मुंबई, 23 फरवरी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) – शाइनी वर्गीज पडीयारा को पता था कि वेश्यालय से छुड़ाकर पुणे के उनके आश्रय गृह में लाई गयी महिला के गर्भपात करवाने की समय सीमा समाप्त हो रही है, क्योंकि वह अपने 19 सप्ताह के गर्भ को गिराना चाहती थी।
उनके पास केवल एक सप्ताह का समय था, क्योंकि उसके बाद भारत में गर्भपात नहीं होगा। यहां केवल असाधारण परिस्थितियों में ही 20 सप्ताह के बाद गर्भ गिराने की अनुमति दी जाती है।
इसलिये पडीयारा ने महिला की यौन तस्करी के मामले की सुनवाई कर रही अदालत में जल्द ही गर्भपात करवाने की याचिका दायर की।
रेस्क््यू फाउंडेशन आश्रय गृह की अधीक्षक पडीयारा ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "सुनवाई के लिये याचिका आने में एक सप्ताह का समय निकल गया था। अदालत ने याचिका स्वीकार करने से ही मना कर दिया। उनका कहना था कि इस मामले में वे कुछ नहीं कर सकते हैं।"
देश के एक कोने से दूसरे कोने तक पश्चिम बंगाल से तस्करी कर पुणे लायी गयी महिला ने इसी महीने एक बेटे को जन्म दिया, जिसे बाद में उसने गोद देने के लिए सौंप दिया।
तस्करी और दुष्कर्म पीड़िताओं को परामर्श देने वालों का कहना है कि पहले से ही यौन अपराध सहने वाली महिलाओं के लिए अपनी इच्छा के बगैर गर्भधारण करना और फिर पैदा हुये बच्चे को गोद देना दर्दनाक दोहरा दंश होता है।
काउंसलर लीना जाधव ने कहा, "16 साल की एक लड़की ने मुझे बताया कि जब वह गर्भ गिराना चाहती थी तो उस समय किसी ने भी उसकी मदद नहीं की, लेकिन अब उसके बच्चे को गोद देने के लिए कहा जा रहा है।"
"याचिकाओं की बाढ़"
पिछले कुछ महीनों में देश के उच्चतम न्यायालय में एक दुष्कर्म पीडि़ता सहित महिलाओं की ओर से 20 सप्ताह के बाद गर्भ गिराने की अनुमति देने के लिये कई याचिकाएं दायर की गई हैं।
प्रत्येक मामले में अदालत ने गर्भपात की अनुमति देने से पहले इसे चिकित्सा विशेषज्ञ समितियों के पास भेजा था।
भारतीय कानून में 20 सप्ताह के बाद गर्भ गिराने की अनुमति तभी मिल सकती है जब चिकित्सीय जांच में यह पता चलता है कि गर्भवती महिला का जीवन खतरे में है।
कार्यकर्ताओं की मांग है कि मानक 20-सप्ताह के प्रतिबंध को बढ़ाकर 24 सप्ताह किया जाये, क्योंकि अधिकतर दुष्कर्म और तस्करी पीडि़ताओं के गर्भधारण की खबर देर से पता चलती है।
कार्यकर्ताओं का यह भी कहना है कि जैसा कि अदालतों का फैसला चिकित्सीय राय पर आधारित होता है, ऐसे में निर्णय लेने के लिए डॉक्टरों को कानूनी रूप से सक्षम बनाना चाहिये, ताकि महिलाओं को कानूनी पचड़ों से बचाया जा सके।
धर्मार्थ स्वास्थ्य संस्था- स्वास्थ्य और स्वास्थ्य संबद्ध विषय पूछताछ केंद्र (सेहत) की संगीता रेगे ने कहा, "सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारणों से महिलाएं अपने गर्भधारण के बारे में देर से बताती हैं। अस्पतालों को फैसला लेने के लिए विशेषज्ञ समितियां गठित करनी चाहिये।"
"एक तो देरी ऊपर से इनकार"
