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भारत के मानव तस्करी रोधी बस का गांवों और कस्बोंन का दौरा

by नीता भल्ला | @nitabhalla | Thomson Reuters Foundation
Tuesday, 23 May 2017 15:26 GMT

-    नीता भल्ला

नई दिल्ली, 23 मई (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)– "मानव तस्करी रोधी बस" के कस्‍बे में आगमन पर आपको आसानी से पता चल जाता है। जैसे ही एक बड़ी सफेद बस पूर्वी भारत के कस्बों और गांवों से धीरे-धीरे गुजरती है वैसे ही लाउडस्पीकर से प्रफुल्लित आवाज में युवा और बुजुर्ग निवासियों से मनोरंजन के कारवां में शामिल होने का आग्रह किया जाता है।

और यह मनोरंजन वास्तव में काफी मजेदार है। इसमें संगीत, नृत्य प्रदर्शन और नुक्‍कड़ नाटक से लेकर कठपुतली के शो, फिल्में और प्रदर्शनियां होती हैं, लेकिन सभी में एक महत्‍वपूर्ण संदेश है: "सतर्क रहें, आगाह करें। मानव तस्करी रोकें।"

यह बस कोलकाता के अमेरिकी वाणिज्य दूतावास का विचार है। यह देश में तस्करी और दासता के बारे में जन जागरूकता फैलाने का अभिनव प्रयास है, जहां इस तरह के अपराध बड़े पैमाने पर हैं और बढ़ रहे हैं।
 
बस के दोनों ओर शानदार संदेश #स्‍टॉपह्यूमनट्रैफिकिंग (मानव तस्‍करी रोकें) के साथ इस काफिले ने एक महीने में ही पश्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार में 5,800 किलोमीटर की यात्रा के दौरान 50,000 लोगों से संपर्क किया।

अभियान में शामिल धर्मार्थ संस्‍थाओं में से एक बांग्‍लानाटक डॉट कॉम की अनन्या भट्टाचार्य ने कहा, "हमने नुक्‍कड़ नाटक, मोबाइल प्रदर्शनियों जैसे कई तरीकों का इस्तेमाल किया और अलग-अलग विश्राम स्‍थलों पर कठपुतली का नाच दिखाने वाले, नर्तक दल तथा संगीतकार इसमें शामिल होते गये। "

"हमने लोगों को मानव तस्‍करी के खतरों के बारे में आगाह किया। उन्हें बचाये गये बंधुआ मजदूरों के लिए मुआवजे और प्रवासी श्रमिकों के लिए हेल्पलाइन नंबर जैसे सुरक्षा और लाभों के बारे में भी जानकारी दी गई।"

सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2016 में भारत में लगभग 20,000 महिलाएं और बच्चे मानव तस्करी के शिकार हुये, जो 2015 की तुलना में करीबन 25 प्रतिशत अधिक थे।

हर साल तस्‍कर बड़े पैमाने पर गरीब और ग्रामीण लोगों को देश के कस्बों और शहरों में अच्छी नौकरियां दिलाने का झांसा देते हैं, लेकिन उन्हें आधुनिक समय की गुलामी करने के लिये बेच दिया जाता है।

कई घरेलू नौकर के रूप में काम करते हैं या परिधान कारखानों जैसे छोटे उद्योगों में अथवा खेतों काम करने को मजबूर होते हैं। कईयों को तो वेश्यालयों तक में धकेल दिया जाता है।

कई मामलों में तो उन्‍हें वेतन भी नहीं दिया जाता है या वे ऋण बंधक बना लिये जाते हैं। कुछ लापता हो जाते हैं और उनके परिजन कभी भी उनका पता नहीं लगा पाते हैं।

कार्यकर्ताओं का कहना हैं कि मानव तस्करी रोकने में सबसे बड़ी बाधा समुदायों के साथ ही स्थानीय पुलिस और अधिकारियों के बीच अपराध के बारे में समझ की कमी है।

17 मार्च को कोलकाता से शुरू हुये इस बस की यह यात्रा 30 अप्रैल को बिहार की राजधानी पटना में संपन्‍न हुई और इस दौरान 115 स्‍थान पर पड़ाव ड़ाला गया था।

नौकरी दिलाने, विवाह कराने और बेहतर जीवन शैली के झूठे वादे जैसी तस्करों के हथकंडों को उजागर करने के लिए नुक्‍कड़ नाटकों, गीतों और प्रदर्शनों का उपयोग किया गया था।

स्थानीय भाषाओं में पोस्टर और पुस्तिकाएं उपलब्‍ध करायी गयी थी, जिनमें जानकारी दी गई थी कि अगर किसी का सामना तस्करों से होता है या किसी की तस्‍करी किये जाने का संदेह होने पर लोगों को क्या करना चाहिए।

अभियान में शामिल ऐक अन्‍य धर्मार्थ संस्‍था शक्ति वाहिनी के रवि कांत ने पूर्वोत्तर राज्यों में भी ऐसी ही यात्रा करने की आशा व्‍यक्‍त की है।

(रिपोर्टिंग- नीता भल्‍ला, संपादन- एम्मा बाथा; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

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