नई दिल्ली, 2 जून (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - एक अध्ययन से खुलासा हुआ है कि भारत के कस्बों और शहरों में नाबालिग लड़कियों के विवाह बढ़ रहे हैं। इससे यह धारणा संदेह के घेरे में आ जाती है कि देश में बाल विवाह अधिकतर गांवों में प्रचलित है।
भारत में बाल विवाह गैर कानूनी है, लेकिन समाज में इसकी जड़ें गहरी फैली हुई हैं और यह देश के कुछ हिस्सों में अभी भी व्यापक रूप से प्रचलित है। 2011 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि शादी के लिये 18 वर्ष की कानूनी आयु से पहले ही 50 लाख से अधिक लड़कियों का विवाह किया गया था, जो 2001 के आंकड़ों से कुछ ही कम हैं।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और धर्मार्थ संस्था- यंग लाइव्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां 2001 से ग्रामीण इलाकों में नाबालिग वधुओं की संख्या 0.3 प्रतिशत कम हुई, वहीं शहरी इलाकों में इनकी संख्या में 0.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत की 130 करोड़ की आबादी को देखते हुये ये आंकड़े नगण्य हैं, इसका मतलब यह है कि 2001 से 2011 तक के दशक में कस्बों और शहरों में लाखों नाबालिग लड़कियों का विवाह हुआ।
यंग लाइव्स की निदेशक रेणु सिंह ने गुरुवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, "गौरतलब है कि किसी को भी शहरी क्षेत्रों विशेष रूप से महानगरों के आसपास के जिलों में बालिका वधुओं की संख्या में बढ़ोत्तरी की उम्मीद नहीं थी।"
"यह भी आश्चर्य की बात है कि अब भी बड़ी संख्या में 10 से 14 साल की लड़कियों की शादी शहरी इलाकों में हो रही हैं। ऐसी आशा और सोच थी कि शहरी क्षेत्रों में बाल विवाह का कोई अस्तित्व ही नहीं होगा।"
भारत की जनगणना के आंकड़ों पर बाल विवाह के बारे में इस तरह के पहले अध्ययन में पाया गया कि ग्रामीण क्षेत्रों में चार लड़कियों में से लगभग एक और शहरी इलाकों में पांच में से एक लड़की की शादी 18 साल की उम्र से पहले की गई थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर में उत्तर प्रदेश और दक्षिण में तेलंगाना, आंध्र प्रदेश तथा कर्नाटक जैसे राज्यों के कुछ शहरी जिलों में 2001 से 2011 तक नाबालिग दुल्हनों की संख्या में वृद्धि देखी गई।
सिंह ने कहा कि कुछ कस्बों और शहरों में नाबालिग वधुओं की संख्या में बढ़ोतरी के कारणों को समझने के लिए और अधिक शोध की जरूरत है।
नाइजर, गिनी, साउथ सूडान, चाड और बुरकीना फासो के साथ ही भारत भी ऐसे शीर्ष 10 देशों में से एक है, जहां लड़कियों और महिलाओं को सशक्त बनाने तथा महिलाओं के खिलाफ अपराध के लिये कड़े दंड के प्रावधानों के बावजूद बाल विवाह व्यापक रूप से प्रचलित है।
अधिकतर बाल विवाह गरीबी, कानूनों के कार्यान्वयन में कमी, पितृसत्तात्मक सामाजिक मानदंड और परिवार के सम्मान की चिंता के कारण किये जाते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि हर क्षेत्र में महिलाओं के विकास को रोकने और कुपोषण, बिगड़ता स्वास्थ्य और अज्ञानता के दुष्चक्र को शुरू करने वाली इस प्रथा से बाल अधिकारों का उल्लंघन होता है।
एक बालिका वधू के स्कूल छोड़ने की अधिक संभावना होती है और उसे गर्भावस्था तथा प्रसव के दौरान गंभीर शारीरिक जटिलताएं हो जाती हैं। उनके शिशु ज्यादातर कम वजन के पैदा होते हैं और कुछ भाग्यशाली ही पांच साल से अधिक जीवित रह पाते हैं।
(रिपोर्टिंग- नीता भल्ला, संपादन- एलिसा तांग; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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