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छह महीने की हिरासत के बाद खाड़ी में कटु अनुभव की यादें लिये घर लौटे भारतीय मछुआरे

by अनुराधा नागराज | @anuranagaraj | Thomson Reuters Foundation
Wednesday, 12 April 2017 06:21 GMT

Fisherman S Geroge, released after six months in detention in Iran, at the Chennai airport before heading home to Kanyakumari in southern Indian state of Tamil Nadu, April 6, 2017. Thomson Reuters Foundation/Anuradha Nagaraj

Image Caption and Rights Information

-    अनुराधा नागराज

    चेन्नई, 12 अप्रैल (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - भारतीय मछुआरा एस. जॉर्ज छह महीने तक एक नाव पर इस डर में जी रहा था कि वह अपनी पत्नी और बच्चों को फिर कभी नहीं देख पायेगा।

    अधिकारियों ने कहा कि जॉर्ज तमिलनाडु के उन 15 मछुआरों में से था, जिन्‍हें पिछले साल अक्टूबर में मछली पकड़ते समय भूल से ईरानी जल क्षेत्र में घुसने के आरोप में हिरासत मे लिया गया था।

      महिनों अपने परिजनों से संपर्क के बगैर रहने के बाद पिछले सप्‍ताह अपने घर पहुंचने पर मछुआरों ने कहा कि 2014 में जब वे अपना घर छोड़कर बहरीन के तट से मछली पकड़ने की नौकाओं पर काम करने के लिए निकले थे उस समय उन्‍हें पता भी नहीं था कि उन्‍हें ऐसी कठिनाई का सामना करना पडेगा। 

     जॉर्ज ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "वहां फंसने के बाद के दिनों में भ्रम की स्थिति बनी हुयी थी।"

     "हमें स्पष्ट रूप से पता नहीं था कि मछली पकड़ते समय अंतर्राष्ट्रीय जल क्षेत्र पार कर हम ईरान के क्षेत्र पंहुच गये थे और हमें हिरासत में लिया गया था। उसके बाद जो हुआ उसकी हमने कभी कल्‍पना भी नहीं की थी।"

    कार्यकर्ताओं का कहना है कि छह खाड़ी देशों-बहरीन, कुवैत, कतर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और ओमान में लगभग 60 लाख भारतीय प्रवासी हैं, उनमें से कई लोगों की तस्‍करी कि गयी है और उनका शोषण किया गया है।  

    चेन्नई की लाभ निरपेक्ष संस्‍था- नेशनल डोमेस्टिक वर्कर्स मूवमेंट की जोसेफिन वालारमाथी ने कहा, "हम देख रहे हैं कि अधिक संख्‍या में मछुआरे हिरासत में लिये जा रहे हैं।"

     "मछुआरों का यह दल तो वापस लौट आया है, लेकिन ऐसी ही परिस्थितियों में अन्‍य 24 मछुआरों को पकड़ लिया गया है और अब वे वहां फंसे हुए हैं। उनमें से अधिकतर लोगों को तो यह भी नहीं पता है कि उन्‍होंने किस वीजा पर यात्रा की या कार्यस्‍थल पर काम करने के नियम और शर्तें क्‍या हैं।"

      जॉर्ज ने कहा कि उन्हें बहुत कम भोजन दिया गया था, शौचालयों का पानी पीने के लिए मजबूर किया जाता था, उनसे उठक-बैठक लगवाई जाती थी और अक्सर उन्‍हें भूखे रहना पड़ता था। ईरान की एक जेल में कुछ दिन रखने के बाद इन मछुआरों को समुद्र तट पर उनकी नावों पर रखा गया था।

   

     जॉर्ज ने कहा, "हम पर लगातार नजर रखी जाती थी। कभी-कभी हमें पूरे दिन में सिर्फ एक ही रोटी दी जाती थी। हम मछली पकड़कर अपनी आजीविका चलाते हैं, लेकिन मौत के डर में नाव पर रहने के लिये तो हमने अनुबंध नहीं किया था।"

    ए. मारिया जोसेफ केन्नाडी ने कहा कि उनकी भाषा की समझ नहीं होने के कारण वहां क्‍या चल रहा है यह पता नहीं चल पाता था।

     केन्‍नाडी ने कहा, "हमें चार दिन तक जबरन जेल में रखा गया था और उसके बाद हमें वापस नाव पर भेज दिया गया। हमें वहां पर जानवरों की तरह रखा गया था।"

