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वैश्विक बाजार के लिए जूते बनाने में अपने स्वास्थ्य और जीवन को खतरे में डालते हैं भारतीय चमड़ा कामगार: रिपोर्ट

Wednesday, 15 March 2017 18:18 GMT

A cobbler makes leather shoes inside his workshop in Jammu November 14, 2008. REUTERS/Amit Gupta

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   मुंबई, 15 मार्च (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - एक अध्ययन में पाया गया है कि लगभग 25 लाख भारतीय कामगार देश के चमड़ा उद्योग में कम वेतन पर विषाक्त रसायनों के साथ लंबे समय तक काम कर पश्चिमी ब्रांडों के लिए जूते और कपड़े बनाते हैं।

   बुधवार को प्रकाशित रिपोर्ट में मानवाधिकार संगठन- इंडिया कमेटी ऑफ द नीदरलैंड्स (आईसीएन) ने आपूर्ति श्रृंखलाओं में अधिक पारदर्शिता लाने का आग्रह किया है।

    सर्वेक्षण में निर्यात के लिए चमड़ा, चमड़े के वस्त्र, सामान और जूते की आपूर्ति करने वाले देश के उत्तर में आगरा, पूर्व में कोलकाता और दक्षिण में तमिलनाडु के वनियाम्‍बाड़ी-अंबूर के चमड़ा उद्योग केन्द्रों का अध्‍ययन किया गया है।

    आईसीएन ने रिपोर्ट में कहा, "बड़े पैमाने पर निर्यात केंद्रों की वृद्धि के जरिए चमड़ा उद्योग में अधिक रोजगार सृजित हुये हैं, लेकिन रोजगार की प्रकृति और गुणवत्ता पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है।"

     रिपोर्ट में कहा गया है, "अक्‍सर मशीन ऑपरेटर के फंसने, भूमिगत अपशिष्ट टैंकों की सफाई करने वाले मजदूरों का जहरीले धुएं से दम घुटने या चमड़े के कारखाना परिसर में जहरीले कीचड़ में डूबने से दुर्घटनाएं होती हैं।"

    अध्‍ययन में कहा गया है कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा जूते-चप्‍पलों और चमड़े के वस्त्रों का निर्माता है और यहां से लगभग 90 प्रतिशत जूते-चप्‍पलों का निर्यात यूरोपीय संघ में किया जाता है।

    छोटे और अनियमित कारखानों में श्रमिकों के लिये राज्य स्वास्थ्य बीमा या पेंशन जैसी सामाजिक स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं हैं और वे उत्पाद की वैश्विक कीमत का अत्‍यंत कम हिस्‍सा कमाते हैं।

     अध्‍ययनकर्ताओं ने एक चमड़ा कारखाने में चमड़ा संभालने का काम करने वाले निम्‍न जाति के दलित रामू से बात की। उस कारखाने में ही काम करने के दौरान चेहरे पर तेजाब पड़ने से रामू की दोनों आंखों की रोशनी चली गई थी। उसने अध्‍ययन करने वालों को बताया कि अब उसकी 13 साल की बेटी एक जूते के कारखाने में काम करती है।

   अध्‍ययन में पता चला है कि चमड़ा कारखानों में काम करने वाले श्रमिक अक्सर बुखार, आंखों में सूजन, त्वचा रोग और कैंसर से पीड़ित होते हैं। इसका कारण यह है कि वे जहरीले रसायनों के साथ काम करते हैं और उन्‍हें शायद ही कोई सुरक्षा प्रशिक्षण या सुरक्षा दी जाती है।

    स्‍थानीय मीडिया के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि दिसंबर 2015 में कोलकाता में एक चमड़ा कारखाने के परिसर में चमड़े के कारखाने से निकलने वाली विषाक्त गैस के कारण तीन कामगारों की मौत हो गई थी और दो श्रमिकों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

   "गंदा और प्रदूषक" माना जाने वाला यह काम अधिकतर निम्‍न जाति के दलित और अल्पसंख्यक मुस्लिम करते हैं।

    रिपोर्ट में महिलाओं और बच्चों सहित भारत के चमड़ा उद्योग के श्रमिकों के शोषण के बारे में बताया गया है। इसमें यह भी कहा गया है कि कुछ प्रमुख ब्रांड तत्‍काल इस मुद्दे का समाधान करना चाहते हैं।

      रिपोर्ट में कहा गया है, "कंपनियों को चमड़ा कारखानों और उप ठेकेदारों के स्तर तक अपनी संपूर्ण आपूर्ति श्रृंखला का पता लगाना और पारदर्शिता को बढ़ाना चाहिये।"

(रिपोर्टिंग- रोली श्रीवास्‍तव, संपादन- रोस रसल; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

 

 

 

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