- रोली श्रीवास्तव और अनुराधा नागराज
मुंबई/चेन्नई 31 मार्च ( थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) – एक मानवाधिकार समूह का कहना है कि भ्रष्ट डॉक्टर और गांव के नेता बाल पीड़ितों को वयस्कों के रूप में दिखाने के लिये नकली दस्तावेज हासिल करने में तस्करों की मदद कर रहे हैं, जिसके कारण हजारों नाबालिग न्याय पाने से वंचित हैं।
नवीनतम सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2016 में देश में 9,000 हजार से अधिक बच्चे तस्करी पीडि़त थे, जो 2015 की तुलना में 27 प्रतिशत अधिक है। कई पीडि़तों को वेश्यालयों में बेचा या कताई मिलों, होटलों और घरेलू नौकरों के रूप में काम करने के लिए मजबूर किया गया था।
लड़कियों की तस्करी कर बांग्लादेश से भारत लाने वाले आपराधिक नेटवर्क का दो साल तक अध्ययन करने के बाद धर्मार्थ संस्था- जस्टिस एंड केयर ने पाया कि पीड़ितों की आयु छिपाने के लिए तस्करों ने सबसे अधिक स्कूल छोड़ने के फर्जी प्रमाणपत्रों का इस्तेमाल किया था।
जस्टिस एंड केयर के प्रवक्ता एड्रियन फिलिप्स ने कहा, "ये दस्तावेज, पहली नजर में एकदम असली दस्तावेज के समान लगते हैं और संभवतः इनसे कानूनी प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है।"
जन्म प्रमाणपत्रों और स्कूल छोड़ने के प्रमाणपत्रों का हवाला देते हुये फिलिप्स ने कहा, "कानूनी तौर पर मेडिकल या फॉरेंसिक जांच से अधिक बल इन दस्तावेजों पर दिया जाता है।" मानवाधिकार समूह का कहना है कि जालसाजी के लिए जन्म प्रमाणपत्रों और स्कूल छोड़ने के प्रमाणपत्रों की जांच कम ही की जाती है।
वर्तमान में बाल तस्करी के मुकदमें कई भारतीय कानूनों के तहत चल रहे हैं। यौन अपराध से बच्चों के संरक्षण अधिनियम के तहत बच्चों की तस्करी या यौन शोषण करने वाले आरोपी संदिग्धों को जमानत नहीं दी जा सकती है।
मानवाधिकार के वकील हरीश भंडारी ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "बाल तस्करी के मामलों में सात साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है।"
"लेकिन अगर बच्चों को वयस्कों के रूप में दिखाया जाता है तो सजा बहुत कम होती है और तस्कर जमानत भी मांग सकते हैं।"
जस्टिस एंड केयर ने एक रिपोर्ट में बांग्लादेश और भारत की सीमा पर बने एक प्रिंटिंग प्रेस के मालिक का हवाला देते हुए कहा कि उसने तस्करों के लिए स्कूल छोड़ने के 600 नकली प्रमाणपत्र बनाने में मदद की है।
इसमें यह भी कहा गया है कि गांव परिषदों के सदस्य अक्सर फर्जी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने या उन्हें स्वीकृत करने के लिए अपने सरपरस्तों के दबाव में थे।
रिपोर्ट में कहा गया, "परिषद के सदस्य स्वयं तस्करी सिंडिकेट का हिस्सा हैं।"
अगले महीने प्रकाशित होने वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि एक नकली जन्म प्रमाण पत्र मात्र 1000 रुपये में आसानी से उपलब्ध है।
पहचान दस्तावेजों के जरिये पीड़ितों की उम्र की पुष्टि करने वाले अधिकारियों को दिखाने के लिये तस्कर नकली माता-पिता की व्यवस्था भी कर सकते हैं।
वेश्यालय के मालिक और कुछ मामलों में तस्करी किये गये बच्चों के माता-पिता भी विशेष रूप से छोटे स्वास्थ्य केंद्रों के डॉक्टरों से उम्र निर्धारण के लिए किए गए अस्थि घनत्व परीक्षणों में बचाये गये बच्चे को वयस्क के रूप में प्रमाणित करने को कहते हैं।
पुलिस का कहना है कि उन्हें जानकारी थी कि देश के कुछ हिस्सों में तस्करी के लिये नकली पहचान प्रमाण पत्रों का उपयोग किया जाता है।
दक्षिणी राज्य तेलंगाना के पुलिस प्रमुख महेश भागवत ने कहा कि उनके अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि युवा पीड़ितों की उम्र पर संदेह की स्थिति में उन्हें नाबालिग माना जाये।
(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज और रोली श्रीवास्तव, संपादन- केटी नुएन; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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