मुंबई, 19 जनवरी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - नई दिल्ली के बाहरी इलाके- गुरूग्राम में आलीशान आवासीय क्षेत्र के एक बंगले में गर्भवती महिलाओं के एक समूह ने आशा व्यक्त की कि सुरक्षित रूप से उनके शिशुओं का जन्म हो जाये वरना एक बड़ी रकम हमेशा के लिये उनके हाथों से निकल जायेगी।
इस किराये की कोख केन्द्र (सरोगेसी सेन्टर) में सफल गर्भधारण करना इतना महत्वपूर्ण कभी नहीं था। सरकार के सरोगेसी के व्यावसायीकरण पर प्रतिबंध लगाने की दिशा में बढ़ते कदम से किराये की कोख की मांग बढ़ने के बाद से इस केंद्र में कोई भी बिस्तर खाली नहीं है।
अगर फरवरी में शुरू होने वाले आगामी संसद सत्र में सरोगेसी के व्यावसायीकरण पर प्रतिबंध का विधेयक पारित हो जाता है, तो धन के लिए अपनी कोख किराये पर देने वाली ये आखिरी महिलाएं होंगी। अनुमान है कि 15 साल पुराने इस उद्योग की सालाना आय 230 करोड़ डॉलर तक हो सकती है।
भारत के सरोगेसी उद्योग के बारे में महिला अधिकार समूहों का कहना है कि फर्टीलिटी क्लीनिक अमीरों के लिए "बच्चे पैदा करने के कारखाने" हैं तथा कानून की कमी के कारण गरीब और अशिक्षित महिलाएं पूरी तरह से समझे बिना अनुबंधों पर सहमत हो जाती हैं।
फिर भी महिला सुरक्षा के उद्देश्य से पारित होने वाले विधेयक से पहले कुछ महिलाएं आखिरी बार लगभग चार लाख रुपये कमाने के लिये कतार में खड़ी हैं। उनका कहना है कि अन्यथा इतना धन तो वे सपने में भी नहीं कमा सकती थीं।
दिसंबर के अंतिम सप्ताह में 32 साल की रजिया सुल्ताना के गर्भाशय में भ्रूण स्थानांतरित किया गया था।
छह महीने पहले तक वह इनफर्टीलिटी क्लीनिकों के लिए अंड दाताओं और किराए की कोख की व्यवस्था करती थी और प्रत्येक सिफ़ारिश के लिए उसे 5,000 रुपये मिलते थे। लेकिन प्रतिबंध के बारे में सुनने के बाद उसने स्वयं अपनी कोख किराए पर देने का फैसला किया।
उसने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "मेरे बच्चों ने मेरे फैसले का समर्थन करते हुये कहा कि गुर्दा बेचने से बेहतर है बच्चा कोख में रखना। मेरा भी यही मानना है।"
सुल्ताना नौ महीने इस केंद्र में रहेगी और सप्ताह में एक बार वह अपने बच्चों से मिल सकती है तथा केवल अनुरक्षक के साथ ही वह बाहर जा सकती है।
"ये छोटे-छोटे समझौते हैं। इतना धन कमाने के लिए मेरे पास कोई अन्य विकल्प नहीं है।"
"गुलामी से किराये की कोख"
भारत सरकार का मानना है कि प्रतिबंध से अनैतिक तरीकों पर रोक लगेगी।
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के मनोज पंत ने कहा, "हमारी चिंता सरोगेट मां के स्वास्थ्य और बच्चे की कानूनी और वित्तीय अधिकारों की सुरक्षा को लेकर हैं।"
"सरकार चाहती है कि विकसित और विकासशील देशों की तरह ही भारत में भी व्यावसायिक सरोगेसी अवैध हो।"
जब तक किराये की कोख पर प्रतिबंध संबंधी विधेयक पारित नहीं होता है, तब तक भारत उन कुछ देशों में से एक होगा जहां महिलाओं को किराये पर अपनी कोख में इन विट्रो फर्टीलाइजेशन और भ्रूण हस्तांतरण के माध्यम से दूसरे का बच्चा रखने में आर्थिक लाभ होगा।
गुरूग्राम केंद्र में ज्यादातर महिलाएं कारखानों के पास की प्रवासी कालोनियों की हैं, जो पहले वहीं काम करती थीं।
35 साल की रूबी कुमारी ने तीन साल पहले निर्यात कारखाने में सरोगेसी के बारे में सुना था। कारखाने में वह 12 घंटे की पारी में एक घंटे में 50 कपड़ों के सिलाई करती थी और एक दिन में 250 रुपये कमाने के लिये उसका प्रबंधक प्रति घंटे 60 या 70 कपड़े सिलने का दबाव बनाता था।
चार लाख रुपये कमाने के लालच में वह अपनी कोख किराए पर देने को लिए सहमत हो गई।
कुमारी ने कहा, "बच्चा पैदा होने पर माता पिता ने मेरे शुल्क के अलावा उपहार स्वरूप 50,000 रुपये और दिये। वापस आ कर मैंने मेरी बेटी का दाखिला अंग्रेजी माध्यम स्कूल में कराया।"
कुमारी का पति भी एक परिधान कारखाने में काम करता है और प्रत्येक कपड़े पर इस्त्री करने के उसे 2 रुपए मिलते है। दूसरे सरोगेट बच्चे के लिये गर्भवती कुमारी ने कहा कि अगर सरोगेसी ना होती तो उसके परिवार का कोई भविष्य नहीं था।
कुमारी की तरह ही एक और सरोगेट मां जयलक्ष्मी वर्मा ने आश्चर्य जताया कि "मातृत्व उपहार में देना" गलत क्यों है और ऐसा काम जिससे उसे सम्मान और पैसा दोनों मिलता है उसे अवैध कैसे बनाया जा सकता है?
