India banned the practice of bonded labour in 1976, but the country is still home to 11.7 million bonded labourers
- अनुराधा नागराज
चेन्नई, 16 मार्च (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - दक्षिणी भारत में एक अदालत ने श्रमिकों की तस्करी करने और उन्हें गुलामों की तरह रखने के लिए एक ईंट भट्ठा मालिक को 10 साल की जेल की सजा सुनाई है। यह धीमी गति से लम्बी खींचे जा रहे अदालती मुकदमों में पीडि़तों के लिये असाधारण जीत है।
बुधवार को सार्वजनिक किये गये पिछले सप्ताह के निर्णय में कर्नाटक में रामनगर की एक अदालत ने छः परिवारों के 12 बंधुआ मजदूरों की तस्करी करने, उन्हें बंधक बनाकर रखने और उनका शोषण करने के आरोप में भट्ठा मालिक पर 16,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
सरकारी वकील एम. डी. रघु ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया कि ऐसी सजा कम ही सुनाई जाती है।
रघु ने कहा, "पीड़ितों ने अदालत में बहुत मजबूत बयान दिए, विस्तार से अपनी दुर्दशा के बारे में बताया और पूरे मुकदमे के दौरान वे अडिग रहे।"
कार्यकर्ताओं ने अदालत के फैसले को "उत्साहजनक" बताया और कहा कि 2013 में भारतीय कानून में संशोधन के बाद सजा सुनाने का यह निर्णय महत्वपूर्ण है। इसमें नये कानून के अंतर्गत प्रत्येक बंधुआ मजदूर मामले में तस्करी के आरोप को सम्मिलित किया गया है।
भारत में 1976 से बंधुआ मजदूरी प्रतिबंधित है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक देश में अभी भी एक करोड़ 17 लाख बंधुआ मजदूर हैं।
सरकारी आंकड़े दर्शाते हैं कि ऐसे अत्यधिक मामले होने के बावजूद 2015 में केवल 92 मामले बंधुआ मजदूरी के दर्ज किए गए थे, जिनमें से सिर्फ एक ही मामले में सजा सुनाई गई और चार लोगों को जेल भेजा गया।
2015 में पूरे देश में बंधुआ मजदूरी उन्मूलन अधिनियम के तहत दायर 90 प्रतिशत से अधिक मामले और मानव तस्करी के अंर्तगत दायर किये गये 80 प्रतिशत मामले लंबित हैं।
मानवाधिकारों की वकालत करने वाले डेविड सुंदर सिंह ने कहा, "यह निर्णय महत्वपूर्ण है क्योंकि संशोधित कानून के तहत इसमें आरोपी की सजा बढ़ाई गई है।"
"इससे पहले इस क्षेत्र में सबसे लम्बी सजा सात साल तक की दी गई थी।"
अभियोग पक्ष ने कहा कि भट्ठा मालिक 2010 से अगस्त 2014 तक चार से अधिक वर्षों तक यह धंधा कर रहा था।
इसमें कहा गया है कि उसने 50 हजार रुपये तक की अग्रिम राशि देकर उनके गांवों से चार परिवारों की तस्करी की थी।
अदालत में सुनवाई के दौरान कहा गया कि उसने उनसे "अच्छी मजदूरी" देने का झूठा वादा किया था कि प्रति एक हजार ईंटों के लिए वह 350 रुपये देगा, लेकिन उसने उन्हें निर्धारित न्यूनतम मजदूरी भी नहीं दी।
अभियोग पक्ष ने कहा कि मजदूरों से दिन में 13 घंटे और सप्ताह में छह दिन काम करवाया जाता था। उन्हें सप्ताह में केवल एक बार दोपहर को जरूरी सामान खरीदने के लिये ईंट भट्ठे से बाहर जाने दिया जाता था।
2016 के सरकारी आंकड़ों के अनुसार अधिकारियों ने 1978 से 18 भारतीय राज्यों में बंधुआ मजदूरी के जाल में फंसे दो लाख 82 हजार श्रमिकों को मुक्त कराया है, हालांकि गैर-सरकारी संगठन इन आंकड़ों पर सवाल उठाते हैं। उनका अनुमान है कि देश भर में ऋण बंधकों की वास्तविक संख्या इससे काफी अधिक है।
(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- एड अपराइट; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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