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मानव तस्कलरी पर शिकंजा कसने में पुलिस की मदद के लिये नया सॉफ्टवेयर

by अनुराधा नागराज | @anuranagaraj | Thomson Reuters Foundation
Wednesday, 8 February 2017 00:00 GMT

A rickshaw puller sits outside a makeshift cinema located under a bridge in the old quarters of Delhi, India May 25, 2016. REUTERS/Cathal McNaughton

Image Caption and Rights Information

    बेंगलुरू,  8 फरवरी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - पुलिस के लिये नया सॉफ्टवेयर तैयार करने वालों का कहना है कि इससे पूर्वोत्तर भारत में मानव तस्करी के खिलाफ लड़ाई में क्रांतिकारी बदलाव और बांग्लादेश तथा म्यांमार की सीमा पार से होने वाले अपराधों की जांच में तेजी लाने में मदद मिलेगी।

  छह राज्यों में अब पुलिस के पास इम्‍पल्‍स केस इंफो सेंटर सॉफ्टवेयर होगा, जो खुफिया जानकारी साझा करने के नए तरीके, वांछित तस्करों का डेटाबेस पाने और आपराधिक मामलों की ताजा स्थिति की जानकारी उपलब्‍ध करायेगा।

    सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में 2015 में पिछले साल की तुलना में मानव तस्करी के मामले 25 प्रतिशत बढ़े हैं और असम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों से सबसे अधिक नाबालिग लड़कियों की तस्करी की जा रही है।

     कार्यकर्ताओं का कहना है कि वर्षों से पूर्वोत्तर के कई हिस्सों में जातीय संघर्ष होने के कारण यह क्षेत्र तस्‍करी का केंद्र बिंदु बन गया है। उन्‍होंने कहा कि ये इलाके मानव तस्‍करी के स्रोत, गंतव्य और पारगमन स्‍थान भी हैं।

  स्टार्ट-अप डीएफएम इंफो एनालिटिक्स के संजीवन देवनाथ ने कहा कि इस सॉफ्टवेयर को विकसित और ठीक करने में दो साल लग गए।

     देवनाथ ने कहा, "सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि इस सॉफ्टवेयर का इस्‍तेमाल पुलिसकर्मी करने वाले थे और उनमें से कईयों ने पहले कंप्यूटर पर काम ही नहीं किया था।"

      इस प्रणाली को विकसित करने में देवनाथ के साथ काम करने वाली धर्मार्थ संस्‍था- इम्‍पल्‍स की सलोमी थोमी ने कहा कि इस सॉफ्टवेयर पर तस्करों के विवरण जैसी विस्तृत जानकारी कराई जा सकती है।

     थोमी ने कहा, "इसकी सबसे अच्छी विशेषता चेतावनी प्रक्रिया है, जिसके जरिये जांचकर्ता को उस तस्‍कर के अन्‍य मामलों में लिप्‍त होने के बारे में जानकारी दि जाती है, जिसकी वे जांच कर रहे हैं।"

      तस्‍करों के गिरोह हर साल देश के गरीब ग्रामीण क्षेत्रों से हजारों लोगों को शहरों मे लाते हैं और यहां उन्हें बंधुआ मजदूरी करने के लिये बेच दिया जाता है या बेईमान मालिकों के पास काम पर रखा जाता है।

  उनमें से कई घरेलू नौकरानी के तौर पर या ईंट भट्ठों में मजदूरी करते, रेस्‍टोरेंट या वस्त्र और कढ़ाई के छोटे कारखानों में काम करते हैं। कई महिलाओं और लड़कियों को वेश्यालयों में बेच दिया जाता है।

  इस सॉफ्टवेयर के जरिये देश के पूर्वोत्तर राज्यों को बांग्लादेश और म्यांमार की तस्करी रोधी इकाइयों के साथ जोड़ा गया है, जिससे सीमा पार से होने वाले अपराधों की जांच में तेजी आयेगी।

  देवनाथ और उनकी टीम ने तस्करी के मामलों के आंकड़ों की तुलना की, तस्‍करों का डाटाबेस तैयार किया, तस्‍करी के लिये अक्सर उपयोग किये जाने वाले मार्गों और तस्‍करों के निशाने पर रहने वाले कमजोर व्‍यक्तियों के बारे में जानकारियां इकठ्ठा की हैं।  

  सिक्किम में तस्करी रोधी इकाई प्रमुख यांकीला भूटिया ने कहा, "इस प्रणाली से जुड़कर हमने कई मामले हल किये हैं। कई तस्कर इस क्षेत्र की सीमाओं के आर-पार सक्रिय हैं और इस प्रणाली से उनका पीछा करना आसान हो गया है।"

(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- एड अपराइट; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org

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