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एक बड़ी कार्रवाई के दौरान दक्षिण भारत के ईंट भट्ठे से 200 बच्चों को मुक्त कराया गया

by Anuradha Nagaraj | @anuranagaraj | Thomson Reuters Foundation
Wednesday, 4 January 2017 14:28 GMT

A teenage boy works at a brick mine in the Ratnagiri district, India. 2011 archive photo. REUTERS/Danish Siddiqui

Image Caption and Rights Information

-    अनुराधा नागराज

 

     चेन्नई, 4 जनवरी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - अधिकारियों ने बुधवार को बताया कि पुलिस ने दक्षिणी राज्‍य तेलंगाना में एक बड़ी कार्रवाई के दौरान एक ईंट भट्ठे में काम करने वाले लगभग 200 बच्चों को मुक्‍त कराया है। इनमें से ज्‍यादातर बच्‍चों की उम्र 14 साल से कम है।  

     इन बच्चों को राज्‍य की राजधानी हैदराबाद से 40 किलोमीटर (25 मील) दूर यादादीरी जिले के एक ईंट भट्ठे से बाल मजदूरी और लापता बच्चों की समस्‍या से निपटने के राष्ट्रीय अभियान- "ऑपरेशन स्माइल" के तहत मुक्‍त कराया गया।

    पुलिस ने कहा कि बचाए गए बच्चों को पूर्वी राज्य ओडिशा से यहां लाया गया था और वे ईंट भट्ठे में वयस्‍कों के साथ रह रहे तथा काम कर रह रहे थे। उन वयस्‍कों को इन बच्‍चों के माता पिता बताया जा रहा था।

    पुलिस आयुक्‍त महेश भागवत ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "हमें विश्‍वास नहीं है कि ये असल में उनके माता-पिता हैं, जबकि अधिक संभावना है कि इनमें से कुछ बच्चों की तस्करी कर उन्‍हें यहां लाया गया हो।"

    "बचाव दल ने सात-आठ साल की लड़कियों को अपने सिर पर ईंटें ले जाते हुये देखा। इनमें से कुछ बच्‍चे तो चार साल के ही थे।"

    अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार 2015 में विश्व के 16 करोड़ 80 लाख बाल श्रमिकों में से पांच से 17 वर्ष की आयु के 57 लाख बाल मजदूर भारत में थे।

     आईएलओ का कहना है कि इनमें से आधे से अधिक कृषि क्षेत्र और एक चौथाई बच्‍चे निर्माण क्षेत्र में काम करते हैं।

    बाल अधिकार संरक्षण के एक स्थानीय राज्य निकाय के सदस्‍य पी अच्युत राव का कहना है कि तेलंगाना और पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश बाल तस्करी और बाल श्रम का केन्द्र बन गये हैं।

    तेलंगाना राज्य आयोग के राव ने कहा, "पिछले साल 3,000 से अधिक बच्चों में से अधितर को ईंट भट्ठों और अन्‍य को घरेलू दासता से मुक्‍त कराया गया था। सभी बच्चे पूर्वी भारत से थे।"

  कार्यकर्ताओं का कहना है कि स्कूलों और उनकी स्थानीय भाषा में पढ़ाने वाले शिक्षकों की कमी के कारण कई प्रवासी बच्चे अपने माता-पिता के साथ काम करने लगते हैं।  

      स्थानीय अधिकारियों ने कहा कि वे जांच करेंगे कि बचाये गये बच्‍चों को नजदीक के किसी प्राथमिक स्कूल में दाखिला क्‍यों नहीं दिया गया था।

(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- केटी नुएन; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org) 

 

 

 

 

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