मुंबई, 8 फरवरी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - पश्चिमी भारतीय शहर ठाणे की शांत सड़क में पारंपरिक किराना स्टोर और पुरुष हेयर सैलून के बीच एक कार्यालय का होना कुछ अजीब सा लग सकता है।
लेकिन यह 'कानूनी सहायता क्लीनिक' देह व्यापार से मुक्ति के बाद तस्करी पीडि़तों को उनके अधिकारों के बारे में जानकारी देने का सरकार का नवीनतम प्रयास है।
अंतरराष्ट्रीय न्याय मिशन-अभियान समूह के माइकल यांगड ने कहा, "अधिकतर पीड़ितों को लगता है कि गरीबों के लिए कोई न्याय प्रणाली नहीं है और उनकी मुक्ति के बाद भी उनका संघर्ष जारी रहता है।"
यांगड के लाभ निपपेक्ष संगठन ने एक स्थानीय न्यायिक निकाय- जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के साथ मिलकर इस क्लिनिक की स्थापना की है।
पिछले सप्ताह खुले इस नए केंद्र में वकील पीड़ितों की शिक्षा, रोजगार और आवास लाभ तक पहुंच बनाने में सहायता करते हैं। एक साल से अधिक समय से वे यह लाभ पाने के पात्र थे।
गरीबों को निशुल्क कानूनी सेवाएं देने और विवादों को सुलझाने में मदद करने के लिये इसी प्रकार के क्लीनिक देशभर में हैं। लेकिन मुंबई से केवल 20 किलोमीटर दूर ठाणे का यह पहला क्लिनिक है, जहां केवल यौन तस्करी से मुक्त कराये गये पीडि़तों को मदद उपलब्ध कराई जाती है।
"पीडि़त अनुकूल"
सरकार ने 2015 के अंत में तस्करी पीड़ितों को कमजोर समुदायों या वंचितों के लिए बनाये गये सरकारी कार्यक्रमों का लाभार्थी बनाने के लिये एक नई योजना की शुरुआत की।
विशेषज्ञों का कहना है योजनाओं के बारे में कोई जागरूकता नहीं है और पीड़ितों के लिये लाभ पाने का कोई और तरीका नहीं है।
ठाणे के इस केंद्र के जरिये तस्करी से बचाये गये पीडि़तों के नाम लाभार्थी के लिये मंजूरी देने वाले सरकारी अधिकारियों को सौंप कर यह स्थिति बदलने की उम्मीद है। अदालती मामलों के लिए भी कानूनी सहायता प्रदान की जाएगी।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले दो वर्ष में मुंबई की मानव तस्करी रोधी इकाई ने 600 से अधिक लड़कियों को बचाया है।
समाचार एजेंसियों का कहना है कि 2014 से लेकर 2015 तक 14,000 से अधिक लड़कियों को भारतीय देह व्यापार से मुक्त कराया गया है।
कार्यकर्ताओं का कहना है कि धर्मार्थ संस्थाएं बचायी गयी लड़कियों के लिए पुनर्वास और व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र चलाते हैं, लेकिन मुक्ति के बाद अक्सर उनका जीवन दुखद रहता है और दोबारा उनकी तस्करी किये जाने का खतरा बना रहता है।
तस्करी रोधी धर्मार्थ संस्था- प्रज्वला की संस्थापक सुनीता कृष्णन ने कहा, "अगर किसी पीडि़त को पुनर्वास के विकल्प के बगैर एक घर में रखा जाता है तो यह दूसरा ज़ुल्म है, क्योंकि ऐसी स्थिति दोबारा उसकी तस्करी होने में सहायक होती है।"
"आजमाया और परखा गया"
पुलिस, स्थानीय अदालत के अधिकारियों और धर्मार्थ संस्थाओं को क्लिनिक के बारे में बताया गया है, ताकि वे मुक्त करायी गयी लड़कियों को मदद के लिए यहां भेज सकें।
ठाणे के जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में न्यायाधीश डी एन खेर ने कहा, "भिवंडी और कल्याण में तस्करी के मामले हैं, जो ठाणे के नजदीक है। ऐसे में यह क्लिनिक मददगार साबित हो सकता है।"
2014 की तुलना में 2015 में भारत में मानव तस्करी के मामले 25 प्रतिशत बढ़े हैं।
फिर भी आम तौर पर सरकारी योजनाओं को जिस संदेह से देखा जाता है वैसा कानूनी सहायता क्लीनिक के बारे में नहीं लगता है।
कृष्णन ने कहा कि इसका कारण यह है कि पीड़ितों को लाभ मिल रहे हैं।
उन्होंने कहा, "2003 से हम सरकारी योजनाओं के तहत आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में 700 लड़कियों के लिए आवास पाने में सफल रहे हैं। अब यही मॉडल राष्ट्रीय स्तर पर भी लागू किया जा रहा है।"
(रिपोर्टिंग- रोली श्रीवास्तव, संपादन- एड अपराइट और लिंडसे ग्रीफिथ; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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