- अनुराधा नागराज
चेन्नई, 20 अप्रैल (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - पश्चिम बंगाल में पुलिस अपने कर्तव्य से आगे बढ़कर यौन उत्पीड़न से बचायी गयी महिलाओं के जीवन को दोबारा पटरी पर लाने के लिये धन जुटा रही है।
पूर्वी भारत में कार्यक्रम की अगुवाई करने वाले पुलिस अधिकारी चंद्रशेखर बर्धन ने कहा, "यें लड़कियां पढ़ी-लिखी नहीं हैं, बैंक ऋण उनकी पंहुच से दूर है और लंबे समय तक उनके जीवन यापन के लिये सरकारी योजनाएं पर्याप्त नहीं हैं।"
"हमें उनके लिये कुछ तो करना ही था, हालांकि यह कार्य हमारे कर्तव्यों के दायरे में नहीं आता है।"
इस माह शुरू हुई अपनी तरह की इस पहली योजना के तहत बचायी गयी 22 महिलाओं को पुनर्वास के लिए चुना गया है। पुलिस को आशा है कि इसके बाद वह 100 से अधिक महिलाओं की मदद कर पूरे क्षेत्र में इस योजना का अनुकरण करने का आदर्श कायम करेगी।
पुलिस ने कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व के रूप में अलग-अलग महिलाओं को सहायता देने के लिये कंपनियों से उनकी जरूरतों के अनुरूप धन देने का आग्रह किया है। गरीबी और बेरोजगारी में दोबारा लौटने से बचने के लिये एक महिला सिलाई का कारोबार करना चाहती है, वहीं दूसरी का अपनी टैक्सी चलाने का विचार है।
"पसंदीदा अड्डा"
अभियान चलाने वालों का अनुमान है कि भारत के लगभग दो करोड़ व्यावसायिक यौनकर्मियों में से एक करोड़ 60 लाख महिलाएं और लड़कियां यौन तस्करी की शिकार हैं। अधिकतर इनकी तस्करी यौन शोषण, जबरन मजदूरी करवाने और बाल विवाह के लिए की जाती है।
दक्षिण 24 परगना जिले में महिलाओं के खिलाफ अपराध में लगातार वृद्धि देखी गई है। यहां 2010 से 2013 तक 80 प्रतिशत से अधिक अपहरण की शिकायतें पुलिस थानों में दर्ज करवाई गयीं। इस जिले से ही यह परियोजना शुरू की गई है।
तस्करी पीडि़तों की मदद और पायलट परियोजना का समर्थन करने वाली लाभ निरपेक्ष संस्था- गोराबोस ग्राम बिकास केंद्र की समन्वयक सुभाश्री राप्टन ने कहा है, "ग़रीबी और पिछड़ेपन के कारण यह क्षेत्र हमेशा ही तस्करों का पसंदीदा अड्डा रहा है।"
राप्टन ने कहा कि 2009 में आये आईला तूफान के बाद से इस क्षेत्र के दस लाख से ज्यादा लोगों के विस्थापित होने से यह समस्या और बढ़ गयी है।
"नौकरी नहीं, अवसर भी नहीं"
जब भी पीड़ितों को तस्करों से बचाया जाता है, तो वे आमतौर पर रोजगार के बगैर गरीबी और निष्क्रिय परिवारिक जीवन में लौटते हैं।
रोजगार नए जीवन की कुंजी है और इस योजना के पहले समूह की महिलाओं में से एक सिलाई का कारोबार, दो स्टेशनरी की दुकान और एक महिला अपनी टैक्सी चलाना चाहती है।
इस परियोजना का नेतृत्व कर रहे पुलिस अधिकारी बर्धन ने कहा, "जब तक मुझे इस क्षेत्र में तैनात नहीं किया गया था तब तक मुझे मानव तस्करी के परिमाण के बारे में नहीं पता था। यहां तैनाती के बाद मेरे सामने 14 साल की एक ऐसी पीड़िता का मामला आया, जिसकी तस्करी कर उत्पीड़न किया गया था और फिर अस्पताल में फेंक दिया गया था।"
"अब जब तक समस्या है तब तक यह कार्यक्रम चलेगा।"
(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- लिंडसे ग्रीफिथ; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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