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शोषण की आशंका के बावजूद विश्व बैंक द्वारा भारत के चाय पत्ती चुनने वालों के साथ होने वाले व्य वहार का बचाव

by नीता भल्ला | @nitabhalla | Thomson Reuters Foundation
Friday, 1 September 2017 13:22 GMT

-    नीता भल्ला

नई दिल्ली, 1 सितंबर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - विश्व बैंक समूह ने बहुराष्ट्रीय कंपनी टाटा ग्लोबल बेवरेजेज के साथ उसके द्वारा वित्‍त पोषित एक भारतीय परियोजना में चाय पत्‍ती चुनने वालों के साथ होने वाले व्‍यवहार का बचाव किया है। बैंक ने इस आलोचना को खारिज किया है कि हजारों श्रमिक दयनीय हालात में रह रहे थे।

चार धर्मार्थ संस्‍थाओं ने इस सप्‍ताह कहा कि विश्व बैंक समूह के अपने निगरानी रखने वालों (वाचडॉग) द्वारा कम वेतन और खस्‍ताहाल आवासों के बारे में चिंता जताने के बावजूद पूर्वोत्तर राज्य असम में देश की दूसरी सबसे बड़े चाय उत्पादक कंपनी में श्रमिकों की सुरक्षा की दिशा में कम प्रगति हुई है।

विश्व बैंक समूह के अंतर्रा‍ष्‍ट्रीय वित्‍त निगम (आईएफसी) ने श्रमिकों की रोजगार सुरक्षा और उनका स्‍तर बढ़ाने के लिये 8.7 करोड़ डॉलर लागत की परियोजना में 78 लाख डॉलर का निवेश किया है, लेकिन ऐसा करने में विफल रहने के लिए उनकी आलोचना की गई थी।

हालांकि आईएफसी के प्रवक्ता फ्रेडरिक जोन्स का कहना है कि श्रमिकों के जीवन स्तर में सुधार के लिए अधिक धन आवंटित किया गया है और कर्मचारियों की शिकायतों के समाधान तथा कंपनी के फैसलों में श्रमिकों के पक्ष को बढ़ावा देने के लिए कर्मचारी परिषद गठित की गयी हैं।

फ्रेडरिक जोन्स ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "भारत के चाय उद्योग में काफी  समय से कई चुनौतियां हैं। असम और अन्य चाय बागानों में अत्‍यधिक गरीबी है।"

उन्होंने अपने ई-मेल बयान में कहा, "कई चुनौतियों के बावजूद टाटा और आईएफसी इस क्षेत्र में अच्छा कार्य करने पर बल देते हैं।"

दुनिया के सबसे अधिक चाय उत्‍पादक क्षेत्र- असम के चाय उद्योग में  लम्‍बे समय से मजदूरों से गुलामी करवाने के आरोप और मजदूर संघों की बेहतर मजदूरी की मांग जैसी समस्‍याएं हैं। हालांकि चाय बागानों के मालिक इन समस्‍याओं को मानने से इनकार करते हैं। श्रमिक विवादों सहित कई कारणों से चाय बागान बंद हो रहे हैं।  

आईएफसी और टाटा ग्लोबल बेवरेजेज (टीजीबी) के संयुक्त उद्यम- अमलगमेटेड प्लांटेशन्‍स प्राइवेट लिमिटेड (एपीपीएल) में लगभग 30,000 चाय कामगार काम करते हैं।

2009 में एपीपीएल की स्थापना टीजीबी के स्वामित्व वाले चाय बागानों के अधिग्रहण और प्रबंधन के लिए की गई थी। टीजीबी दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी चाय कंपनी टेटली का मालिक है।

"परिस्थितियों की जांच"

एपीपीएल मे टीजीबी की भागीदारी आधे से थोड़ी कम है, आईएफसी की भागीदारी 20 प्रतिशत है और शेष भाग पर श्रमिकों और छोटी कंपनियों का मालिकाना हक है।

धर्मार्थ संस्‍थाओं और मजदूर संघों द्वारा चाय पत्‍ती चुनने वालों के शोषण के बारे में शिकायतों के कारण आईएफसी की वाचडॉग ने 2014 में इसकी जांच की।

पिछले साल नवंबर में वाचडॉग के निष्कर्षों में पाया गया कि एपीपीएल श्रमिकों की कम मजदूरी, खराब आवास और स्वच्छता तथा पर्याप्त सुरक्षा के बगैर खतरनाक कीटनाशकों के जोखिम की शिकायतों की पहचान करने और उनका समाधान करने में विफल रही है।

जांच में यह भी पाया गया कि आईएफसी के निवेश समर्थित कर्मचारी शेयर-खरीद कार्यक्रम में एपीपीएल ने स्टॉक खरीदने के जोखिमों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया, जिसके परिणामस्वरूप मजदूरों पर कर्ज आ गया।

चार सीविल सोसायटी समूह - पाझरा, पैड, नजदीक और अकाउंटेबिलिटी काउंसेल की  इस सप्‍ताह की रिपोर्ट के अनुसार श्रमिकों के हालात में सुधार के वादे के बावजूद उनकी स्थिति में बहुत कम बदलाव आया है।  

असम की धर्मार्थ संस्था- पाझरा के निदेशक स्टीफन एक्‍का ने कहा, "बगैर शौचालय के जर्जर आवास, गंदगी और अशुद्ध पेय जल के कारण चाय बागान के मजदूरों के हालात अभी भी असह्य और असुरक्षित हैं।"
उन्‍होंने कहा कि आईएफसी और एपीपीएल सुरक्षा प्रशिक्षण प्रदान करने या कीटनाशकों से बचाव के लिये बुनियादी सुरक्षा उपकरण उपलब्‍ध कराने में भी असफल रहे हैं।

एपीपीएल ने रिपोर्ट के निष्कर्षों को गलत बताते हुये इसे खारिज कर दिया है।

कंपनी के एक बयान में कहा गया है कि श्रमिकों की मजदूरी इस क्षेत्र के वेतन कानूनों के अनुरूप है और उनकी सुरक्षा तथा चिकित्सा देखभाल के उपाय किये गये हैं।

टीजीबी का कहना है कि भारत के चाय उद्योग की समस्याओं के बावजूद एपीपीएल अपने कर्मचारियों का जीवन बेहतर बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।

टीजीबी के एक ई-मेल बयान में कहा गया है कि "एपीपीएल भी भारत के शेष चाय उद्योग के समान ही वित्तीय चुनौतियों का सामना कर रहा है।"

"हालांकि इससे चाय बागान के पारिस्थितिकी तंत्र में सकारात्मक बदलाव लाने के उसके प्रयासों में कोई कमी नहीं आयी है, जिसमें एपीपीएल ने पूंजीगत निवेश के साथ ही परिचालन व्ययों के रूप में काफी निवेश किया है।"

(रिपोर्टिंग- नीता भल्‍ला, संपादन- बेलिंडा गोल्‍डस्मिथ; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

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