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साक्षात्कार-भारत ने मानव तस्करी का पता लगाने के लिए महत्व्पूर्ण डेटाबेस तैयार किये

by नीता भल्ला | @nitabhalla | Thomson Reuters Foundation
Thursday, 22 June 2017 13:03 GMT

A man types on a computer keyboard in front of the displayed cyber code in this illustration picture taken March 1, 2017. REUTERS/Kacper Pempel/Illustration/File Photo

Image Caption and Rights Information

नई दिल्ली, 22 जून (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - नई दिल्ली की एक धर्मार्थ संस्‍था मानव तस्करी के मामलों के बारे में भारत का पहला ऑनलाइन डेटाबेस (आंकड़ें) तैयार कर रही है। इससे बड़े पैमाने पर जानकारी की कमी को भरने में और आधुनिक गुलामों की खरीद फरोख्‍त के केंद्र समाप्‍त करने में कानून लागू करने वाली एजेंसियों को मदद मिलेगी।

दुनिया के अन्‍य देशों की तुलना में भारत में अधिक दास हैं, लेकिन निजी लाभ के लिए महिलाओं और बच्चों की खरीद फरोख्‍त और शोषण कर रहे इस संगठित नेटवर्क को समझने में इस अपराध से जुड़े आंकड़ों की कमी एक बड़ी बाधा है।  

कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि ऑनलाइन आंकड़े काफी महत्‍वपूर्ण हो सकते हैं।

मानव तस्‍कारी रोधी धर्मार्थ संस्‍था- शक्ति वाहिनी के संस्थापक रवि कांत ने कहा, "यह कार्य महत्वपूर्ण है क्योंकि यह ऐसे समय हुआ है जब सरकार मानव तस्करी पर नया कानून तैयार कर रही है और इस अपराध से निपटने के बारे में काफी चर्चा हो रही है।"

अमरीका में तस्करी के मुकदमों के आंकड़े तैयार करने में टेक्सास क्रिश्चियन यूनिवर्सिटी (टीसीयू) के शिक्षाविदों और सॉफ़्टवेयर इंजीनियरों द्वारा तैयार की गई तकनीक को भारत में अपनाने के लिये कांत ने टीसीयू साथ साझेदारी की है।

कांत का कहना है कि गुलामों की खरीद फरोख्‍त करने वाले अपने धंधे को और बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी का इस्‍तेमाल करते हैं, इसलिये यह उन्‍हें उन्‍हीं की भाषा में जवाब देने का समय है। आंकड़ों का डिजिटीकरण किया जाये तो इनका प्रभावी इस्तेमाल हो सकता है।

कांत ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "न्यायालय के रिकॉर्ड से डाटाबेस में विवरण दर्ज करने से हम पहली बार तस्करों की पूरी जानकारी, उनकी कार्यप्रणाली और तस्करी के तरीकों से लेकर पुलिस जांच की गुणवत्ता और अपराधियों को दी गई सजा की दर तक का विश्लेषण कर सकेंगे।"

कांत ने कहा कि आंकड़ों से शोधकर्ता कम मुकदमें दर्ज करने वाले राज्यों की पहचान करने जैसे देश भर में तस्‍करी के प्रचलन की पहचान और अधिक धनराशि तथा पुलिस, अभियोजन पक्ष एवं न्यायाधीशों के लिए प्रशिक्षण के प्रावधान के प्रयास कर सकेंगे।

वॉक फ्री फाउंडेशन के 2016 के वैश्विक दास सूचकांक के अनुसार विश्‍व में लगभग चार करोड़ 60 लाख लोग गुलाम हैं, जिनमें से एक करोड़ 80 लाख से अधिक दास भारत में हैं।

तस्‍कर अधिकत‍र ग्रामीणों को अच्छी नौकरी और पेशगी देने का झांसा देते हैं, लेकिन उन्‍हें या उनके बच्‍चों को जबरन घरेलू नौकर के तौर पर, खेतों में मजदूरी करने या देह व्‍यापार करने के लिये मजबूर किया जाता है।

 

भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 2016 में देश में लगभग 20,000 महिलाएं और बच्चे मानव तस्करी के शिकार हुये, जो 2015 की तुलना में करीबन 25 प्रतिशत अधिक है।

"योद्धा वकील"

इस नई उपलब्धि से कांत के व्‍यवहार में कोई बदलाव नहीं आया है।

उच्‍चतम न्यायालय के वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता कांत लगभग दो दशकों से उन महिलाओं और बच्चों के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जिनकी तस्‍करी कर उन्‍हें दास बनाया गया था।

लापता लोगों को ढ़ूढ़ने और उन्‍हें बचाने के लिए कांत और उनके दो भाई पुलिस के साथ मिलकर कार्य करते हैं। उनकी संस्‍था कड़ी तस्करी रोधी नीतियों और कानूनों के लिए भी अभियान चलाती है।

कांत का कहना है कि सख्‍त कानून बनाने के लिये उनके प्रभावी प्रयासों में उतार चढ़ाव आता रहता है, लेकिन इसके लिये सालों से मानव तस्करी से जुड़े आंकड़ों की अत्‍यधिक कमी लगातार जारी थी।

कांत ने कहा, "हम जानते हैं कि भारत में तस्करी से निपटने में क्या चुनौतियां हैं और हम संभावित समाधान भी जानते हैं। लेकिन समस्या यह है कि अगर आपके पास इसके बारे में पर्याप्‍त आंकड़े नहीं हैं तो कोई भी आपकी बात सुनने को तैयार नहीं होगा।"

मार्च में टीसीयू द्वारा "ग्लोबल इनोवेटर" नाम से सम्‍मानित कांत अब इस विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के साथ काम कर रहे हैं, जिसने हाल ही में अमरीका की संघीय अदालतों में चलाये गये 900 से ज्यादा तस्‍करी के मुकदमों के आंकड़े तैयार किये हैं।

उसी तर्ज पर कांत और शोधकर्ताओं का एक दल अब भारत में यह कार्य कर रहा है। तस्करी के मामलों का पता लगाने के लिये 600 से अधिक जिला अदालतों से एकत्रित आंकड़ों को वे ऑनलाइन दर्ज कर रहे हैं। 

 

उन्‍हें उम्‍मीद है कि वर्ष के अंत तक साल 2000 के बाद से लगभग 4,000 मामलों की विस्‍तृत जानकारी होगी, जिनका इस्‍तेमाल वे मानव तस्‍करी के प्रचलन और तरीको को चिन्हित करने में करेंगे।

उन्होंने कहा, "हम जानते हैं कि यह कठिन कार्य है, लेकिन यह हो सकता है। अधिकांश अदालतों के रिकॉर्ड डिजीटल रूप और अंग्रेजी में हैं तथा डेटाबेस तैयार करने में हम कानून की पढ़ाई करने वाले छात्रों से मदद ले सकते हैं।"

"हम देख रहे हैं कि पीडि़तों को प्रलोभन देने और उनकी खरीद फरोख्‍त के लिए तस्‍कर प्रौद्योगिकी का अधिक इस्‍तेमाल कर रहे हैं, इसलिए हमें भी ऐसा ही करना चाहिये और उन्हें रोकने के लिए तकनीक का उपयोग करना होगा।"

(रिपोर्टिंग- नीता भल्‍ला, संपादन- लिंडसे ग्रीफिथ; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

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