सरकारी आंकड़ों के अनुसार साल 2015 में देश के 9,127 तस्करी पीडि़तों में से 43 प्रतिशत 18 साल से कम उम्र के थे।
तस्करी रोधी धर्मार्थ संस्था- प्रेरणा की प्रीति पाटकर ने कहा कि उनके सामने ऐसे कई मामले आये, जहां वेश्यालयों में काम करने वाली लड़कियों को पता था कि वे गर्भवती हैं, लेकिन उन्होंने यह मान लिया था कि गर्भपात कराना गैरकानूनी होगा। इसलिये जब तक उन्हें छुड़ाया नहीं गया तब तक उन्होंने कुछ नहीं बताया। इसके चलते और देरी हो गई।
सेहत ने दुष्कर्म के मामलों में कानून में संशोधन के लिए दृढ़ता से अभियान चलाया था। उनका कहना है कि दुष्कर्म होने के 72 घंटे के भीतर अगर पीडि़ता मदद मांगती है तो उसे अस्पताल में आपातकालीन गर्भनिरोधक दिये जाने चाहिये।
लेकिन अगर पीडि़ता यौन उत्पीड़न का हवाला देते हुए 20 सप्ताह के बाद गर्भपात कराने अस्पताल जाती है तो उससे प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) या पुलिस के पास दर्ज शिकायत की प्रति मांगी जाती है।
भारतीय लॉ सोसायटी के लॉ कॉलेज की वाइस प्रिंसिपल जया सगाडे ने कहा, "अभी भी गर्भपात को अधिकार के रूप में मान्यता नहीं मिली है। यौन उत्पीड़न और गर्भ जारी रखने से मानसिक पीड़ा हो सकती है ये साबित करने के लिए अस्पताल में डॉक्टर को एफआईआर
दिखाना जरूरी होता है।"
कार्यकर्ताओं का कहना है कि कई दुष्कर्म पीडि़ताएं कलंक और अत्याचार के डर से आपराधिक शिकायत दर्ज नहीं करवाना चाहती हैं, लेकिन गर्भपात कराने के लिये उन्हें मजबूरन शिकायत दर्ज करवानी पड़ती है।
कार्यकर्ताओं का कहना है कि अगर यौन उत्पीड़न के कारण गर्भधारण किया गया है तो गर्भपात करवाने के लिए भारतीय कानून में संधोधन किये गये हैं। लेकिन चिकित्सा और कानूनी औपचारिकताओं के कारण ऐसा शायद ही कभी हो पाता हो।
रेगे ने कहा, "पिछले तीन-चार महीनों में हमारे सामने कम से कम चार ऐसे मामले आये, जिनमें महिलाओं को गर्भपात कराने की अनुमति नहीं दी गई थी, क्योंकि उन चारों के गर्भ की अवधि बीसवें सप्ताह में था।"
"दोबारा शोषण"
रेगे के संगठन से मदद लेने वालों में दुष्कर्म पीडि़त एक किशोरी ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया कि लगातार दो महीने उसकी माहवारी नहीं आने पर भी उसे कभी नहीं लगा कि वह गर्भवती है।
उसने परिजनों के डर से दुष्कर्म के बारे में उनको कुछ नहीं बताया था। जब उसका पेट बढ़ने लगा तब उसे खुद के गर्भवती होने का पता चला था।
उसने कहा, "मैं बहुत डर गयी थी। मेरी चाची मुझे अस्पताल ले गयी थी और मैं वहां गर्भपात कराने की उम्मीद से गयी थी और मैंने सोचा था कि इससे मेरी सारी चिंताएं दूर हो जायेगी।"
उसका गर्भपात करने से मना कर दिया गया था, क्योंकि उसका गर्भ 20 सप्ताह की समय सीमा से अधिक का हो गया था। किशोरी ने जनवरी में बच्चे को जन्म दिया और उस बच्चे को गोद देने वाली एक एजेंसी को सौंप दिया गया।
(रिपोर्टिंग- रोली श्रीवास्तव, संपादन- एड अपराइट और लिंडसे ग्रीफिथ; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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