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साक्षात्कार: भारत के प्रस्तावित सरोगैसी कानून से विदेशी महिलाओं की तस्करी का खतरा बढ़ा- विशेषज्ञ

by Nita Bhalla | Thomson Reuters Foundation
Tuesday, 18 April 2017 16:38 GMT

-    नीता भल्ला

    नई दिल्ली, 18 अप्रैल (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - एक प्रमुख विशेषज्ञ ने मंगलवार को चेतावनी दी कि भारत के फलते फूलते किराये की कोख (सरोगेसी) उद्योग को नियमित करने और गरीब भारतीय महिलाओं के शोषण को रोकने के प्रस्तावित कानून के कारण अपनी कोख किराये पर देने के लिये अधिक विदेशी महिलाओं की तस्‍करी की जा सकती है। 

     प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार व्‍यावसायिक रूप में कोख किराये पर देने पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक विधेयक लाने का सोच रही है। हालांकि इसमें भारतीय बांझ दंपति के लिये "निस्‍वार्थ भाव से" कोख किराये पर देने की अनुमति होगी, लेकिन ऐसे मामलों में किराए की कोख देने वाली महिला नि:संतान दंपति की रिश्‍तेदार होनी चाहिये और वह इस कार्य के लिये धन भी नहीं ले सकती है।

    ​​"पोलिटिक्‍स ऑफ द वुम्‍ब- द पेरिल ऑफ आईवीएफ, सरोगैसी एंड मोडिफाइड बेबीज़" पुस्‍तक की लेखिका पिंकी वीरानी ने कहा कि मसौदा कानून, जिसके व्यापक रूप से इस वर्ष के अंत में पारित होने की उम्मीद है, कारगर नहीं है।

      विरानी ने एक साक्षात्कार में थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "वर्तमान स्‍वरूप में अगर इस कानून को पारित किया जाता है, तो देश के इस किराये की कोख विधेयक से मानव तस्करी की घटनाएं बढ़ सकती हैं।"

     "अगर किराये की कोख कानून में यह स्‍पष्‍ट नहीं किया जाता है कि निस्‍वार्थ भाव से किराये पर कोख देने वाली महिला को भारतीय नागरिक और भारतीय निवासी होना चाहिए तो मानवाधिकारों का हनन होता रहेगा।"

      कार्यकर्ताओं का कहना है कि आपराधिक नेटवर्क ऐसे निराश बांझ दंपतियों के लिये तस्‍करी की गई महिलाओं को उचित सरोगेट बताने के लिये आसानी से उनकी पहचान के फर्जी दस्तावेज दे सकते हैं, जो कानून तोड़ने और किराये की कोख के लिये पैसा देने को तैयार होते हैं।

  लगभग एक दशक से इस उद्योग की जांच पड़ताल करने वाली विरानी ने कहा कि किराये की कोख के लिये पहले से ही नेपाल जैसे पड़ोसी देशों से महिलाओं की तस्‍करी कर उन्‍हें भारतीय प्रजनन क्लिनिकों में लाया जा रहा है।

     भारत में वर्ष 2002 में व्‍यावसायिक तौर पर किराये की कोख का करोबार शुरू हुआ था। भारत जॉर्जिया, रूस और यूक्रेन तथा कुछ अमेरिकी राज्यों सहित ऐसे स्थानों में से एक है, जहां महिलाएं इन-विट्रो निषेचन (आईवीएफ) प्रक्रिया के माध्यम से किसी अन्य के आनुवंशिक बच्चे को अपनी कोख में रखने और भ्रूण स्थानांतरण के लिए पैसा ले सकती है।

     प्रजनन विशेषज्ञों का कहना है कि कम लागत वाली तकनीक, कुशल चिकित्सकों, नौकरशाही की कमी और किराये की कोख की सतत आपूर्ति के कारण भारत "प्रजनन पर्यटन" के लिए पसंदीदा स्थान बन गया है, जहां ब्रिटेन, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया सहित कई देशों के नागरिक आते हैं।

     भारत के प्रजनन उद्योग के आकार के बारे में पूरे आंकड़े उपलब्‍ध नहीं हैं, लेकिन विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि यह उद्योग कम से कम 3.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है और भारतीय किराये की कोख से यहां प्रतिवर्ष 3,000 प्रजनन क्लीनिकों में लगभग 2000 विदेशी शिशु पैदा होते हैं।

     लेकिन महिला अधिकार समूहों का कहना है कि सरोगेसी क्षेत्र को कलंकित कर दिया गया है। उनका कहना है कि क्लीनिक अमीरों के लिए "शिशु पैदा करने के कारखानें" हैं, जहां गरीब और अशिक्षित महिलाओं को झांसे में लेकर उनसे ऐसे अनुबंध पर हस्ताक्षर करवाये जाते हैं, जिन्हें वे पूरी तरह से समझ भी नहीं पाती हैं।

    गृह मंत्रालय ने नवंबर 2015 में विदेशी नागरिकों के भारत आकर किराये की कोख लेने पर  प्रतिबंध लगा दिया है, लेकिन अभी भी भारतीय दंपतियों के लिए व्यावसायिक तौर पर किराये की कोख लेने की अनुमति है।

      पिछले साल सरकार ने लोकसभा में किराये की कोख (नियमन) विधेयक को पेश किया। इस विधेयक में व्‍यावसायिक रूप में किराये की कोख देना प्रतिबंधित है, लेकिन भारतीय बांझ दंपतियों के लिए निस्‍वार्थ भाव से किराये पर कोख देने का प्रावधान है। 

    इस विधेयक में मान्‍यताप्राप्‍त किराये की कोख के लिये दिये गये दिशा निर्देशों का पालन सुनिश्चित करने के लिये सरोगेसी बोर्डों के गठन का भी प्रावधान है।

        लेकिन विरानी का कहना है कि इस विधेयक को अधिनियम बनाने से पहले सरकार को इसकी खामियों विशेषरूप से मानव तस्‍करी रोकने से संबंधित कमियों को दूर करना होगा।

      वीरानी ने कहा, "प्रजनन विशेषज्ञों का आसानी से बेवकूफ बनाने वाला सरोगेसी का विचार कोई चमत्कारिक गर्भाधान नहीं, बल्कि यह आनुवंशिक लालच से जन्‍मा प्रजनन प्रौद्योगिकी उद्योग का धन कमाने का विचार है।"

    "यह भारत-नेपाल की सीमाओं से गर्भवती और बिगड़ते स्वास्थ्य वाली उन महिलाओं के बारे में है, जिन्‍हें बसों में बैठाकर लाया जाता है।"

(रिपोर्टिंग- नीता भल्‍ला, संपादन- केटी नुएन; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

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