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बचाई गयी बांग्लादेशी यौन गुलाम का प्रतिबंधित करेंसी नोट पर भारत के प्रधानमंत्री को ट्वीट संदेश

Thursday, 4 May 2017 11:44 GMT

    मुंबई, 4 मई (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - भारतीय वेश्यालय में बेची गयी अरुणा ने लगभग डेढ़ साल में ग्राहकों द्वारा बख्‍शीश के तौर पर दिये गये पैसे छुपा कर जमा किये थे। उसे आस थी कि जब भी वह अपने घर बांग्लादेश लौटेगी उस समय इन भारतीय करेंसी नोट के बदले बांग्‍लादेशी नोट ले लेगी।

    लेकिन पुणे के एक वेश्यालय से बचाए जाने के बाद उसे पता चला कि उसके 500 और 1,000  रुपये के कुल 10,000 रुपये के करेंसी नोट अब बेकार हो गये हैं, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार रोकने के लिये पिछले साल नवंबर में उन नोटों पर प्रतिबंध लगा दिया था।

     इसलिये उसे बचाने वाले संगठन की मदद से अरुणा ने ट्विटर के जरिये प्रधानमंत्री मोदी के समक्ष अपनी शिकायत दर्ज की।

  

   अरुणा ने मुंबई के रेस्‍क्‍यू फाउंडेशन के ट्विटर हैंडल पर मंगलवार को एक पत्र लिखकर मोदी को ट्वीट किया कि, "मैंने अपने घर ले जाने के लिये यह पैसे अपने आंतरिक वस्‍त्रों में वेश्यालय के मालिक से छुपाकर जमा किये थे।"

       उसने लिखा, "मैंने यह पैसे अत्‍यंत कष्‍ट झेलकर कमाये हैं। मेरे लिये यह पैसे बहुत कीमती हैं। कृपया इन करेंसी नोट को बदलने में मेरी मदद करें।"

      लोगों द्वारा जमाखोरी किये गये अरबों रुपये के "काले धन" को अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में वापस लाने और भ्रष्टाचार रोकने के लिए भारत सरकार ने अपनी मुद्रा के दो सबसे बड़े नोट का चलन पिछले साल अचानक बंद कर दिया था।

   लेकिन नोटबंदी की नीति से अरुणा की तरह कई अनजान पीड़ितों के पास अब कुछ भी नहीं बचा है।

    बांग्लादेश में एक परिधान कारखाने में काम करने वाली अरुणा को उसका एक सहकर्मी अच्‍छे वेतन की नौकरी दिलाने का झांसा देकर अवैध रूप से भारत लाया था, लेकिन सीमा पार करने के तुरंत बाद उसे बेच दिया था।

  बेंगलुरु के एक वेश्यालय में लगभग डेढ़ साल काम करने के बाद उसे पुणे के वेश्‍यालय में लाया गया था, जहां से उसे एक दिन बाद ही दिसंबर 2015 में छुड़ा लिया गया था।

   इस साल मार्च में बांग्लादेश ने उसे अपने घर लौटने के लिए वीजा जारी किया था।

    अरुणा बचाई गई उन 19 तस्‍करी पीडि़ताओं में से है, जो 15 मई को पुणे से रेलगाड़ी में बैठेंगी और लगभग 1,800 किलोमीटर की यात्रा कर पूर्वी भारत पंहुचेंगी। यहां से उन्‍हें एक पुलिस बस के जरिये सीमा पार कर बांग्लादेश ले जाया जायेगा।

    लेकिन अगर तब तक उसके नोट बदले नहीं गये तो वह अपने घर खाली हाथ लौटेगी।

      पुणे में रेस्‍क्‍यू फाउंडेशन के आश्रय गृह की सहायक संचालक तनुजा पवार ने कहा, "इस पैसे से वह घर से अपनी अनुपस्थिति को कुछ वैध ठहरा सकती थी। वह अपने परिजनों को बता सकती थी कि वह भारत में काम कर रही थी।" अरुणा रेस्‍क्‍यू फाउंडेशन के आश्रय गृह में ही रहती है। 

      पवार ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया कि पिछले साल नोट बंदी की घोषणा के बाद से बचायी गयी महिलाओं की नकद बचत राशि के बदले नये करेंसी नोट ले लिये गये थे।

     लेकिन अरुणा ने वीजा मिलने के बाद पवार को वेश्यालय में पड़े अपने ट्रंक में रखे पैसे के बारे में बताया।

    कार्यकर्ताओं का कहना है कि तस्करी पीडि़त अक्सर पूरी जानकारी नहीं देते हैं, क्योंकि उनके मन में बैठा दिया जाता है कि उनको बचाने वाले उन्हें नुकसान पहुंचाएंगे या उनका पैसा ले लेंगे।

     पुलिस की मदद से ट्रंक तो मिल गया और उसमें रखे पैसे भी, लेकिन अब उनका कोई मोल नहीं है।

     रेस्‍क्‍यू फाउंडेशन के अधिकारियों ने कहा कि अरुणा के पत्र पर प्रधानमंत्री की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं मिली है और उनके कार्यालय से भी किसी ने इस पर प्रतिक्रिया देने के अनुरोध का कोई जवाब नहीं दिया है।

   इस बीच, अरुणा के ट्वीट के बाद से कई लोगों ने उसे अपने घर ले जाने के लिये पैसे देने की पेशकश की है।

(रिपोर्टिंग- रोली श्रीवास्‍तव, संपादन- अलिसा तांग; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

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