चेन्नई, 2 मई (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) – कार्यकर्ताओं ने मंगलवार को कहा कि स्कूल में बच्चों का नामांकन बढ़ाने के लिए भारत से कपड़े, जूते, चमड़े और प्राकृतिक पत्थरों की आपूर्ति करने वाली ब्रांड कंपनियों को अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं की जांच और समुदायों के साथ काम करके बाल श्रम मुक्त क्षेत्र बनाने और इन्हें कायम रखने में मदद करनी चाहिए।
धर्मार्थ संस्थाओं के गठबंधन- स्टॉप चाइल्ड लेबर कोएलिशन ने हाल ही में कंपनियों के दिशानिर्देशों के अनुरूप "श्रम केंद्रों" के इलाकों में रहने वाले बच्चों की स्कूल की पढ़ाई पूरी करवाने में मदद के लिये एक अभियान शुरू किया है।
गठबंधन में शामिल दक्षिण भारत के कपड़ा केंद्र तिरुपुर में धर्मार्थ संस्था- सामाजिक जागरूकता और स्वैच्छिक शिक्षा (सेव) के संस्थापक ए एलॉयसियस ने कहा, "ब्रांड कंपनियों को अपने लाभ साझा कर बच्चों की स्कूली पढ़ाई पूरी करवाने की ज़िम्मेदारी उठानी चाहिये।"
वयस्क मजदूरों के लिए उचित मजदूरी सुनिश्चित करने से लेकर नामांकन अभियान के लिये ग्रामीण परिषदों के साथ मिलकर कार्य करने और शिक्षा तक पहुंच बढ़ाने के इस अभियान का लक्ष्य "संभावित बाल श्रमिकों से केवल स्कूलों में ही काम करवाना" है।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार भारत के लगभग 57 लाख बाल श्रमिकों में से आधे से अधिक 5 से 17 साल के बच्चे खेतों में और एक चौथाई से अधिक बच्चे कपड़ों पर कढ़ाई करने, कालीन बुनने और माचिस की तीलियां बनाने जैसे निर्माण कार्य करते हैं।
बच्चे रेस्टोरेंटों और होटलों में और घरेलू कामगार के तौर पर काम करते हैं।
भारतीय जनगणना के आंकड़ों के आधार पर यूनिसेफ की 2017 की रिपोर्ट में कहा गया है कि 5 से 9 वर्ष की आयु के बाल श्रमिकों का अनुपात 2001 के 15 प्रतिशत से बढ़कर 2011 में 25 प्रतिशत हो गया।
कार्यकर्ताओं का कहना है कि कई कंपनियां अपनी इकाईयों में बच्चों से काम नहीं करवाती हैं, लेकिन वे छोटे कारखानों या घर में रहकर काम करने वालों के साथ उत्पादन उप-अनुबंध करते समय कोई जांच नहीं करते हैं और यहां बाल श्रम अत्यधिक प्रचलित है।
गठबंधन में शामिल एक अन्य धर्मार्थ संस्था- एम वी फाउंडेशन के वेंकट रेड्डी ने कहा, "अक्सर बच्चों से आपूर्ति श्रृंखला में काम करवाया जाता है, जिससे इनकी निगरानी करना अधिक कठिन होता है।"
गठबंधन के दिशानिर्देशों में बाल श्रम मुक्त क्षेत्रों के लिए निजी कंपनियां, नागरिकों और सरकार से एक साथ मिलकर कार्रवाई करने का आग्रह किया गया है।
इन दिशानिर्देशों को लागू करने के बाद दिसंबर में तिरुपुर में दो समुदायों के लगभग 20,000 आवासों को बाल श्रम मुक्त घोषित किया गया था।
एलॉयसियस ने कहा, "पहली बार इस क्षेत्र में छोटे परिधान निर्माता इस मुद्दे पर हमारे साथ कार्य करने पर सहमत हुये थे।"
ये दिशानिर्देश आंध्र प्रदेश के कपास के खेतों, राजस्थान की पत्थर खदानों और आगरा के जूते बनाने के कारखानों में सफल कार्रवाई के आधार पर तैयार किये गये हैं।
रेड्डी ने कहा, "हम चाहते हैं कि ब्रांड कंपनियां अपने कारखानों में गुणवत्ता जांच अनुभाग की तरह ही सामाजिक उत्तदायित्व विभाग भी स्थापित करें।"
"आपूर्ति श्रृंखलाओं में बाल मजदूरी की पैठ काफी गहरी है और कंपनियां यह जानती हैं। लेकिन उन्हें स्कूल का निर्माण नहीं करना है, उन्हें तो केवल बच्चों को स्कूल की पढ़ाई पूरी करवाने के कार्यक्रमों में शामिल होना है।"
(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- अलिसा तांग; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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