- नीता भल्ला
नई दिल्ली, 1 सितम्बर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) – अपराध के सरकारी आंकड़े दर्शाते हैं कि 2014 की तुलना में 2015 में भारत में मानव तस्करी की घटनाएं 25 प्रतिशत अधिक हुई हैं, जिसमें से 40 प्रतिशत से अधिक मामलों में आधुनिक समय के गुलाम के तौर पर बच्चों को खरीदा, बेचा और उनका शोषण किया गया है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने कहा है कि 2014 में मानव तस्करी से जुड़े 5,466 मामलों की तुलना में पिछले वर्ष 6,877 मामले दर्ज किये गये। मानव तस्करी के सबसे अधिक मामले असम और उसके बाद पश्चिम बंगाल में दर्ज किये गये।
मंगलवार को जारी आंकड़ों में बताया गया है कि 9,127 में से 43 प्रतिशत पीड़ित 18 साल से कम उम्र के थे। इनमें नाबालिग लड़की को शारीरिक संबंध बनाने के इरादे से फुसलाने, देह व्यापार के लिये नाबालिग लड़की को खरीदने या बेचने और किसी व्यक्ति को गुलाम बनाकर रखने जैसे अपराध शामिल हैं।
कार्यकर्ताओं ने ऐसे मामले अधिक संख्या में दर्ज कराने के लिये लोगों में आई जागरूकता के साथ ही बेहतर पुलिस प्रशिक्षण को श्रेय दिया है, जिसके परिणामस्वरूप मानव तस्करी रोकने के कानून कारगर साबित हुये।
हालांकि उन्होंने कहा है कि ऐसे मामलों की वास्तविक संख्या अधिक हो सकती है, क्योंकि विशेष रूप से गरीब, ग्रामीण पृष्ठभूमि के कई पीड़ितों को अपराध के बारे में जानकारी ही नहीं होती है।
मानव तस्करी रोकने के लिये कार्य कर रही दिल्ली की धर्मार्थ संस्था- शक्ति वाहिनी के संस्थापक और उच्चतम न्यायालय के वकील रवि कांत ने कहा, "हम सब जानते हैं कि यह संख्या बहुत अधिक है और आने वाले वर्षों में ऐसे मामलों के और बढ़ने की संभावना है।"
"ऐसे मामले बढ़ने का मतलब है कि कानून लागू करने वाली एजेंसियां मानव तस्करी के मुद्दे को अब गंभीरता से ले रही हैं।"
विश्व में दक्षिण एशिया के क्षेत्रों में सबसे तेजी से मानव तस्करी के मामले बढ़ रहे हैं, जिसका केंद्र भारत है।
हर साल कई गिरोह हजारों पीड़ितों को बंधुआ मजदूरी करने के लिये बेच देते हैं या उनका शोषण करने वाले मालिकों के पास काम पर रख देते हैं। कई महिलाओं और लड़कियों को वेश्यालयों में बेचा जाता है।
ऑस्ट्रेलिया के वॉक फ्री फाउंडेशन के 2016 के वैश्विक गुलामी सूचकांक के अनुसार दुनिया के 4 करोड़ 58 लाख गुलामों में से अकेले भारत में 40 प्रतिशत गुलाम हैं।
"17,600 मामलों की सुनवाई लंबित"
दिल्ली पुलिस ने मंगलवार को मानव तस्करी और संगठित आपराधिक कार्य करने के आरोप में एक दंपति को गिरफ्तार किया। उन पर कई वर्षों से सैकड़ों महिलाओं और युवा लड़कियों की तस्करी कर उन्हें दिल्ली के रेड लाइट क्षेत्र के वेश्यालयों में बेचने का आरोप है।
पुलिस ने कहा है कि 50 वर्ष का पुरूष और 45 वर्षीय उसकी पत्नी पश्चिम बंगाल, झारखंड और असम जैसे गरीब क्षेत्रों के साथ ही पड़ोसी देश नेपाल से पीडि़तों को अच्छी नौकरी दिलाने का लालच देकर लाते और फिर उन्हें एक-एक लाख रुपये में वेश्यालयों में बेच देते थे।
एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि 2015 के मानव तस्करी से जुड़े 19,717 मामलों की सुनवाई अभी होनी है, जिनमें से 15,144 मामले 2014 के हैं।
आंकड़ों से पता चला है कि केवल 2,075 मामलों की सुनवाई पूरी हो पाई है, जिनमें से 1,251 अभियुक्तों को दोष मुक्त कर दिया गया और 824 अभियुक्त दोषी करार दिये गये हैं। 2015 के अंत तक 17,600 से अधिक मामले लंबित पड़े थे।
कार्यकर्ताओं का कहना है कि हालांकि हाल के वर्षों में मानव तस्करी को लेकर सरकार के रूख में सुधार हुआ है, लेकिन कई पीड़ितों, विशेष रूप से बच्चों, को अभी भी न्याय और सहायता नहीं मिल पाती है।
130 करोड़ की आबादी के लिए भारत में बहुत कम अदालतें, न्यायाधीश और वकील हैं, इसलिये अदालतों में कई मामले लंबित पड़े हैं।
सरकार ने लापता बच्चों की तलाश के लिए एक ऑनलाइन मंच शुरू किया है, मानव तस्करी रोकने के लिये बांग्लादेश और बहरीन जैसे देशों के साथ द्विपक्षीय समझौते किये हैं और कानून लागू करने वाले अधिकारियों को प्रशिक्षित करने के लिये धर्मार्थ संस्थाओं के साथ काम किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की मानव तस्करी पर देश का पहला व्यापक कानून लाने की भी योजना है।
इस वर्ष के अंत तक संसद की मंजूरी के लिए मानव तस्करी रोधी विधेयक लाने की उम्मीद है। इसका उद्देश्य मौजूदा कानूनों को एकीकृत करना, जीवित बचे लोगों की जरूरतों को प्राथमिकता देना और मामलों को तेजी से निपटाने के लिए विशेष अदालतें उपलब्ध कराना है।
(रिपोर्टिंग- नीता भल्ला, संपादन- केटी नुएन; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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