपये पाने के लिये उसने काफी संघर्ष किया है। वह चेन्नई के पास एक निर्यात कंपनी में सप्ताह में औसतन 45 घंटे काम करती है।
उसने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "मेरे काम का बोझ बढ़ता था, लेकिन वेतन नहीं। अदालत के फैसले से मुझे आशा बंधी है।"
सरकारी वकीलों ने निर्माताओं पर "बेईमानी" का आरोप लगाया और अदालत को बताया कि कईयों ने अपने कर्मियों को कभी भी न्यूनतम मजदूरी नहीं दी।
लेकिन फैसले के खिलाफ अपील करने की सोच रहे निर्माताओं और निर्यातकों ने अदालत में दलील दी कि उन्हें बांग्लादेश और चीन जैसे पड़ोसी देशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा मिल रही है और ऐसे में वेतन वृद्धि यथार्थ से परे है।
वकील विजय नारायण ने कहा, "कई भारतीयों ने यहां की बजाय बांग्लादेश में कारखाने लगाये हैं, क्योंकि वहां कारखाना लगाना सस्ता पड़ता है। इस उद्योग में बहुत प्रतिस्पर्धा है और यह एक वास्तविकता है।"
(1डॉलर = 67.1890 रुपये)
(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन-एमा बाथा; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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