    नई दिल्ली में ईरानी दूतावास के अधिकारियों ने इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया है।

  "दस में से एक"

     तमिलनाडु प्रवासन सर्वेक्षण 2015 के अनुसार राज्य से होने वाले प्रवासन पर किये गये पहले व्यापक अध्ययन में पाया गया है कि लगभग हर दसवें घर से एक या अधिक कामगार विदेश में है।

   सर्वेक्षण से पता चला है कि एक प्रवासी विदेशों में नौकरी पाने के लिए औसतन एक लाख रुपये खर्च करता है, जिसमें से आधा पैसा भर्ती एजेंसियों को दिया जाता और बाकि आधा धन वीजा तथा यात्रा पर खर्च होता है।

   20,000 घरों पर किये गये सर्वेक्षण में यह भी पता चला है कि विदेशों में काम करने वालों में से 39 प्रतिशत महिलाओं और 21 प्रतिशत पुरुषों को तय किया गया वेतन नहीं मिल रहा है।

  प्रवासन सर्वेक्षण के सह-लेखक बर्नार्ड डसामी ने कहा, "अक्सर मजदूरों के साथ धोखा होता है और वे खाड़ी में कार्यस्‍थल के माहौल में रह नहीं पाते हैं और प्रतिकूल परिस्थितियों में वे अपनी आय वहीं छोड़कर वापस अपने घर लौट आते हैं।"

   "इसके बाद वे अंतहीन ऋण के चक्र में फंस जाते हैं, जिसके कारण फिर से काम करने के लिए वे खाड़ी देशों में जाने को मजबूर होते हैं।"

   समुद्र से पकड़ी गयी मछलियों के आधार पर मेहनताना पाने वाले मछुआरों ने कहा कि वे बगैर बचत के वापस लौटे हैं और यहां उन्‍हें काफी ऋण चुकाना है।

    मछुआरों ने अन्य लोगों को इस प्रकार की तकलीफ से बचाने के लिए तत्काल कार्रवाई करने का आग्रह किया है। उन्‍होंने प्रवासन के खतरों के बारे में शिक्षित करने का अभियान चलाने की भी अपील की है।

   बहरीन जाने के समय लिये गये लगभग एक लाख रुपये का कर्ज चुकाने के बारे में चिंतित जॉर्ज ने कहा, "मुझे समझ नहीं थी और मैं खतरे को भांप नहीं पाया था।"

   

   "मुझे किसी और ने भी ऐसे खतरों के बारे में नहीं बताया था। कई लोगों का खाड़ी देशों में काम करने का सपना होता है। सरकार को यह सुनिश्चित करने चाहिये कि उनका यह सपना दुःस्वप्न न बने।" 

(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- रोस रसल; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

A group of 15 fishermen outside the Indian embassy in Bahrain before heading for India on April 6, 2017. Picture courtesy National Domestic Workers Alliance

ONE IN TEN

According to the Tamil Nadu Migration Survey 2015, the first comprehensive study on emigration from the state, roughly every tenth household has one or more workers abroad.

The survey showed that a migrant spends an average of 100,000 rupees ($1,500) to secure a job overseas, with half going to recruitment agencies and the rest for visas and travel.

The survey of 20,000 households also revealed that 39 percent of women and 21 percent of men who work abroad reported not receiving the promised wages.

"Often workers get duped, can't deal with the work situation in the Gulf and come back in adverse circumstances, forgoing their income," said Bernard D'Sami, co-author of the migration survey.

"They then get trapped in an unending cycle of debt that sometimes forces them to go back to the Gulf and work."

Paid on the basis of the catch they brought back from the sea, the fishermen said they were back home with no savings and big loans that needed to be paid back.

The fishermen called for urgent action to prevent others suffering similar ordeals, including education campaigns about the risks of migration.

"I didn't understand or assess the risks," said George, now worried about repaying the nearly 100,000 rupee loan he took out to get to Bahrain.

"And nobody told me either. So many people dream of a Gulf job. The government needs to make sure it doesn't become a nightmare."

($1=64.2660 Indian rupees)

(Reporting by Anuradha Nagaraj, Editing by Ros Russell; Please credit the Thomson Reuters Foundation, the charitable arm of Thomson Reuters, that covers humanitarian news, women's rights, trafficking and climate change. Visit www.trust.org)

Our Standards: The Thomson Reuters Trust Principles.

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