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भारतीय परिधान कर्मियों का कारखाने में घायल होने के बाद न्याय पाने का संघर्ष

by अनुराधा नागराज | @anuranagaraj | Thomson Reuters Foundation
Thursday, 9 February 2017 12:20 GMT

An employee works at the production line of at a textile mill in Ahmedabad September 10, 2013. REUTERS/Amit Dave

Image Caption and Rights Information

    चेन्नई, 9 फरवरी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)- रासू महालक्ष्मी को कारखाने में हुई एक दुर्घटना में अपनी चार उंगलियां गंवाने का मुआवजा मिलने पर कोई खुशी नहीं हुई थी। मदद के लिए सात साल इंतजार करने के बाद उसके जीवन को बदल देने वाली चोट के इलाज के लिए उसे सिर्फ एक लाख 36 हजार रुपये मिले थे।

   कार्यकर्ताओं का कहना है कि उसका संघर्ष समाप्‍त नहीं हुआ है। देश के कपड़ा उद्योग में औसतन ऐसी ही दुर्दशा होती है।

     महालक्ष्मी ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "मैंने अपनी उंगलियां, आजीविका और आत्‍मविश्वास खो दिया।"

  तमिलनाडु के एक कारखाने में हुई दुर्घटना के समय यह परिधान कर्मी 19 साल की थी। पिछले साल दिसंबर में अपनी चिकित्‍सा शुल्‍क के लिए सरकार की ओर से एक लाख 36 हजार रुपये  पाने वाली महालक्ष्मी अब 26 वर्ष की हो गई है।

     कारखाना प्रबंधन से पांच लाख रुपये का भुगतान पाने के लिए उसकी लड़ाई अभी  भी जारी है।

     महालक्ष्मी ने कहा, "उन्‍होंने तत्काल सर्जरी और अस्पताल में इलाज का भुगतान तो किया, लेकिन उसके बाद उन्‍होंने मेरी कोई खबर नहीं ली।"

     "मुझे कई बार डॉक्टर को दिखाने, दवाईयां खरीदने और पट्टियां बदलवाने के लिये अस्‍पताल जाना पड़ता था। वह सारा खर्च मुझे ही वहन करना पड़ा था।"

     महालक्ष्मी को सुमंगली योजना के अंतर्गत रोजगार दिया गया था, जो बाल श्रम का ही एक रूप है। इसके तहत किशोरियों को तीन से पांच साल के लिए नौकरी पर रखा जाता है और उनके विवाह में दहेज देने के लिए एक मुश्त राशि देने का वादा किया जाता है। उसे तीन साल के बाद 30,000 रुपए देने का वादा किया गया था।

  "बाहर का रास्‍ता दिखाया"

      फिर यह दुर्घटना हो गई।  

     उसकी जिंदगी हमेशा के लिए कैसे बदल गयी वह याद करते हुये उसने कहा, "एक दिन मुझे अचानक ऐसी मशीन पर काम करने को कहा गया, जिसके बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं थी।"

   महालक्ष्मी ने कहा कि जब वह अपने माता पिता के साथ प्रबंधकों के पास गई और मुआवजे की मांग की तो उसे "बाहर का रास्‍ता दिखाया" गया।

  राज्य बीमा योजना के लिये महालक्ष्मी के वेतन से पहले ही पैसा काट लिया गया था। इस बीमा योजना के तहत कर्मियों के लिये निशुल्क चिकित्सा उपचार की गारंटी होती है। घायल होने से पहले जो दो साल उसने काम किया था उसका पैसा भी महालक्ष्‍मी को नहीं दिया गया।

  कार्यकर्ताओं का कहना है कि बीमा योजना के लिये कारखाने अपने हिस्से की राशि नहीं दे रहे हैं या किश्तों में भुगतान कर रहे हैं। जिसका अर्थ है कि भारत के 40 बिलियन डॉलर के परिधान और कपड़ा उद्योग में न्याय के लिए उसका संघर्ष एक सामान्‍य बात है।

  "काम नहीं तो वेतन नहीं"

  अंत में जब महालक्ष्मी को पैसा मिला उसी समय एक और नाटक शुरू हुआ। कपड़ा कारखाने की एक वैन चेन्नई के पास पलट गई, जिसमें एक महिला दर्जी एम मुनियाम्‍मल और 11 अन्य लोग घायल हो गये।

