- रोली श्रीवास्तव
मुंबई, 28 दिसम्बर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - सरकारी अधिकारियों ने बुधवार को कहा कि देश में शिशुओं की तस्करी बढ़ने से गोद लेने के लिये बच्चे कम हो रहे हैं, जिसकी वजह से बच्चे बेचने का फायदेमंद कारोबार बढ़ रहा है, क्योंकि अधिक दंपति बच्चा गोद लेने की प्रतिक्षा में हैं।
सरकारी आंकड़े दर्शाते हैं कि सवा सौ करोड़ की आबादी के साथ दुनिया के दूसरे सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश-भारत में वर्तमान में 1,700 बच्चे गोद लेने के लिये उपलब्ध हैं, जबकि लगभग 12,400 परिवार बच्चों को गोद लेना चाहते हैं। 2015-16 में करीबन 3,010 बच्चों को गोद लिया गया था।
गोद लेने की प्रक्रिया के प्रभारी सरकारी अधिकारियों का कहना है कि देश में बच्चा गोद लेने के लिये बढ़ते लम्बे इंतजार का सीधा संबंध मानव तस्करी की घटनाओं के बढ़ने से है। पिछले दो महीने में ही भारत में शिशुओं को बेचने के दो रैकेट का पर्दाफाश हुआ है।
देश में गोद लेने की प्रक्रिया की निगरानी और नियमन के मुख्य निकाय-केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (कारा) के प्रमुख दीपक कुमार ने कहा, "शिशुओं की तस्करी जैसे रैकेट अधिक हो रहे हैं।"
"हमें उम्मीद है कि देश में उपलब्ध बच्चों के गोद लेने की तुलना में गोद लेने की प्रतीक्षा कर रहे माता-पिता की संख्या अधिक होनी चाहिये, लेकिन इस क्षेत्र में कई दलाल और एजेंसियां भी सक्रिय हैं जो निःसंतान दंपतियों को बच्चे बेचते हैं।"
भारतीय कानूनों के तहत अपने माता-पिता द्वारा त्याग दिये गये या पुलिस द्वारा बरामद किये गये बच्चों को कई वैधानिक प्रक्रियाओं के बाद कानूनन गोद देने योग्य घोषित किया जाता है।
इस दौरान बच्चे के माता पिता को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए 60 दिनों का समय भी दिया जाता है।
पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए पिछले साल से देश में गोद लेने की प्रक्रिया को ऑनलाइन कर दिया गया है और एक वेबसाइट पर प्रतीक्षारत परिवारों की सूची तथा गोद लिये जाने वाले बच्चों की जानकारी उपलब्ध कराई गई है।
लेकिन कुमार का कहना है कि आमतौर पर सरकारी विभाग को बच्चा सौंपने से पहले ही तस्कर माता-पिताओं और अक्सर अविवाहित माताओं से इन बच्चों को लेने की कोशिश करते हैं।
पिछले सप्ताह मुंबई में पुलिस ने समाज में बदनामी और बहिष्कार से बचने के लिये अकेली माताओं को उनके शिशुओं को बेचने के वास्ते बरगलाने और इनको देश के विभिन्न राज्यों में रह रहे निःसंतान दंपतियों को बेचने के आरोप में एक गिरोह को गिरफ्तार किया था।
पश्चिम बंगाल में पुलिस ने जांच में पाया कि क्लीनिक में प्रसव के लिये आने वाली महिलाओं के शिशुओं को चुराया जा रहा था और क्लीनिक के कर्मचारी उन्हें झूठ बोल रहे थे कि उनका बच्चा मृत पैदा हुआ था। कईयों को तो धोखा देने के लिये क्लीनिक में संरक्षित मृत शिशुओं के शव भी सौंपे गये थे।
अधिकारियों का कहना है कि गोद लेने वालों की प्रतिक्षासूची की निगरानी तस्करों की पहचान करने और उन्हें तलाशने का एक तरीका है, लेकिन तस्कर इससे "बच निकलने की प्रक्रिया" भी जानते हैं।
गोद देने वाली एक एजेंसी के मालिक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि उन्हें कई बार प्रतिक्षा सूची के परिवारों से फोन आते हैं कि उन्हें कोई अविवाहित मां अपना बच्चा बेचना चाहती है। वे जानना चाहते हैं कि उन्हें यह बच्चा गोद लेना चाहिये या नहीं।
कुमार ने कहा कि हाल ही में महाराष्ट्र में दो एजेंसियों को दो लाख से लेकर छह लाख रुपये में शिशुओं को बेचने के आरोप में बंद किया गया है।
गोद देने की प्रक्रिया के जानकारों का सुझाव है कि देश में उन क्षेत्रों की पहचान की जानी चाहिए जहां यह समस्या है।
फेडरेशन ऑफ एडॉप्टिव एजेंसिज के अध्यक्ष सुनील अरोड़ा ने कहा, "अगर देश के कुछ राज्यों में कम संख्या में गोद लेने के मामलों का विश्लेषण किया जाये तो इस समस्या को कम करने में मदद मिलेगी।"
(रिपोर्टिंग- रोली श्रीवास्तव, संपादन- बेलिंडा गोल्डस्मिथ; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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