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भारत के नए कल्याणकारी नियमों से बचाये गये दासों को खतरा- कार्यकर्ता

Tuesday, 14 March 2017 15:33 GMT

    मुंबई, 14 मार्च (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - कार्यकर्ताओं ने मंगलवार को कहा कि भारत में बंधुआ मजदूरी से बचाए गए श्रमिक मुआवजा नहीं पा सकेंगे, क्योंकि सरकार ने लाभ पाने के लिये बायोमेट्रिक पहचान पत्र अनिवार्य कर दिया है और ज्यादातर पीड़ितों के पास यह नहीं है।

    मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने आगाह किया है कि आजीविका में मदद के लिए पुनर्वास अनुदान राशि अगर बचाये गये श्रमिकों को जल्‍दी नहीं मिल पाई तो वे दोबारा बंधुआ मजदूरी करने के लिये मजबूर हो सकते हैं।

     भारत सरकार ने वर्ष 2030 तक एक करोड़ 80 लाख से अधिक बंधुआ मजदूरों को बचाने की योजना की घोषणा की है। सरकार ने आधुनिक समय की गुलामी से निपटने के लिए पिछले वर्ष व्यापक प्रयासों के रूप में बचाये गये श्रमिकों के लिये मुआवजे की राशि में पांच गुना वृद्धि की थी।

    लेकिन सरकार ने पिछले सप्‍ताह घोषणा की कि कई अन्य कल्याणकारी लाभ जैसे भुगतान आधार कार्ड से जुड़ जायेंगे।

    आधार भारतीय निवासियों को जारी की गई 12 अंकों की पहचान संख्या है, जिसके लिए व्यक्ति को अपनी अंगुलियों और पुतलियों के छाप पंजीकृत करवाना आवश्‍यक है।

    सरकार का कहना है कि 90 प्रतिशत से अधिक निवासियों के पास अब आधार नंबर है। लेकिन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का अनुमान है कि बंधुआ श्रमिकों में से केवल एक प्रतिशत के पास आधार कार्ड है।

    राष्ट्रीय बंधुआ मजदूर उन्मूलन अभियान समिति के प्रमुख निर्मल गोराना ने कहा, "ईंट भट्ठों में काम करने वाले बंधुआ मजदूरों का आधार कार्ड के वास्‍ते आवेदन करना असंभव है। क्या कोई नियोक्ता तस्करी किये गये कामगार को सरकार के साथ अपने प्रमाण पत्र पंजीकृत करवाने की अनुमति देगा?"

       उन्‍होंने कहा कि मुआवजा पाने से पहले बचाए गए श्रमिकों का कार्ड के लिए आवेदन करना अनिवार्य करने से पहले से ही मुआवजा पाने की लम्‍बी प्रक्रिया और जटिल हो जायेगी तथा इससे मजदूरों के शोषण का खतरा और बढ़ जायेगा।  

    सरकार का कहना है कि आधार से सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं को जोड़ने से नकली लाभार्थी समाप्‍त हो जायेंगे और पारदर्शी तथा कुशल भुगतान सुनिश्चित किया जाएगा। सरकार ने श्रमिकों से 30 जून तक पंजीकरण करवाने या उनके आवेदन का सबूत देने को कहा है।

 

     भारत में 1976 से बंधुआ मजदूरी प्रतिबंधित है, लेकिन लाखों लोग अभी भी अपना ऋण चुकाने के‍ लिये बड़े पैमाने पर खेतों, ईंट भट्ठों, वेश्यालयों में या घरेलू नौकरों के तौर पर काम कर रहे हैं।

    बचाये गये बंधुआ मजदूर एक लाख रुपये की पुनर्वास मुआवजा राशि पाने के हकदार हैं। बचाए गए बाल मजदूरों को दो लाख रुपये और तस्करी पीडि़तों को तीन लाख रुपये का मुआवजा दिया जाता है।

      लाभ निरपेक्ष संस्‍था- एड एत एक्शन इंटरनेशनल के क्षेत्रीय प्रमुख उमी डैनियल ने कहा कि अधिकारियों को लाभ को आधार कार्ड से जोड़ने से पहले लोगों का आधार के साथ पंजीकरण सुनिश्चित करना चाहिए।

    बंधुआ मजदूरों के अधिकारों के लिये कार्य करने वाले एक प्रमुख कार्यकर्ता डैनियल ने कहा, "यह एक अनावश्यक शर्त थोप दी गई है।"

      "अगर स्थायी तरीके से पुनर्वास नहीं किया जाता है तो लोगों का उसी प्रकार के बंधन में दोबारा फंसने का खतरा बढ़ जाता है।"

      ऑस्ट्रेलिया के वॉक फ्री फाउंडेशन के 2016 के वैश्विक गुलामी सूचकांक के अनुसार दुनिया के लगभग चार करोड़ 58 लाख गुलामों में से 40 प्रतिशत भारत में है। 

(रिपोर्टिंग- रोली श्रीवास्‍तव, संपादन- एम्‍मा बाथा; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

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