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फीचर- बंद होने की कगार पर चाय बागानों में फंसे मजदूरों के बच्चेर तस्करों के निशाने पर

by अनुराधा नागराज | @anuranagaraj | Thomson Reuters Foundation
Friday, 20 January 2017 11:23 GMT

Labourers pluck tea leaves in a tea plantation at Shipaidura village, about 40 km (25 miles) north of the northeastern hill resort of Darjeeling, June 23, 2008. REUTERS/Rupak De Chowdhuri (INDIA)

Image Caption and Rights Information

    जलपाईगुड़ी, 20 जनवरी  (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) – फगुआ ओरॉन को काम पर जाने में देरी हो रही थी, तभी उसकी झोपड़ी के बाहर तस्‍करों ने उसे रोककर कहा कि वे उसकी किशोर बेटी को बेहतर रोजगार के लिए अपने साथ शहर ले जा रहे हैं।

  ओरॉन ने कहा 'नहीं' और वह काम पर चला गया।

   शाम को घर लौटने पर उसने पाया कि  उसकी बेटी घर से जा चुकी थी।

  पश्चिम बंगाल के डायना चाय बागान में अपने घर में निराशा में बैठे उसने कहा, "वे उसे ले ही गये।"

  "अगर मुझे सुबह देरी नहीं हो रही होती तो मैं रूककर इस बारे में अपनी बेटी से बात करता। लेकिन उन्‍होंने उसे अच्छे कपड़े, नया मोबाइल, बेहतर शिक्षा और पैसे दिलाने का लालच दिया था। जब से चाय बागान बंद होने शुरू हुये हैं तब से मैं अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिये संघर्ष कर रहा हूं।"

   2002 से चाय बागान बंद होना शुरू हुये और पांच साल में ही ज्‍यादातर बागान पूरी तरह से बंद हो चुके थे, क्योंकि प्रबंधन का कहना है कि भारी ऋण के कारण उन्‍हें चालू रखना मुश्किल या लाभदायक नहीं था।

     16 साल की सबिता पश्चिम बंगाल के चाय उत्‍पादक बेल्‍ट को छोड़ने को मजबूर अधिकतर किशोरियों में से है, जिन्‍हें चाय की पत्ती चुनने से अत्‍यधिक गरीबी, सामाजिक अलगाव और स्वास्थ्य समस्याओं के बाद अब बेरोजगारी का भी सामना करना पड़ रहा है।

    सरकारी आंकड़ों का विश्लेषण करने वाले लाभ निरपेक्ष संगठन- चाइल्‍ड राइट्स एंड यू के अनुसार पश्चिम बंगाल में 2014 में 14,671 लापता बच्चों के मामले दर्ज किये गये थे। संगठन का कहना है कि भारत में हर पांच लापता बच्चों में से एक पश्चिम बंगाल का है।

     चाइल्‍ड राइट्स एंड यू के अतिन्‍द्र नाथ दास ने कहा, "लापता बच्‍चों और संगठित अपराध के बीच सीधा संबंध है।"

     "बड़ी संख्या में लापता बच्चों की वास्तव में तस्करी की जाती है, उनका अपहरण होता है या उन्‍हें घर छोड़कर भागने के लिये बरगलाया गया होता है।"

     नाम न छापने की शर्त पर बाल कल्याण बोर्ड के एक अधिकारी ने बताया कि पश्चिम बंगाल के 276 में से ज्यादातर बंद चाय बागानों में काम करने वाली युवा लड़कियां अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई छोड़कर एजेंटों के साथ "लापता" हो रही हैं।

     इस क्षेत्र में बाल अधिकारों के लिये कार्य करने वाले लाभ निरपेक्ष समूह- डूआर्स जागरोन के विक्टर बसु ने कहा, "माता पिता असहाय हैं और कई मामलों में तो वे इस आशा में लापता की शिकायत भी दर्ज न‍हीं करवाते हैं कि उनकी बेटी सुरक्षित घर वापस आ जाएगी।"

      उन्होंने कहा, "कुछ मामलों में माता-पिता को कुछ हजार रुपये दिए जाते हैं और कहा जाता है कि सब कुछ ठीक है। कुछ समय के बाद पैसा आना भी बंद हो जाता है और अपने बच्चे के साथ उनके सभी संपर्क भी समाप्‍त हो जाते हैं।"

Rukmani Naik poses with a picture of her 14-year-old daughter who left their home in the Diana Tea Estate in West Bengal, India, to work in another city. January 12, 2017. Thomson Reuters Foundation/Anuradha Nagaraj

  "लिपस्टिक का लालच"

    ओरॉन की झोपड़ी के पास ही रुक्मणि नाइक अपनी 14 वर्षीय बेटी अलिसा की पासपोर्ट आकार की फोटो लिये खड़ी है।

