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एकजुटता के पत्रों के जरिये तस्करी पीडि़ताओं से संबंध बनाना

by अनुराधा नागराज | @anuranagaraj | Thomson Reuters Foundation
Wednesday, 1 March 2017 10:39 GMT

A labourer works inside a coal yard on the outskirts of the western Indian city of Ahmedabad in this 2010 archive photo. REUTERS/Amit Dave

Image Caption and Rights Information

-    अनुराधा नागराज

     चेन्नई, 1 मार्च (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) – जब यौन तस्‍करी से बचाई गई कोलकाता की रेजिना खातून ने 1,000 मील से भी दूर एक कताई कारखाने में महिलाओं का शोषण किये जाने के बारे में सुना तो उसने फैसला किया कि वह उन महिलाओं को हिम्‍मत ना हारने का आग्रह करते हुये पत्र लिखेगी।

       पिछले छह महीनों से खातून और जबरन वेश्‍यावृत्ति से बचायी गयी अन्‍य पीडि़ताएं ऐसी यौन तस्करी पीडि़ताओं और जबरन मजदूरी करने के लिये मजबूर लोगों के समर्थन में पत्र लिखने के लिए एकजुट हो रही हैं, जिनके बारे में  उन्‍हें समाचारों से पता चलता है।

      तमिलनाडु की एक कताई कारखाने में छह महिलाओं द्वारा पर्यवेक्षक और अन्य पुरुष कर्मियों से यौन उत्पीड़न झेलने के बाद अधिकारियों से मदद की अपील के बारे में थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन की खबर से खातून उन्‍हें हिम्‍मत बंधाने के लिये पत्र लिखने को मजबूर हो गई।

     एक पत्र में खातून और पश्चिम बंगाल की 12 अन्य तस्करी पीडि़ताओं ने उन महिलाओं से कहा कि वे उनका दर्द समझती हैं। उन्‍होंने अवांछित हरकतों का विरोध करने के लिये वेतन में कटौती सहित अपनी नौकरी खतरे में डाल कर शोषण के खिलाफ उनके साहस की भी सराहना की।

    उन्होंने लिखा, "जब हमने पर्यवेक्षक और कारखाने के पुरुष कर्मियों के घृणित व्यवहार के बारे में सुना तो हमें कैसा महसूस हुआ उसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है।"

     "आपकी उम्मीद, साहस और कठिनाई से उबरने की कोशिश में हम आपके साथ हैं, आपसे अनुरोध है कि आप अडिग रहें।"

    मानवाधिकार समूह- वॉक फ्री फाउंडेशन के नवीनतम वैश्विक गुलामी सूचकांक के अनुसार भारत में एक करोड़ 80 लाख से अधिक लोग गुलाम हैं, उनमें से कई महिलाएं और लड़कियां हैं, जिन्‍हें वेश्यालयों में बेचा जाता है या कई ईंट भट्टों और कपड़ा कारखानों में फंसे कर्मी हैं।

    खातून ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया कि वह स्‍वयं को तमिलनाडु की कर्मियों से जुड़ा हुआ महसूस करती है। खातून को 13 साल की उम्र में एक वेश्यालय में बेच दिया गया था।

    "मैंने वो सारे दुख सहे हैं जो वे झेल रही हैं इसलिये मैं उन्हें कहना चाहती हूं कि वे अपनी लड़ाई में अकेले नहीं हैं।"

    मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि अन्य पीड़ितों के साथ एकजुटता साझा करना तस्करी से बचाये गये पीडि़तों के लिये आपने अतीत से निपटने और वर्तमान का सामना करने में बहुत प्रभावी होता है।

     लाभ निरपेक्ष संस्‍था– संजोग में मनोवैज्ञानिक उमा चटर्जी ने कहा कि पत्र लिखने से पीडि़तों को सबसे सामान्‍य प्रश्‍न के समाधान में मदद मिलती है कि "आखिर मैं ही क्यों?"

     पत्रों का बंगाली से अंग्रेजी भाषा में अनुवाद करने में मदद करने वाली चटर्जी ने कहा, "इससे उन्हें लगता है कि वे अकेले नहीं हैं और यह एक दूसरे को जोड़ने में मददगार होता है तथा न्याय और समानता पाने के उनके प्रयास को सुदृढ़ करता है।"

    खातून ने कहा, "कारखाने में महिलाएं इतना उत्पीड़न सह रही थीं यह जानकर मुझे  बहुत गुस्‍सा आया था।"

      उसने कहा, "बचाए जाने से पहले चार साल तक मुझे कैद रखा गया, पीटा गया, प्रताडि़त किया गया और मेरे साथ दुष्‍कर्म किया गया था। लेकिन ये महिलाएं अभी भी कारखाने में फंसी हुई हैं, उनका शोषण जारी है।"

     इनमें से पांच महिलाएं अभी भी कारखाने में काम कर रही हैं। उन्‍होंने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन से उनकी एक पूर्व सहयोगी के माध्यम से पत्र मिलने की बात स्वीकार की है, लेकिन इस पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। 

(रिपोर्टिंग-अनुराधा नागराज, संपादन- एड अपराइट और केटी नुएन; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

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