कोलकाता, 29 जनवरी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - दक्षिण एशिया के सबसे बड़े रेड लाइट जिले, कोलकाता के सोनागाछी में प्रवेश द्वार पर बनी एक जर्जर इमारत की पहली मंजिल में यौन कर्मी समिति की बैठक चल रही है।
कार्यवाही तेजी से की जा रही है। परिवार की जानकारी, पता, शैक्षिक योग्यता और पिछले रोजगार के विवरण के साथ पूरा फार्म भरा गया और अब "शहर में आयी इस नयी लड़की" की हड्डियों की जांच के लिये उसे पास ही के एक क्लीनिक में एक्स-रे करवाने के लिये ले जाया जाता है, ताकि उसकी सही उम्र का पता लगाया जा सके।
नियमावली पढ़ते हुये यौन कर्मियों के स्व-नियामक बोर्ड की सदस्य गीता घोष ने कहा, "18 साल की उम्र से पहले वह यहां काम करने के बारे में सोच भी नहीं सकती हैं।"
"हम यह पुष्टि करना चाहते हैं कि उस पर किसी प्रकार का दबाव या बल तो नहीं है। ऐसी किसी बात का संदेह होने पर हम उसे सीधे उसके घर वापस भेज देंगे।"
घोष नेपाल, बांग्लादेश और भारत के पूर्वी राज्य पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाकों से लड़कियों की तस्करी रोकने के लिए सोनागाछी में एक दशक पहले गठित इस स्व-सहायता बोर्ड की नयी सदस्य है।
2007 में लाभ निरपेक्ष समूह- दरबार महिला समन्वय समिति द्वारा इस बोर्ड के शुभारम्भ के बाद से अब तक राज्य में इस प्रकार के 33 बोर्ड हैं।
यौन कर्म के लिये आने वाली नयी लड़कियों की जांच के इनके प्रयासों से तस्करी की गई हजारों लड़कियों और महिलाओं का पता चला है।
कार्यकर्ताओं का कहना है कि 1992 और 2011 के दौरान सोनागाछी में यौन कर्म में शामिल नाबालिगों की संख्या 25 से घट कर दो प्रतिशत रह गई है।
कोलकाता में तस्करी रोधी इकाई की प्रमुख और पुलिस अधिकारी सरबरी भट्टाचार्य ने कहा, "अब सोनागाछी या राज्य के अन्य रेड लाइट क्षेत्र में कम उम्र की या अनिच्छुक यौन कर्मी का मिलना मुश्किल है।"
"लड़कियों की तस्करी की जाती है, लेकिन उन्हें यौनकर्मियों की निगरानी वाले वेश्यालयों में नहीं भेजा जा रहा है। अब हम अपनी कार्यवाही आवासीय क्षेत्रों और होटलों में कर रहे हैं।"
"वेश्यालयों पर निगरानी"
कार्यकर्ताओं का अनुमान है कि देश में 30 से 90 लाख यौन तस्करी पीड़ित हैं। उनका कहना है कि कई पीडि़त समाज से बहिष्कृत किये जाने, उनके तस्कर द्वारा उत्पीडि़त किये जाने या पुलिस द्वारा गंभीरता से नहीं लिये जाने के डर से सामने नहीं आते हैं।
ज्यादातर पीड़ित अक्सर गरीब पृष्ठभूमि के होते हैं, जिन्हें नौकरी दिलाने का झांसा देने के बाद देह व्यापार के लिये बेच दिया जाता है।
बोर्ड की सदस्य ममता नंदी ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "जब मैं किशोरी थी उस समय मुझसे घरेलू नौकरानी का काम दिलाने का वादा करके यहां लाया गया था।"
"मैं अपनी इच्छा के बगैर इन गलियों में आई लड़कियों को पहचान सकती हूं। मुझे पता है कि इस दल दल में फंसने पर कैसा लगता है। जब मेरी इच्छा के विरुद्ध मुझे यहां लाया गया था उस समय मुझसे किसी ने भी बात नहीं की थी, लेकिन अब मैं लोगों से बात कर यह सुनिश्चित करती हूं कि किसी भी 14 वर्षीय किशोरी का शोषण ना हो।"
घोष और नंदी भी उन निगरानी समूहों का हिस्सा हैं, जो वेश्यालयों में रहते और काम करते हैं।
चौबीस घंटे निगरानी की जाती है और रोजाना प्रत्येक सदस्य बहुमंजिली इमारतों में चल रहे बारह-तेरह वेश्यालयों में नई लड़कियों की पहचान के लिये जाते हैं।
