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बड़े पैमाने पर उपलब्धक आंकड़ों से भारत के मानव तस्क री के केंद्रों की पहचान

by नीता भल्ला | @nitabhalla | Thomson Reuters Foundation
Wednesday, 31 May 2017 13:28 GMT

नई दिल्ली, 31 मई (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - एक भारतीय धर्मार्थ संस्‍था मानव तस्करी के केंद्रों का पता लगाने में बड़े पैमाने पर उपलब्‍ध आंकड़ों का उपयोग कर रही है, ताकि अधिक खतरे वाले गांवों से लापता कमजोर महिलाओं और लड़कियों को देह व्‍यापार में ढ़केलने से रोका जा सके।

माय चॉइसेस फाउंडेशन उन गांवों की पहचान करने के लिए विशेष रूप से तैयार की गई तकनीक का उपयोग करती है, जहां के लोगों से आधुनिक दासता करवाने का खतरा सबसे अधिक है। इसके बाद लोगों को आगाह करने के लिए स्थानीय स्‍तर पर अभियान चलाया जाता है।

 

माय चॉइसेस फाउंडेशन की संस्थापक एल्का ग्रोबलर ने कहा, "आम भारतीय जनता अभी भी इस तथ्‍य से अनजान है कि मानव तस्करी होती है और अधिकतर माता-पिता को यह नहीं पता है कि उनके बच्चे वास्तव में गुलामी करने के लिये बेचे जा रहे हैं।"

मंगलवार को जारी एक बयान में ग्रोबलर ने कहा, "इसलिये मानव तस्‍करी समाप्त करने के लिए गांव स्तर पर जागरूकता और शिक्षा अति महत्वपूर्ण है।"

सबसे अधिक खतरे वाले गांवों की पहचान करने के लिए ऑस्ट्रेलिया की कंपनी क्वांटियम द्वारा विकसित विश्लेषणात्‍मक तरीके में कई कारकों का उपयोग किया जाता है।

कमजोर क्षेत्रों की पहचान करने वाला यह तरीका भारत की जनगणना, शिक्षा और स्वास्थ्य के आंकड़ों तथा सूखे की स्थिति, गरीबी का स्तर, शिक्षा और नौकरी के अवसरों जैसे कारकों पर आधारित है।

"रेड अलर्ट"

वैश्विक दासता सूचकांक 2016 के अनुसार दुनिया भर में लगभग चार करोड़ 60 लाख लोग गुलाम हैं, जिनमें से एक करोड़ 80 लाख से भी अधिक दास भारत में हैं। यह सूचकांक आधुनिक समय की दासता को समाप्‍त करने का प्रयास करने वाले वैश्विक संगठन- वॉक फ्री फाउंडेशन ने संकलित किया था।

तस्कर ज्‍यादातर ग्रामीणों को अच्छी नौकरी दिलाने और अग्रिम भुगतान का झांसा देते हैं, लेकिन उनको या उनके बच्चों को खेतों अथवा ईंट भट्ठों में मजदूरी करने को मजबूर किया जाता है। उन्‍हें वेश्यालयों में दास बनाया जाता है और यौन गुलामी करने के लिये बेच दिया जाता है।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2016 में भारत में लगभग 20,000 महिलाएं और बच्चे मानव तस्करी के शिकार हुये थे, जो 2015 की तुलना में करीब 25 प्रतिशत अधिक है।

हालांकि हाल के वर्षों में भारत सरकार ने अपनी तस्करी रोधी नीति सुदृढ़ की है, कार्यकर्ताओं का कहना है कि जन जागरूकता की कमी इसमें सबसे बड़ी बाधा है।

2014 में माय चॉयसेस फाउंडेशन ने माता-पिता, शिक्षकों, गांव के नेताओं और बच्चों को तस्करों के बारे में जानकारी देने के लिए शैक्षणिक कार्यक्रम "ऑपरेशन रेड अलर्ट" शुरू किया था।

लेकिन देशभर के छह लाख से अधिक गांवों और सीमित संसाधनों के चलते धर्मार्थ संस्‍था ने क्वांटियम के साथ मिलकर नये तरीके से आंकड़े तैयार किये और अपराधियों से निपटने में पुराने तथा नए तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है।

ग्रोबलर ने कहा, "एक समय में एक गांव में अत्यधिक परिष्कृत तकनीक और जमीनी स्तर पर शिक्षा का संयोजन कर हम मानव तस्करी को जड़ से मिटाने में मदद कर रहे हैं।"

(रिपोर्टिंग- नीता भल्‍ला, संपादन- लिंडसे ग्रीफिथ; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

 

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