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आभासी वास्तविकता के जरिये दर्शकों तक देह व्यापार की वास्तविकता लाना

Thursday, 2 March 2017 16:09 GMT

A woman plays a video game with the Oculus Rift VR headset at the mk2 VR, a place dedicated to virtual reality in Paris, France, in this 2016 archive photo. REUTERS/Benoit Tessier

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-    रोली श्रीवास्तव

    मुंबई, 2 मार्च (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - खिलाड़ियों को एक्‍शन के नजदीक महसूस करवाने के लिये गेमिंग में इस्तेमाल की जाने वाली आभासी वास्तविकता को पहली बार एक लड़की को देह व्यापार में ढ़केलने की गाथा के वृत्‍तचित्र (डॉक्‍यूमेंटरी) के जरिये मानव तस्‍करी का मुकाबला करने के लिये तैनात किया गया है।

     डॉक्‍यूमेंटरी में दर्शकों को एक युवा ग्रामीण लड़की के जीवन की वास्तविकता से रूबरू करवाने के लिये तथाकथित वर्चुअल रियलिटी- वीआर (आभासी वास्‍तविकता) तकनीक का इस्‍तेमाल किया गया है, जिसमें पिता द्वारा शादी कराने के बाद उस लड़की की तस्‍करी कर उसे एक वेश्‍यालय में भेज दिया जाता है।

      माय चॉइसेस फाउंडेशन की हैना नोर्लिंग ने गुरुवार को थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "आभासी वास्तविकता कहानी कहने का एक शक्तिशाली रूप है और इसके जरिये दुनिया भर के लोग इस कल्‍याण कार्य पर विशेष ध्यान देंगे।"

  माय चॉइसेस फाउंडेशन ने एक अमरीकी आभासी वास्तविकता तकनीकी कंपनी की धर्मार्थ संस्‍था- ओकुलस के साथ मिलकर यह फिल्‍म बनाई है, जिसे पहली बार इस महीने टेक्सास फिल्म समारोह में प्रदर्शित किया जायेगा।

   टीम को उम्‍मीद है की वह एक लड़की के जीवन पर केंद्रीत इस कहानी से दुनिया भर के लगभग दो करोड़ 10 लाख तस्करी पीड़ितों के प्रति अधिक सहानुभूति पैदा कर सकते हैं। इनमें से लगभग 45 लाख लोगों से जबरन देह व्‍यापार करवाया जाता है और उनमें से ज्यादातर महिलाएं और लड़कियां हैं।

   ‘नोट्स टू माय फादर’ एक ऐसी पीडि़ता की कहानी है जो अपने पिता से उसकी तस्‍करी होने की दास्‍तां बयां करती है। 

    11 मिनट की डॉक्‍यूमेटरी में 360 डिग्री के दृश्‍यों से उस लड़की के ग्राम्‍य जीवन और उसके अपहरण से लेकर तस्‍करों के चंगुल से भाग निकलने की यात्रा दर्शायी गयी है, जो आंध्र प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र तक थी।

    नोर्लिंग ने कहा, "आभासी वास्तविकता का उपयोग एक रणनीतिक विकल्प था, क्योंकि यह एक व्यक्ति को कहानी मे दर्शाए गए व्यक्ति जैसा ही अनुभव कराता है। यह लोगों को इससे जुड़ने और प्रतिक्रिया देने में मदद करने का कारगर उपकरण के रूप में उभर रहा है।"

   इस फिल्म को एक वीआर हेडसेट पहन कर देखा जा सकता है, क्‍योंकि इससे दर्शकों को शारीरिक रूप से पात्रों के करीब होने का आभास होता है।

     इससे पहले इस तकनीक का उपयोग सामाजिक उद्देश्‍यों को दर्शाने में किया गया था और इसे जॉर्डन में एक सीरियाई शरणार्थी द्वारा यूनिसेफ के लिए धन जुटाने में मदद करने की वृतांत फिल्‍म में प्रभावी पाया गया था।

     नोर्लिंग ने कहा कि यौन तस्करी के बारे में पिताओं को शिक्षित करने के व्यापक अभियान के हिस्से के तौर पर सितंबर तक यह डॉक्‍यूमेंटरी फेसबुक पर रिलीज और देश के गांवों में प्रदर्शित की जायेगी।

    माय चाइसेस फाउंडेशन के एक अध्ययन में पाया गया कि तस्करी की गई लड़कियों में से 90 प्रतिशत सबसे वंचित समुदायों की होती हैं और किसी लड़की को मुक्‍त करने का कोई भी निर्णय आम तौर पर उसके पिता पर ही निर्भर करता है।

    डॉक्‍यूमेंटरी में दिखाई गई लड़की का विवाह 13 वर्ष की उम्र में ही उसके पिता ने कर दिया था, जो उसे बेहतर जिंदगी देना चाहता था।

    नोर्लिंग ने कहा, "उसने अनजाने में उस लड़की की तस्करी में एक भूमिका निभाई थी।"

     उसका पति उसे प्रताडि़त करने लगा था और जब तस्करों ने उससे मित्रता की उस समय वह काफी कमजोर थी। तस्‍करों ने इस स्थिति का फायदा उठाया और उसे नशा करवा कर उसका अपहरण कर लिया था।  

     "जब वह घर से गायब थी उस दौरान उसका पिता पैसे के लिए ईंट भट्टों में काम करता और उसे ढ़ूंढ़ते भी रहता था। वह एक अच्छा पिता था।"

(रिपोर्टिंग- रोली श्रीवास्‍तव, संपादन- लिंडसे ग्रीफिथ; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

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