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भारतीय अस्पतालों में लेजर, टैग और कैमरे से शिशु चोरों पर नजर

by Anuradha Nagaraj | @anuranagaraj | Thomson Reuters Foundation
Thursday, 7 September 2017 17:03 GMT

  • अनुराधा नागराज

चेन्नई, 7 सितंबर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - देश भर में शिशु तस्‍करी संगठित अपराध बनने की आशंका के कारण अस्पतालों में नवजात शिशुओं, माताओं और चिकित्सकों को टैग करने के साथ ही अतिरिक्त सुरक्षा कैमरे लगाये जा रहे हैं और कर्मचारियों को शिशु चुराने वालों की पहचान करना सिखाया जा रहा है। 

अधिकारियों ने बताया कि यह तमिलनाडु के सरकारी अस्पतालों में शुरू किये गये अभियान का हिस्‍सा है ताकि नर्स, डॉक्टर और आगंतुक यह जान सकें कि प्रसूति वार्डों से शिशुओं की चोरी कर उन्‍हें गोद देने के लिए अवैध रूप से बेचा जा रहा है।

तमिलनाडु में मदुरै का राजाजी सरकारी अस्पताल पहला है, जहां यह कार्य शुरू किया गया है। यहां निकासी द्वारों पर लेजर बिम लगाये गये हैं, जो किसी बगैर टैग वाले वयस्‍क द्वारा शिशुओं को बाहर ले जाते समय चेतावनी देने लगता है।

अस्पताल में लेजर टैगिंग प्रभारी डॉक्टर एन.के. महालक्ष्मी ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया,  "हम सिर्फ शिशुओं की चोरी रोकना चाहते हैं।"

"यह पूरी तरह से कारगर नहीं है लेकिन शिशु चोरों के लिये एक बाधा अवश्‍य है। अस्पताल के कर्मचारियों को भी अधिक सतर्क रहने को कहा गया है।"

कार्यकर्ताओं ने चिंता जताई है कि तस्‍कर अक्सर अधिकारियों के साथ सांठ-गांठ कर प्रसूति वार्ड से शिशुओं की चोरी करते हैं और उन्हें गैर कानूनी तरीके से गोद देने वालों को बेचते हैं।

पिछले साल मुंबई पुलिस ने अकेली माताओं को उनके शिशुओं को बेचने के लिए बरगलाने वाले एक गिरोह को गिरफ्तार किया था, जबकि पश्चिम बंगाल में पुलिस जांच में पाया गया था कि क्लिनिकों से नवजात शिशुओं की चोरी की गई थी और कर्मचारियों ने उनकी माताओं से कहा था कि उनका शिशु मृत पैदा हुआ था। 

तिरुनेलवेली जिले में बाल संरक्षण अधिकारी देव अनंत ने कहा कि राज्य सरकार ऐसे कई मामलों की जांच कर रही है, जहां अस्पताल के कर्मचारियों ने माताओं को उनके शिशुओं को लगभग दस हजार रुपये में बेचने के लिए बरगलाया था।

तिरुनेलवेली जिला प्रशासन प्रत्‍येक अस्पताल में पोस्टर लगायेगा, जिसमें गर्भवती महिलाओं, परिवारों और कर्मचारियों को अस्‍पताल के भीड़-भाड़ वाले गलियारों में तस्करी के खतरों की चेतावनी दी जाएगी।

उन्होंने कहा, "काफी लोग इसे तस्करी का मुद्दा नहीं मानते हैं।"

"हम अस्पताल के कर्मचारियों को संभावित मामलों की पहचान करने के लिए प्रशिक्षित करेंगे। इस दौरान यह भी बताया जायेगा कि नवजात शिशु को उसके जन्म के समय ही छोड़ दिये जाने की स्थिति में क्या करना चाहिये। वर्तमान में यह स्पष्ट नहीं है कि क्‍या करें और क्‍या ना करें।"

तमिलनाडु में अस्पतालों से चोरी हुए बच्चों की संख्या के बारे में कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्‍ध नहीं है, लेकिन आंकड़े दर्शाते हैं कि 2016  में सरकारी अस्‍पतालों में लगभग एक लाख 80 हजार शिशु पैदा हुए थे।

आपराधिक आंकड़ों के अनुसार 2015 में देश में मानव तस्करी के 10 में से चार से अधिक मामले बच्‍चों की खरीद-फरोख्‍त और उन्‍हें आधुनिक समय के गुलामों के तौर पर प्रताडि़त किये जाने के थे।

बच्चों के लिये कार्य करने वाली धर्मार्थ संस्‍था- करूणालय के पॉल सुंदर सिंह ने कहा, "सरकारी अस्पताल असुरक्षित स्‍थान हैं, जहां नवजात शिशुओं तक पहुंच की निगरानी का कोई प्रभावी उपाय नहीं हैं।"

(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- केटी मिगिरो; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org

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