- अनुराधा नागराज
चेन्नई, 30 अगस्त (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) – कार्यकर्ताओं और मजदूर संघों ने बुधवार को कहा कि देश के परिधान निर्माता केंद्र- दक्षिण भारत में 56 साल पुराने कानून में संशोधन के बाद अब प्रशिक्षु शार्गिदी के जाल में नहीं फंस पायेंगे। उनका कहना हैं कि संशोधित कानून को तत्काल लागू किया जाना चाहिए।
एक दशक तक अपने पक्ष में जनमत तैयार करने के बाद तमिलनाडु सरकार ने प्रशिक्षुता कानून-1961 में संशोधन किया है, जिसके तहत एक कर्मी के लिये प्रशिक्षण की अवधि सीमित की गई है और केवल 10 प्रतिशत कार्यबल ही प्रशिक्षु हो सकते हैं।
कार्यकर्ताओं ने चिंता जताई थी कि कताई मिलों और परिधान कारखानों में हजारों लड़कियों को तीन साल या उससे ज्यादा अवधि के लिए प्रशिक्षु के तौर पर काम करवाया जाता था। वे न्यूनतम से कम मजदूरी पर बगैर कल्याणकारी लाभ या नौकरी की सुरक्षा के बिना लंबे समय तक काम करती थीं।
नए नियमों के अंतर्गत प्रशिक्षुता की अवधि छह महीने से एक वर्ष तक सीमित होगी जिससे श्रमिकों को स्थायी कर्मचारियों के तौर पर काम करने का अवसर मिलेगा। कार्यकर्ताओं ने संशोधित कानून तत्काल लागू करने का आग्रह किया है।
एक दशक से अधिक समय से कानून में संशोधन की हिमायत करने वाली अखिल भारतीय मजदूर संघ परिषद (एआईसीसीटीयू) के अनंतरामन शिवकुमार ने कहा, "उद्योग में शोषण महामारी बन गया है।"
"कानून में इन संशोधनों के लिए लम्बा संघर्ष करना पड़ा है और इसके लागू होने पर श्रमिकों को चिकित्सा लाभ, सामाजिक सुरक्षा, उचित नियत छुट्टी और अधिक सम्मान मिलेगा।"
अभियान चलाने वालों का कहना है कि संशोधित नियमों से वह योजनाएं समाप्त हो जायेंगी, जिनके तहत युवा लड़कियों को प्रशिक्षुओं के रूप में काम पर रखा जाता था लेकिन तीन साल के बाद एकमुश्त धन देने का वादा कर उनसे एक सप्ताह के भीतर ही नियमित उत्पादन करवाया जाता था।
लड़कियों के पास अब औपचारिक अनुबंध होंगे, उनकी प्रशिक्षण अवधि सीमित होगी और उनकी नौकरी स्थायी हो सकती है।
महिलाओं की तमिलनाडु टेक्सटाइल एंड कॉमन लेबर यूनियन (टीटीसीयू) की सलाहकार थिव्या सेसुराज ने कहा, "कई मामलों में तो श्रमिकों को वेतन पर्ची भी नहीं दी जाती है जिससे पता चले कि उन्होंने कितनी कमाई की है और उनके वेतन में से कितनी कटौती की गई है।"
तमिलनाडु भारत के सालाना 40 अरब डॉलर के कपड़ा और परिधान उद्योग का सबसे बड़ा केंद्र है। लगभग चार लाख लोग यहां की कताई मिलों और परिधान कारखानों में यूरोप और अमेरिका में निर्यात करने के लिये परिधान बनाते हैं।
इस उद्योग में बड़े पैमाने पर गरीब परिवारों की महिला कर्मी काम करती हैं।
2016 में एक विस्तृत प्रस्तुति में राज्य श्रम विभाग ने कहा कि ज्यादातर कपड़ा मिलों में स्थायी कर्मियों की तुलना में प्रशिक्षु अधिक थे, जिन्हें कम वेतन दिया जाता था और अधिकतर प्रशिक्षुओं को "तीन साल की प्रशिक्षुता अवधि" पूरी होने पर नौकरी से निकाल दिया जाता था।
शिवकुमार ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "अब यह उद्योग महिलाओं के आगे बढ़ने के अवसरों को सीमित कर महिला कर्मियों के अधिकारों का दमन नहीं कर सकता है। अब उन्हें आधिकारिक कार्यबल का हिस्सा बनाना ही होगा और उन्हें उनका हक देना होगा।"
2016 में राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित संशोधन के कार्यान्वयन पर अभी तमिलनाडु सरकार से अंतिम सहमति मिलनी है।
राज्य श्रम विभाग के पूर्व प्रमुख पी अमुधा ने कहा, "2008 में जब हमने यह विधेयक स्वीकृति के लिए राष्ट्रपति को भेजा था तब से अब तक इस क्षेत्र में काफी बदलाव आया है।"
"विभाग इस समझौते पर सभी पक्षों की सहमति सुनिश्चित करने के लिये कर्मचारियों और प्रबंधन के साथ चर्चा के अंतिम चरण में है ताकि इसके कार्यान्वयन में कोई अड़चन न हो।"
(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- बेलिंडा गोल्डस्मिथ; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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