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"अभ्रक माफिया" पर नियंत्रण करने और बाल मजदूरों को मरने से बचाने के लिये राज्य खानों को वैध बनायेंगे

by Nita Bhalla | @nitabhalla | Thomson Reuters Foundation
Monday, 8 August 2016 14:29 GMT

A girl shows some of the mica flakes she has collected whilst working in a open cast illegal mine in Giridih district in the eastern state of Jharkhand, India, January 22, 2016. REUTERS/Nita Bhalla

Image Caption and Rights Information

-    नीता भल्ला

 दिल्ली, 8 अगस्त (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा है कि पूर्वी भारत में अधिकारी कुछ अभ्रक खदानों को वैध करना शुरू कर "अभ्रक माफिया" पर छापे मारेंगे, यह थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन के अवैध अभ्रक खदानों में बच्चों की मौत को छुपाने के खुलासे के बाद हुआ है।

 अभ्रक उत्पादक राज्‍य- झारखंड में तीन महीने की गई तहकीकात में पाया गया कि अभ्रक की काला बाजारी बढ़ने से सौन्‍दर्य प्रसाधन और कार पेंट में इस्‍तेमाल किये जाने वाले कीमती खनिज अभ्रक के खनन के दौरान जून से अब तक कम से कम सात बच्चों की मौत हुई है।

  लेकिन इन मौतों की कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई गई, क्‍योंकि पीड़ितों के परिजनों और खदान संचालकों को डर था कि ऐसा कराने से कहीं अवैध खनन बंद ना हो जाये। भारत के कुछ सबसे गरीब क्षेत्रों में आय का एकमात्र स्‍त्रोत यही है।

Blood Mica
Deaths of child workers in India's mica "ghost" mines covered up to keep industry alive
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 झारखंड के खान सचिव सुनील कुमार बर्नवाल ने कहा कि उन्‍हें अभ्रक की खानों में बाल श्रम के बारे में पता था, लेकिन भारत की वार्षिक अभ्रक का अनुमानित 70 प्रतिशत उत्पादन करने वाली अवैध खानों में मरने वाले बच्चों की संख्या के बारे में जानकर वे चकित हैं।

  उन्‍होंने कुछ अवैध खानों को 2017 के शुरूआत से वैध करने और स्थानीय अभ्रक माफियाओं को न बख्‍शने का प्रण लिया है। व्यापारियों, राजनेताओं, पुलिस और वन रक्षकों की मिलीभगत से ये माफिया गरीबों का शोषण कर इस अवैध व्यापार मे फायदे करते हैं।

  बर्नवाल ने रविवार को एक इंटरव्‍यू में कहा, "जो कोई भी हो- किसी भी पार्टी का सदस्य या सरकारी अधिकारी अगर वे किसी भी प्रकार की अवैध गतिविधि में लिप्‍त पाये गये तो उन्‍हें बख्शा नहीं जाएगा।"

  "अगर आप इस क्षेत्र को वैध बनाते हैं, तो सभी अवैध समूहों को नुकसान होगा। सरकार वहां के लोगों का जीवन बेहतर बनाने के लिए सभी आवश्यक कदम उठायेगी।"

  भारत दुनिया के सबसे बड़े अभ्रक उत्पादकों में से एक है। अभ्रक एक चांदी के रंग वाला क्रिस्टलीय खनिज है, जिसका  पर्यावरण अनुकूल होने के कारण हाल के वर्षों में महत्‍व काफी बढ़ गया है और कार और निर्माण क्षेत्रों, इलेक्ट्रॉनिक्स और "प्राकृतिक" सौंदर्य प्रसाधनों में इसका इस्तेमाल किया जाता है।

  इस उद्योग की कभी 700 से अधिक खानें थी, लेकिन 1980 में वनों की कटाई को रोकने के लिये बने सख्त कानून और कृत्रिम अभ्रक की खोज की वजह से इन खदानों को बंद करना पडा था।  

    

      "पारदर्शिता"

  लेकिन अभ्रक के प्रति रूचि बढ़ने से अवैध संचालकों ने सैंकड़ों जर्जर और बंद पड़ी खानों में काम शुरू कर दिया था, जिनमे  से ज्‍यादातर झारखंड के कोडरमा और गिरिडीह जिलों में मौजूद हैं।  

  भारतीय कानून में 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों पर खानों और अन्य खतरनाक उद्योगों में काम करने पर रोक है, लेकिन बेहद गरीबी में जीवन यापन करने वाले कई परिवार बच्चों की कमाई पर निर्भर होते हैं।  

  बर्नवाल ने कहा कि समस्या के समाधान के लिये कई उपायों की आवश्‍यकता है और राज्य के अभ्रक खनन क्षेत्र को वैध बनाने की योजना पर कार्य किया जा रहा है। उन्‍होंने कहा कि इससे राजस्व प्राप्‍त होगा और इन क्षेत्रों में विकास और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे तथा बाल श्रम रोकने में मदद मिलेगी।

    उन्होंने कहा कि फरवरी में अभ्रक खनन के नियमों में संशोधन किया गया था, जब केंद्र सरकार ने अभ्रक को प्रमुख खनिज श्रेणी से हटाकर गौण श्रेणी में डाला और राज्य के अधिकारियों को इसके लिये पट्टा देने का अधिकार दिया गया था।

  झारखंड की अभ्रक के भंडार का पता लगाने और ब्लॉकों की हदबंदी के लिये भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण कराने तथा अगले छह महीने के भीतर खनन पट्टों की नीलामी शुरू करने की योजना है।

 बर्नवाल ने झारखंड की राजधानी रांची से फोन पर बताया, "सरकार और मेरे विभाग पर पूरा जोर कानूनी पट्टे देने पर होगा और इसमें स्पष्ट स्वामित्व होगा और मुझे नहीं लगता कि इसके बाद ये समस्याएं रहेंगी।"

  उन्होंने कहा कि सरकार लोगों को यांत्रिकी या पशुपालन जैसे वैकल्पिक नौकरी के विकल्प उपलब्‍ध कराने के लिए राज्य में कौशल विकास केंद्रों की स्थापना भी कर रही है।

  बर्नवाल ने कहा, "इन सब बातों का एक ही समाधान है कि इन अभ्रक खनन को हमारे कानूनी ढांचे के भीतर लाना होगा।" बर्नवाल झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास के सचिव भी हैं।

  बर्नवाल ने स्वीकार किया कि कई अभ्रक खदानें संरक्षित वन या वन्यजीव अभयारण्यों में स्थित हैं और पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले इन क्षेत्रों के लिए पट्टे पाना मुश्किल होगा।

  लेकिन उन्होंने कहा कि ऐसे क्षेत्रों में खनन कर रहे समुदाय जंगलों के बाहर नीलाम की गई नयी अभ्रक खदानों में काम कर सकते हैं और इससे प्राप्‍त राजस्व से विकास और वैकल्पिक रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे।

(रिपोर्टिंग- नीता भल्‍ला, संपादन-बेलिंडा गोल्‍डस्मिथ; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org) 

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