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साक्षात्कार - सीरिया हमले से द्रवित नोबेल पुरस्‍कार विजेता ने युद्ध क्षेत्र में फंसे बच्चों के हालात पर आवाज उठाई

by Nita Bhalla | @nitabhalla | Thomson Reuters Foundation
Friday, 21 April 2017 13:00 GMT

Kailash Satyarthi, 2014 Nobel Peace Prize Laureate, takes part in a panel during the Clinton Global Initiative's annual meeting in New York, September 27, 2015. REUTERS/Lucas Jackson

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-    नीता भल्ला

नई दिल्ली, 21 अप्रैल (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - नोबेल पुरस्कार विजेता और बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी ने शुक्रवार को कहा कि संयुक्त राष्ट्र को संघर्ष में फंसे लाखों बच्चों को प्राथमिकता देनी चाहिये और गुलामी करवाने के लिये शरणार्थी बच्चों की तस्करी किये जाने से बचाना चाहिये।

2014 में पाकिस्तान की स्कूली छात्रा मालाला यूसुफजई के साथ संयुक्त रूप से नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित सत्यार्थी ने कहा कि टेलीविजन पर 4 अप्रैल के एक रासायनिक हमले के बाद सांस लेने में हांफते हुये सीरियाई बच्चों के चित्र देखने के बाद वे इस विषय पर अपनी आवाज उठाने के लिये प्रेरित हुये।

सत्यार्थी ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "मैं हमेशा चिंतित था तथा मैंने शरणार्थी संकट और विशेष रूप से सीरिया जैसे संघर्षरत क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों के बारे में बात की है।"

"लेकिन हाल ही के रासायनिक हमले ने मेरी अंतरात्मा को झकझोर दिया है। इससे अधिक जघन्‍य क्या हो सकता है? मैंने सोचा कि इस पर आवाज उठाना आवश्‍यक है और सशस्त्र संघर्ष में फंसे बच्चों तथा बाल शरणार्थियों की बेहतर सुरक्षा के लिए कुछ कार्रवाई करने का सुझाव भी देना चाहिये।"

संयुक्‍त राष्‍ट्र की बच्‍चों के लिये एजेंसी यूनिसेफ के अनुसार लगभग 25 करोड़ बच्चे यानि दुनिया भर के नौ में से एक बच्‍चा सीरिया, अफगानिस्तान, यमन और नाइजीरिया जैसे युद्ध प्रभावित देशों में रहता है।

कई बच्‍चों को चिकित्सा देखभाल, स्कूली शिक्षा की सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं और उनमें पोषण की कमी होती है। भाग जाने वाले बच्‍चों की तस्‍करी कर उन्‍हें खेतों, घरों, होटल और यहां तक ​​कि वेश्यालयों में जबरन मजदूरी करवाने के लिये बेचे जाने का खतरा होता है। कुछ शरणार्थी लड़कियों के माता-पिता उनकी शादी कर देते हैं, क्‍योंकि वे सोचते हैं कि उसका पति उनकी बेटी की बेहतर रक्षा करेगा।

यूनिसेफ का कहना है कि लगभग पांच साल से चल रहे संघर्षों की संख्या बढ़ रही है। पिछले पांच सालों में 15 नये संघर्ष या पुराने युद्ध दोबारा शुरू हुये हैं, जिसका बच्चों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ता है।

यूनिसेफ के मुताबिक  सीरिया के भीतर ही 30 लाख से अधिक बच्चे विस्थापित हुये हैं और 20  लाख सीरियाई बच्चे लेबनान, तुर्की, जॉर्डन, मिस्र, इराक के अलावा कई देशों में शरणार्थी हैं।

भारत के ईंट के भट्ठों, पत्थर की खदानों, कालीन कारखानों, सर्कसों, कारखानों और खेतों में काम करने वाले 80,000 से अधिक बच्चों को बचाने वाले सत्‍यार्थी ने कहा कि वह तुर्की, जर्मनी और इटली में शरणार्थी शिविरों का दौरा करने के बाद काफी परेशान थे।

उन्होंने कहा, "मैं शिविरों में ऐसे माता-पिता से मिला जो अपनी युवा बेटियों की सुरक्षा के लिए उनकी शादी बड़ी उम्र के पुरूषों से करना बेहतर मानते हैं। मैंने सुना है कि बच्चों की यौन कर्म या उनके अंगों के लिए तस्‍करी की जाती है। कुछ बच्‍चों को कट्टरपंथी बनाकर आत्मघाती हमलावरों के रूप में तैयार किया जाता है।"

63 वर्षीय कार्यकर्ता ने संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद से उचित कार्रवाई करने का आग्रह किया है।

सत्यार्थी ने कहा, "संघर्ष में बच्चों की निगरानी के लिये विशेष प्रतिवेदक तैनात करने जैसे परंपरागत दृष्टिकोण के उपाय कारगर नहीं हैं। हमें सख्‍त कदम उठाने होंगे और यह सुरक्षा परिषद के प्रत्यक्ष हस्तक्षेप के माध्यम से ही संभव है।"

"सुरक्षा परिषद को एक उच्च स्तरीय पैनल नियुक्त करना चाहिये, जो समय-समय पर शरणार्थी बच्चों सहित संघर्ष में फंसे बच्‍चों की स्थिति की जानकारी दे। पैनल के निष्कर्षों के आधार पर सदस्य देशों द्वारा प्रस्ताव तैयार कर सुरक्षा परिषद के समक्ष रखे जाने चाहिये।"

सत्यार्थी ने कहा कि वे अन्य विश्व नेताओं, पूर्व राष्ट्रपतियों, पूर्व प्रधान मंत्रियों और साथी पुरस्कार विजेताओं से मिलकर अपनी याचिका पर सहमति बनाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्‍हें उम्‍मीद है कि सितंबर में न्यूयॉर्क में होने वाली महासभा के दौरान वे संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख एंटोनियो गटरेस से मुलाकात करेंगे।

उन्होंने कहा कि संघर्ष में फंसे बच्चों पर संयुक्‍त राष्‍ट्र के प्रस्‍ताव से जागरूकता बढ़ेगी और अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश अपनी सीमाएं बाल शरणार्थियों के लिए खोलने को प्रोत्साहित होंगे।

उन्होंने कहा, "ये बच्चे उन अपराधों के शिकार हैं जो उन्होंने किये ही नहीं हैं। इसलिए उनके लिए प्रत्‍येक मन, प्रत्‍येक द्वार, प्रत्‍येक सीमा खुली होनी चाहिये। शक्ति मिसाइलें दागने और बम फेंकने में नहीं है, बल्कि सामर्थ्‍य तो सहानुभूति दिखाने में है।"

(रिपोर्टिंग- नीता भल्‍ला, संपादन- एम्‍मा बाथा; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

 

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