"सोनागाछी में जीवन"
जनवरी में सर्दियों की एक खुशनुमा सुबह, सोनागाछी की कुछ महिलाएं अपने वेश्यालयों की सीढि़यों पर बैठी धूप सेंक रही हैं। सीलन भरे गलियारों में बर्तन साफ किये जा रहे हैं, ढ़ेर सारे कपड़े धोये जा रहे हैं और खाना पकाया जा रहा है।
यही समय होता है जब घोष और नंदी वेश्यालयों की मालकिनों के साथ दोस्ताना अंदाज में बातचीत करती हैं। वे आपस में हंसी मजाक करते हुये गपशप करते हैं और यहां से जाते समय निगरानी समूह के सदस्य उन्हें याद दिलाते हैं कि उन्हें नई लड़कियों को जांच के लिये बोर्ड में भेजना है।
दिन ढ़लते ही इन गलियों में गहमा-गहमी बढ़ जाती है। अब बातचीत का समय नहीं है क्योंकि महिलाएं अपनी लिपस्टिक को और गाढ़ा कर कॉलेज के लड़के, प्रवासी मजदूर, छोटे मोटे व्यापारी या टाई बांधे कोई सज्जन के समूह में अपने पहले ग्राहक के लिए सज धज कर तैयार हो जाती हैं।
अब निगरानी दल की महिलाएं अपना तरीका बदलकर संकीर्ण गलियों में चुपचाप चलते हुये यहां की हर नयी लड़की पर नजर रखती हैं और दलालों से केवल यह पूछती हैं कि वे सोनागाछी के नियमों का पालन कर रहे हैं या नहीं।
नियामक बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार हर महीने लगभग 35 नई लड़कियां सोनागाछी आती हैं।
प्रत्येक लड़की के कागजातों की जांच और वेश्यालय में आने के कारणों के सत्यापन करने के लिये उन्हें तीन दिनों तक लघु अवधि आश्रय गृह में रखा जाता है।
घोष ने कहा कि उम्र का पता लगाने के लिये कलाई, कोहनी और कुल्हे का एक्स-रे लिया जाता है, क्योंकि कई लड़कियां अपने साथ 18 साल या उससे अधिक उम्र संबंधी जाली दस्तावेज लाती हैं।
अखिल भारतीय यौन कर्मी नेटवर्क के सलाहकार स्मरजीत जना ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "इस तस्करी रोधी मॉडल के परिणाम नजर आने लगे हैं और इसके गठन के एक दशक के बाद अब हम इनका आकलन कर सकते हैं।"
"अन्य तस्करी रोधी संयुक्त प्रयासों की तुलना में बोर्ड ने लगभग तीन गुना अधिक महिलाओं और लड़कियों की सहायता की है।"
"भरोसा कायम करना"
एक डॉक्टर, परामर्शदाता और निर्वाचित प्रतिनिधि सहित 10 सदस्यों के बोर्ड की सफलता मैसूर में भी गूंज रही है।
8,000 से अधिक महिला, पुरुष और ट्रांसजेंडर यौनकर्मियों ने मिलकर "अविश्वास और उपहास के बावजूद" यहां एक स्व-नियामक बोर्ड- अशोदय समिति का गठन किया।
अशोदय समिति की सलाहकार और सहायक प्रोफेसर सुज़ेना रजा-पॉल ने कहा, "कई लोगों ने तो यौनकर्मियों पर ही तस्करी करने का आरोप लगाते हुये उनके इरादों पर सवाल उठाए थे।"
"और मैसूर में तो कोई परिभाषित रेड लाइट जिला ही नहीं है। इसलिये बोर्ड अपने व्यापक सामाजिक नेटवर्क के जरिये तस्करी पीडि़तों की पहचान करता है।"
लेकिन बोर्ड के सदस्यों का कहना है कि उनके सामने अभी भी कई चुनौतियां हैं। जब वे तस्करी की गई युवा लड़कियों को वापस उनके घर भेजते हैं तो कई माता पिता उन्हें स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं।
घोष ने कहा, "हम अपने सदस्यों के माध्यम से उनका पता लगाते रहते हैं। हम कोशिश करते रहते हैं और हम जानते हैं कि हमारे इन प्रयासें से कुछ तो अंतर आया ही है।"
(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- रोस रसल; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिला अधिकारों, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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