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दक्षिण भारत में जारी छापेमारी में लगभग और 200 बाल श्रमिक मुक्तह कराए गए

Tuesday, 17 January 2017 20:48 GMT

A goldsmith works on a gold bangle at a workshop in Kolkata in this 2011 archive photo. REUTERS/Rupak De Chowdhuri

Image Caption and Rights Information

  मुंबई, 17 जनवरी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - पुलिस ने मंगलवार को कहा

कि एक महीने चली छापेमारी के तहत पिछले सप्ताह हैदराबाद के चूड़ी बनाने के कारखानों से लगभग 200 बाल श्रमिकों को बचाया गया, जिनमें से कुछ बच्‍चे तो आठ साल के थे।  

  बाल मजदूरी और लापता बच्चों की समस्‍या से निपटने के राष्ट्रीय अभियान "ऑपरेशन स्माइल" में शामिल अधिकारियों ने बताया कि बचाये गये अधिकांश बच्चे 8 से 14 साल थे और वे गरीब पूर्वी राज्य बिहार, पश्चिम बंगाल और असम से यहां आए थे।

  हैदराबाद में बचाव अभियान की निगरानी कर रही अतिरिक्त पुलिस आयुक्त स्वाति लाकरा ने कहा, "हम नियोक्ताओं और तस्करों के बीच सांठगांठ की जांच कर रहे हैं।"

    "कई मामलों में माता-पिता ही अपने बच्‍चों को मजदूरी करने के लिये भेजने को तैयार होते हैं, जिससे तस्करों का काम आसान हो जाता है।"

  इस महीने के शुरू में तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद से 40 किलोमीटर दूर एक ईंट भट्ठे से लगभग 200 बच्चों को मुक्‍त कराया गया था। इनमें से ज्‍यादातर बच्‍चे 14 साल से कम उम्र के थे।  

  कार्यकर्ताओं ने कहा कि तेलंगाना और आंध्र प्रदेश बाल मजदूरी और बच्चों की तस्‍करी का केन्द्र बन गये थे।

  लेकिन पुलिस और बाल अधिकारों के लिये कार्य करने वाली धर्मार्थ संस्‍थाओं द्वारा वर्ष में दो बार एक-एक महीने तक चलाये गये विशेष बचाव अभियान से बाल मजदूरी और बच्चों की तस्‍करी में कमी आई है।

  हैदराबाद जिले के बाल संरक्षण अधिकारी मोहम्मद इम्तियाज रहीम ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "2015 से अकेले हैदराबाद से 2,000 से अधिक बच्चों को बचाया गया है और प्रत्येक अभियान में धीरे-धीरे यह संख्‍या कम हो रही है।"

      अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार 2015 में विश्व के 16 करोड़ 80 लाख बाल श्रमिकों में से पांच से 17 वर्ष की आयु के 57 लाख बाल मजदूर भारतीय थे।

  आईएलओ का कहना है कि इनमें से आधे से अधिक कृषि क्षेत्र और एक चौथाई से ज्‍यादा बच्‍चे निर्माण क्षेत्र में काम करते हैं।

  बच्‍चों की फुर्तीली उंगलियों और तेज आंखों के कारण हैदराबाद में चूड़ी कारखानों में उनसे काम करवाना अधिक पसंद किया जाता है, क्‍योंकि वे लाख से बनी चूड़ियों पर छोटे चमकदार नग कुशलता से लगाते हैं। यह चुडि़यां ऐतिहासिक स्मारक चारमीनार देखने आने वाले पर्यटकों में काफी लोकप्रिय हैं।

  लाकरा ने कहा, "अधिकतर बच्चों को पुराने शहर से बचाया गया है, जहां ज्यादातर चूड़ी कारखाने हैं। हमने देखा कि बच्‍चे फर्नीचर की दुकानों और होटलों में भी काम कर रहे थे।"

  बचाए गए बच्चों को अभी एक आश्रय घर में रखा गया है और उन्‍हें उनके गृह राज्यों में उनके परिवारों के पास वापस भेज दिया जाएगा।

  पिछले साल 6 से 14 साल के 200 से अधिक बच्चों को हैदराबाद के चूड़ी कारखानों से बचाया गया था। स्थानीय मीडिया की खबरों में बताया गया था कि लंबे समय तक बिना खिड़की के छोटे से कमरे में काम करने के कारण इन बच्चों ने सांस की बीमारियों की शिकायत की थी।

(रिपोर्टिंग- रोली श्रीवास्‍तव, संपादन- रोस रसल; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

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