"अपराधियों को गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे भेजना महत्वपूर्ण है, लेकिन केवल इससे समाधान नहीं होगा। आपको उनके नेटवर्क को तोड़ना होगा"
- रोली श्रीवास्तव
मुम्बई, 31 जुलाई (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)- तस्करी रोधी अभियान चलाने वाली एक प्रमुख कार्यकर्ता का कहना है कि मानव तस्करी से धन कमाने वाले अपराधियों से उनकी संपत्तियां जब्त कर लेनी चाहिये और इस राशि से पीडि़तों की मदद की जानी चाहिए। उन्होंने कई अरब डॉलर के इस वैश्विक अपराध की वित्तीय जांच कराने का भी आग्रह किया।
गुलामी विरोधी धर्मार्थ संस्था- लिबर्टी एशिया की विधि विभाग प्रमुख अर्चना कोटेचा ने कहा कि केवल आपराधिक जांच पर्याप्त नहीं है क्योंकि इससे अपराधियों को सलाखों के पीछे भेजा जा सकता है लेकिन इससे अवैध उद्योग पर रोक नहीं लगाई जा सकती है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार सालाना लगभग 150 अरब डॉलर का मानव तस्करी का कारोबार विश्व का सबसे तेजी से बढ़ता आपराधिक उद्यम है। संगठन का कहना है कि वैश्विक स्तर पर इसमें शामिल लगभग दो करोड़ 10 लाख लोग जबरन मजदूरी और तस्करी पीडि़त हैं।
हाल ही में किये गये साक्षात्कार में कोटेचा ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "वित्तीय जांच महत्वपूर्ण है और यह आपराधिक जांच के साथ ही होनी चाहिए ताकि तस्करों पर नजर रखी जा सके और उनके नेटवर्क को तोड़कर यह सुनिश्चित किया जाये कि इस कारोबार का लाभ उन तक ना पहुंचे।"
"अगर उनके पास पैसा आता रहा तो उनका कारोबार चलता रहेगा। अपराधियों को गिरफ्तार कर जेल भेजना महत्वपूर्ण है, लेकिन केवल इससे समाधान नहीं होगा। आपको उनके नेटवर्क को तोड़ना होगा।"
कोटेचा ने कहा कि वित्तीय जांच से धन प्रवाह का पता लगाया जा सकता है कि यह धन कहां जा रहा है, कौन इसका लेन-देन करता है, कौन इसके लिये धन मुहैया करवाता है। इससे तस्करों की धन संपत्ति जब्त करने में मदद मिल सकती है जिसे अपराध से हुई आय के रूप में देखना चाहिए।
उन्होंने कहा कि पीडि़तों के मुआवजे का बोझ राज्य को नहीं बल्कि तस्करों को उठाना चाहिए।
कोटेचा ने कहा, "अधिकतर देशों में जब्त की गई संपत्ति से मिलने वाला धन राज्य को मिलता है, लेकिन तस्करों से जब्त की गई संपत्ति से मिलने वाले धन से पीड़ितों को मुआवजा दिये जाने के कानून होने चाहिये।"
उन्होंने कहा कि दुनिया भर की अदालतों ने कारखानों, खदानों और खेतों में जबरन काम करने के लिए मजबूर, देह कारोबार के लिए बेचे गये या ऋण बंधन में फंसे पीडि़तों को लाखों डॉलर का मुआवजा दिया है।
लेकिन कई देशों में यह प्रक्रिया लंबी और जटिल है। भारत में मुआवजा राशि पाने के बारे में काफी कम जानकारी है जहां सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2016 में लगभग 20,000 महिलाएं और बच्चे तस्करी पीड़ित थे, जो 2015 की तुलना में करीबन 25 प्रतिशत अधिक है।
कोटेचा ने कहा, "लोगों की तस्करी से सामाजिक मूल्य को होने वाले नुकसान का मूल्यांकन करने का किसी ने प्रयास तक नहीं किया कि इससे समाज कितना दिवालिया हो रहा है।"
"यह धन इन व्यक्तियों के माध्यम से समाज में ही वापस जाये यही एकमात्र सही तरीका है।"
आपराधिक जांच के साथ ही वित्तीय जांच करने से यह सुनिश्चित होगा कि एक वेश्यालय बंद होने पर दूसरा ना खुले और मानव खरीद फरोख्त को सही तरीके से समाप्त किया जाये।
उन्होंने कहा, "कई मामलों में तस्करों और अपराधियों के दोषी साबित होने के बावजूद पीड़ित के लिए कोई मुआवजा नहीं होता है। नये सिरे से दोबारा जीवन शुरू करने के लिये वह व्यक्ति क्या करे?"
(रिपोर्टिंग- रोली श्रीवास्तव, संपादन- बेलिंडा गोल्डस्मिथ; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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