  डायना चाय बागान में अस्थायी तौर पर चाय पत्ती चुनने वाली नाइक ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "वह जनवरी के पहले सप्ताह में यहां से चली गई थी।"

   "पिछले साल भी उसे यहां से ले जाया गया था, लेकिन हम उसे ढूंढ़कर वापस ले आये थे। फिर इस महीने मेरे पड़ोसी के घर आये एक व्‍यक्ति ने उसे दूसरी बार बरगलाया और वह चली गयी।"

   कार्यकर्ताओं का कहना है कि एजेंट सीधे युवा लड़कियों से संपर्क करते हैं। आमतौर पर बाहरी व्यक्ति और स्थानीय निवासी मिलकर काम करते हैं और इसमें फैंसी कपड़े तथा मेकअप सबसे बड़ा लालच होता है।

   इस महीने की शुरूआत में स्नातक की छात्रा और कार्यकर्ता सुलोचना नाइक ने छात्रों के एक समूह के साथ मिलकर एक किशोरी की तस्करी होने से बचाया था।

   तस्करी रोकने के अभियान की 21 वर्षीय सदस्या ने कहा, "एजेंटों ने कहा था कि वे उसके लिये लिपस्टिक खरीदेंगे, फैशन के अनुरूप उसके बाल कटवायेंगे और उसके लिये नए कपड़े भी खरीदेंगे।"

  "उन्होंने उसे कहा था कि उसका स्कूल में दाखिला करवा दिया जाएगा और उसे बस कुछ घंटे बच्‍चे की देखभाल करनी होगी। लड़की ने हमें बताया कि उसने सोचा कि वह कमा कर अपने  माता पिता की मदद करेगी और अधिक सुंदर दिखने लगेगी।"

   अपराध से जुड़े सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2014 की तुलना में 2015 में भारत में 25 प्रतिशत अधिक मानव तस्करी की शिकायतें दर्ज हुईं और उनमें से 40 प्रतिशत से ज्‍यादा बच्चों से जुड़े मामले थे।

  "बढ़ती निराशा"

    चाय बागानों में भूखमरी और मौत अब सामान्‍य बात है। लेकिन अभी भी यहां रह रहे लगभग दो लाख परिवारों में केवल निराशा बढ़ रही है।

  अधिकांश लोग घोर गरीबी में गुजर-बसर कर रहे हैं। जो महिलाएं कभी बेहतरीन चाय मिश्रणों के लिए चाय पत्ती चुनती थीं, वे अब 150 रूपए की दिहाड़ी पर नदी के तट पर पत्थर तोड़ती हैं।

   बसु ने कहा, "लड़कियों का स्कूल जाना बंद हो गया है, क्‍योंकि उनके माता पिता अब स्‍कूल जाने के लिये बस का किराया भी नहीं दे सकते हैं।"

   महिलाओं की समस्‍याओं पर भारत सरकार को परामर्श देने वाला सांविधिक निकाय- राष्ट्रीय महिला आयोग के एक दल ने पिछले सप्ताह चाय बागानों की स्थिति का आकलन करने के लिए वहां का दौरा किया, जहां उन्‍हें लापता बच्चों के बारे में पता चला।

  रेड बैंक्‍स चाय बागान में शांति केश ने आयोग को बताया, "बच्चे हमारे संघर्ष को देख रहें हैं और इसलिये पैसा कमाने के लिये वे बाहर जा रहे हैं।"

  "लेकिन कई बच्‍चे वापस नहीं आते हैं, कुछ की वहीं मौत हो जाती हैं और हममें से ज्यादातर लोगों का अपने बच्‍चों के साथ कोई संपर्क नहीं है। हम अपना रोजगार वापस चाहते हैं, ताकि हमारे बच्चे हमारे साथ सुरक्षित रहें।"

  ओरॉन का मानना ​​है कि उसकी बेटी पड़ोसी राज्‍य सिक्किम में है। तस्करी रोकने के लिये कार्य करने वालों का कहना है कि सिक्किम तस्करी किये गये कई बच्चों के लिये नया गंतव्य स्‍थान है, यहां पर तेजी से बढ़ते पर्यटन उद्योग में उनसे काम करवाया जाता है।

  ओरॉन ने शांत भाव से कहा, "मुझे उसकी (बेटी) बहुत याद आती है। जब मैं काम पर जाता था तो वही हमेशा मेरा लंच बॉक्स तैयार करती थी। मेरी पत्नी सोचती है कि मैंने कुछ पैसे के लिए उसे बेच दिया है। लेकिन मैंने उसे बेचा नहीं था, बल्कि उसे यहां से ले जाया गया है।"

(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- लिंडसे ग्रीफिथ; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org) 

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