तीन बच्चों की 28-वर्षीय अकेली मां ने कहा, "मेरे ससुराल वालों ने मुझे अपने घर से बाहर निकाल दिया था, निर्यात कारखाने में प्रबंधक मेरे साथ दुर्व्यवहार करता था और मुझे नौकरी छोड़ने को मजबूर किया गया था। यहां एक बच्चे को अपनी कोख में पालने के लिये मुझे सम्मान मिला है।"
वर्मा ने कहा कि अगर सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाया गया तो उसके सामने वापस कारखाने जाने के सिवा कोई विकल्प नहीं है। "मेरे पास कोई अन्य कौशल नहीं है।"
सरोगेसी कानून विशेषज्ञों का कहना है कि अगर सरकार गरीब महिलाओं को शोषण से बचाना चाहती है तो उसे प्रतिबंध के बजाय इस क्षेत्र को नियमित करना चाहिए।
इंडियन सरोगेसी लॉ सेंटर के हरि रामसुब्रमण्यन ने कहा, "व्यावसायिक सरोगेसी पर प्रतिबंध से महिलायें सुरक्षित होंगी यह मानते हुये किराये की कोख विधेयक में महिलाओं की सुरक्षा के कोई प्रावधान नहीं है।"
"अनियंत्रित कारोबार"
गुरूग्राम केंद्र में मालिक सरिता शर्मा एक कर्मचारी को बताती है कि अंड दाता का "रंग गोरा और बी पाजिटिव" होना आवश्यक है।
पल भर में एक गोरी युवा महिला की मुस्कुराती एक तस्वीर उसके फोन पर नजर आती है और वह तुरंत क्लिनिक को सूचित करती है। प्रत्येक अंड दान करने पर महिलाओं को 35,000 रुपये मिलते हैं।
प्रवासी कालोनियों में एजेंटों के व्यापक नेटवर्क के जरिये पिछले एक दशक से दानदाताओं और किराए की कोख की व्यवस्था करने वाली शर्मा ने कहा, "कारोबार में बहुत तेजी है।"
उन्होंने कहा कि उनके दस लाख रुपये के प्रेग्नेंसी पैकेज की मांग बढ़ गई है। इस पैकेज में सरोगेट मां की फीस, भोजन, आवास और अस्पताल के खर्च शामिल हैं। शर्मा ने कहा, "हमारे यहां 1000 महिलाएं पंजीकृत हैं।"
फिर भी मांग बढ़ने के साथ ही चिंताएं भी बढ़ती है।
दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के समाजशास्त्री तुलसी पटेल ने नई दिल्ली में इनफर्टीलिटी क्लीनिकों पर किये एक अध्ययन में पाया कि महिलाओं को स्वास्थ्य जटिलताओं और बार-बार अंड दान तथा गर्भधारण से होने वाले खतरों के बारे में बहुत कम जानकारी है।
अध्ययन में यह भी पता चला कि कुछ मामलों में, गर्भधारण की अधिक संभावना के लिये क्लीनिक तीन से ज्यादा भ्रूण गर्भाशय में स्थानांतरित करते हैं।
पटेल ने कहा, "लेकिन हमें एक भी महिला ऐसी नहीं मिली जिसे सरोगेसी के लिए मजबूर किया गया हो।"
विशेषज्ञों को डर है कि प्रतिबंध से यह उद्योग भूमिगत हो जायेगा और सरोगेसी सेवाएं देने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य का खतरा और बढ़ जायेगा।
कुछ आखिरी सरोगेट महिलाओं के सपने अभी भी पूरे होने की आशा है। चार माह की गर्भवती 24 साल की अकेली मां ज्योति पाल ने कहा, "मैं अपना ब्यूटी पार्लर खोलना चाहती हू़ं।"
"और अगर संभव हुआ तो मैं फिर से सरोगेट बनूंगी।"
(1 डॉलर=68.01 रुपये)
(रिपोर्टिंग- रोली श्रीवास्तव, संपादन- एड अपराइट; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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