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शिशुओं को बेचने के आरोप में पूर्वी भारत में अनाथालय बंद

by अनुराधा नागराज | @anuranagaraj | Thomson Reuters Foundation
Tuesday, 21 February 2017 14:44 GMT

In this file photo, orphans walk in the corridor of an orphanage on the outskirts of Srinagar, India, May 15, 2007. REUTERS/Adeel Halim

Image Caption and Rights Information

चेन्नई, 21 फरवरी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - पूर्वी भारत में पुलिस ने मंगलवार को कहा कि निःसंतान दंपत्तियों को अवैध रूप से शिशुओं को बेचने के आरोप में एक अनाथालय बंद कर उसके मालिक को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस जांच कर रही है कि गोद लेने का यह गोरखधंधा कहीं व्यापक मानव तस्करी ऑपरेशन का हिस्सा तो नहीं था।

पुलिस का कहना है कि पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में एक लाभ निरपेक्ष संगठन द्वारा चलाये जा रहे इस अनाथालय ने  गोद लेने के लिए कम से कम 24 बच्चों को बेचा था।

पश्चिम बंगाल के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की रश्मि सेन ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "दुख की बात यह है कि अनाथालय प्रमुख बेसहारा महिलाओं के लिए एक आश्रय गृह भी चला रहा था और उन महिलाओं के बच्चों को बेच रहा था।"

"जांच के दौरान यह भी पता लगाया जायेगा कि गोद लेने के रैकेट को चलाने के लिये कहीं महिलाओं की तस्‍करी कर उन्‍हें इस आश्रय गृह में तो नहीं लाया गया था।"

तीन महीने पहले बंदरगाह शहर कोलकाता के पास से 13 शिशुओं को बचाने और दो अन्य शिशुओं के कंकाल मिलने के बाद सप्ताहांत में यह छापे मारे गये थे।  

उस समय जन्‍म देने के तुरंत बाद  महिलाओं के शिशुओं को लेकर उन्‍हें मृत बच्‍चा पैदा होने की सूचना देने के संदेह में डॉक्टरों, दाइयों और धर्मार्थ संस्‍थाओं और क्लीनिकों के मालिकों सहित 18 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

जलपाईगुड़ी बाल कल्याण समिति के सुबोध भट्टाचारजी ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "इस गृह (जलपाईगुड़ी में) में 17 ऐसे बच्चे रखे गये थे, जिनका अभी तक कोई सुराग नहीं मिला है।"

"वे जारी किये गये दिशा-निर्देशों का उल्लंघन कर हमारी जानकारी के बगैर बच्चों को गोद दे रहे थे।"

पुलिस ने बताया कि पश्चिम बंगाल का अनाथालय शिशुओं को बेचने के लिए जाली दस्तावेज, नकली स्टांप और प्रमाण पत्र का इस्तेमाल कर रहा था तथा सरकार की ओर से पहले भी उन्‍हें कई बार चेतावनी दी गई थी।

यह अनाथालय केन्द्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण के साथ पंजीकृत था और जलपाईगुड़ी जिले में केवल इसी अनाथालय में गोद देने के लिए बच्चों को रखने की अनुमति थी।

शिशुओं को एक से दो लाख रुपये में बेचा जा रहा था।

सेन ने कहा, "पिछले साल की हमारी अपनी जांच में पता चला था कि बच्चों को उस सरकारी प्रणाली में शामिल ही नहीं किया गया था, जो प्रत्‍येक लावारिस बच्चे की जानकारी दर्ज करने के लिये अनिवार्य होता है।"

"जनवरी में हमने 15 बच्चों को उनकी सुरक्षा के लिए इस अनाथालय से अन्य गृहों में भेजा था। वे सभी पांच साल से कम उम्र के थे और उनमें से कुछ बच्‍चों का जन्‍म तो कुछेक माह पहले ही हुआ था।"

जानकारों का कहना है कि भारत में शिशुओं की तस्करी संगठित अपराध बनता जा रहा है।

मानवाधिकार समूह- चाइल्‍ड राइट्स एंड यू की मोहुआ चटर्जी ने कहा, "ये घटनाएं मौजूदा कानूनों में अक्षरश: बाल अधिकारों का घोर उल्लंघन हैं।"

"कानून के तहत उपलब्‍ध दिशा निर्देशों और उपायों के बावजूद गोद लेने की प्रक्रिया की बारीकियां अभी भी भावी माता पिता की समझ से परे हैं और उचित ज्ञान की कमी के कारण वे अक्सर गलत काम करने वालों के झांसे में आ जाते हैं।"

सरकार के अपराध के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2014 की तुलना में 2015 में देश में मानव तस्करी की 25 प्रतिशत अधिक शिकायतें दर्ज हुई थीं, जिनमें से 40 प्रतिशत से अधिक मामले बच्चों से जुड़े हुये थे।

(रिपोर्टिंग-अनुराधा नागराज, संपादन- रोस रसल; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

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