- रोली श्रीवास्तव
मुंबई, 6 अप्रैल (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - ईशिका ने कभी नहीं सोचा था कि छह साल की उम्र में उसके माता-पिता द्वारा कोलकाता के एक वेश्यालय में बेचे जाने से उसे सबसे प्रतिष्ठित व्यवसायों में से एक - कानून के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाने की प्रेरणा मिलेगी।
अब 24 साल की हो चुकी ईशिका ने यौन गुलामी से बचाए जाने के बाद एक दशक से भी अधिक समय अपने तस्करों को सजा दिलाने में बिता दिया है। लेकिन लम्बे चले मुकदमे के बावजूद उसने उसका शोषण करने वालों को सलाखों के पीछे देखने की उम्मीद नहीं छोड़ी है।
ईशिका ने कहा, "मैं वकील बनकर तस्करी पीड़ितों के मामले उठाउंगी और अदालत में प्रभावी ढंग से जिरह करूंगी।" ईशिका उन 20 यौन पीडि़ताओं में से है जिसे तस्करी रोधी एक धर्मार्थ संस्था द्वारा गुरुवार को शुरू किए गए कार्यक्रम के तहत कानून की शिक्षा दी जायेगी।
ईशिका ने केवल अपने पहले नाम से पुकारे जाने का अनुरोध करते हुये थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "मुझे 13 साल पहले बचाया गया था लेकिन मेरा मुकदमा अभी भी चल रहा है।"
"कई बार मुझे लगता है कि मैं पीड़ित नहीं, एक अपराधी हूं। मैं नहीं चाहती कि अन्य तस्करी पीडि़ताओं को भी मेरी तरह यह सब सहना पड़े।"
कार्यकर्ताओं के अनुसार भारत के लगभग दो करोड़ पेशेवर यौनकर्मियों में से एक करोड़ 60 लाख महिलाएं और लड़कियां यौन तस्करी की शिकार हैं। लेकिन तस्करी के पांच मामलों में से दो से भी कम मामलों में ही दोषी को सजा मिल पाती है।
अमेरिकी विदेश विभाग ने 2016 की व्यक्तियों की तस्करी की अपनी रिपोर्ट में कहा कि सरकार द्वारा कानून प्रभावी बनाने के प्रयासों के बावजूद भारत में मानव तस्करी की जांच, अभियोजन और सजा सुनाये जाने के मामलों की संख्या कम है।
धर्मार्थ संस्था- फ्री ए गर्ल मूवमेंट ने कहा कि उनके "न्याय के लिये स्कूल" कार्यक्रम के तहत जिन युवा महिलाओं की बचपन में ही यौनकर्म के लिये तस्करी की गई थी उन्हें कॉलेज की प्रवेश प्रक्रिया के बारे में बताया जायेगा और उनकी शिक्षा तथा अन्य खर्च वहन किये जायेंगे।
संस्था के प्रवक्ता फ्रांसिस ग्राशियास ने कहा, "यह यौन तस्करी के पीडि़तों को सशक्त बनाने और उन्हें सरकारी वकील बनने में सहायता करने का एक दीर्घकालिक कार्यक्रम है, ताकि वे बाल तस्करी और बाल वेश्यावृत्ति के मामले उठा सकें।"
अभियान चलाने वालों का कहना है कि बचायी गयी पीड़िताओं के वकील अक्सर उनकी दुर्दशा को महसूस नहीं कर पाते या अदालत में भावनाएं व्यक्त करने में पूरी तरह से उनकी सहायता करने में असमर्थ होते हैं, जिससे मामला कमजोर पड़ जाता है और अक्सर दोषी सजा पाये बगैर बरी हो जाते हैं।
ईशिका जैसी बचायी गयी लड़कियों की स्कूली शिक्षा पूरी करने में मदद करने वाली धर्मार्थ संस्था- संलाप की तपोती भौमिक ने कहा, "मुक्त करायी गयी लड़कियों को कानून की समझ नहीं होती है जैसे कि कानून की कौन सी धारा उन पर लागू की गई थी और क्यों?"
भौमिक ने कहा, "वे (बचायी गयी लड़कियां) तस्करी के मामलों को बेहतर तरीके से अदालत में रख सकती हैं क्योंकि उन्होंने स्वयं तस्करी के दर्द और आघात को सहा है।"
ईशिका विधि कॉलेज में प्रवेश परीक्षा के लिए अंग्रेजी, गणित और अन्य विषयों की पढ़ाई शुरू कर चुकी है। उसे उम्मीद है कि इससे एक दिन उसे न्याय पाने में मदद मिलेगी।
उसने कहा, "इतने साल से वेश्यालय की मालकिन और मेरे तस्कर खुले घूम रहे हैं और मैंने यह समय एक आश्रय स्थल में बिताया है। मैं चाहती हूं कि तस्कर कानून और मुझसे ड़रें।"
(रिपोर्टिंग- रोली श्रीवास्तव, संपादन- केटी नुएन; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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