  दुर्घटना के दो सप्‍ताह के बाद ही मुनियाम्‍मल वापस कारखाने की एक सिलाई मशीन पर वैश्विक ब्रांडों के लिए कपड़े सिल रही थी।

   उसकी चोट अभी ठीक भी नहीं हुई थी और उसे काफी दर्द हो रहा था। लेकिन उसकी सहकर्मी ए नित्या के अनुसार उसके पास कोई विकल्‍प नहीं था।

   नित्या ने कहा, "उस दुर्घटना में हम 12 लोग घायल हुये थे। हमें बताया गया था कि अगर हम वापस काम पर आते हैं तभी हमें चिकित्सा खर्च के लिए मुआवजा और वेतन का भुगतान किया जाएगा। उसे पैसे की जरूरत थी।"

     दो महीने हो गये हैं और ये महिलाएं अपने बिलों का पैसा वापस पाने और अपनी नौकरी बचाने के लिए संघर्ष कर रही हैं।

  अपना पूरा नाम न बताने वाली प्रेमा के हाथ में भी उसी दुर्घटना में चोट लगी थी। उस वैन में वह अपने छह साल के बेटे के साथ काम करने के लिए आ रsही थी। प्रेमा ने कहा कि नवम्बर महीने का वेतन लेने के लिये उसे दस बार कारखाने जाना पड़ा था।

  कारखाना के प्रबंधकों ने इन आरोपों से इनकार किया है।

  नाम ना छापने की शर्त पर कंपनी के एक प्रतिनिधि ने कहा, "हम भुगतान करने के लिये तैयार हैं, लेकिन उन्‍हें हमें उचित चिकित्सा रिकॉर्ड दिखाना होगा।"

  "हमारे यहां ऑडिट होता है, जहां हमें हर खर्च का औचित्य देना पड़ता है। अगर वे काम पर नहीं आते हैं तो हम उन्हें वेतन कैसे दे सकते हैं?"   

    "संघर्ष की तैयारी"

    कार्यकर्ताओं का कहना है कि एक अनुमान के अनुसार भारत के परिधान और कपड़ा उद्योग में चार करोड़ 50 लाख कर्मी कार्यरत हैं, लेकिन काम करते समय जब भी कोई घायल होता है तो संघर्ष की तैयारी आरंभ हो जाती है।

   

   गारमेंट एंड फैशन वर्कर्स यूनियन की सुजाता मोदी ने कहा, "दुर्घटनाओं का पूरे परिवार पर असर पड़ता है, क्योंकि ऐसे ज्यादातर घरों में महिलाएं ही कमाऊ सदस्य होती हैं।"

  "इस मामले में कंपनी ने चिकित्सा बीमा की अपने हिस्से की राशि का भुगतान नहीं किया था, हालांकि वे हर महीने कर्मियों के वेतन से बीमे का हिस्‍सा काट रहे थे।"

   लाभ निरपेक्ष संस्‍था- सामाजिक जागरूकता और स्वैच्छिक शिक्षा के फेलिक्स जयकुमार ने  2016 में तमिलनाडु के "कपड़ा घाटी" में कारखानों में 13 दुर्घटनाओं और आठ लोगों की मृत्यु के कागजात तैयार किये हैं।

  उन्होंने कहा कि प्रत्‍येक मामले में चिकित्सा व्यय और घायल अपना पैसा या अपनी नौकरी खोये बिना कितने समय तक काम से छुट्टी ले सकते हैं ऐसे विषयों पर प्रबंधन के साथ लंबा विचार-विमर्श हुआ था।   

  जयकुमार ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "ज्यादातर मामलों में प्रबंधन ने कुछ हजार रुपये का भुगतान कर मामले को समाप्त करने की कोशिश की।  यहां तक कि मृत्यु के मामलों में भी वे यह नहीं सोचते हैं कि अक्सर महिला ही अपने परिवार की एक मात्र कमाऊ सदस्य है।"

  (1 डॉलर = 67.175003 रुपये)

 

(रिपोर्टिंग-अनुराधा नागराज, संपादन- एड अपराइट और लिंडसे ग्रीफिथ; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

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