×

Our award-winning reporting has moved

Context provides news and analysis on three of the world’s most critical issues:

climate change, the impact of technology on society, and inclusive economies.

इनसाइट-पाकिस्तान के रसीले खट्टे फलों के बागों के शहर में कर्ज के कारण गुर्दें बेचने की मजबूरी

by Zeeshan Haider | Thomson Reuters Foundation
Monday, 11 September 2017 10:45 GMT

In this file photo, boys, standing on top of an oven, throw bricks to be stacked at a brick yard in Larkana, located in Pakistan's Sindh Province February 2, 2010. REUTERS/Nadeem Soomro

Image Caption and Rights Information

  • जीशान हैदर

पाकिस्तान, कोट मोमिन, 11  सितंबर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में रहने वाली गृहिणी इस्मत बीबी के लिए अपना गुर्दा बेचने का फैसला लेना आसान था।

चार बच्चों के भरण पोषण, तपेदिक के मरीज पति की देखभाल की जिम्‍मेदारी और एक लाख पाकिस्तानी रुपये का कर्ज चुकाने के लिए उसने तुरंत ही अपना गुर्दा बेचने की पेशकश की।

सौदा काफी सरल लग रहा था। वह शहर के नजदीक एक अस्पताल में जायेगी, उसका अंग निकाला जाएगा और उसे एक लाख 10 हजार पाकिस्तानी रुपये मिलेंगे। कोट मोमिन कस्‍बे में उसके पड़ोस में रहने वाले दलाल ने बीबी को बताया था कि किसी को भी दो गुर्दे की जरूरत नहीं होती है।

बारह साल के बाद भी उसका न केवल कर्ज बढ़ा बल्कि वह अपने पति के बिगड़ते स्वास्थ्य, मानसिक रूप से विकलांग एक युवा बेटी की जिम्‍मेदारी और अपना गुर्दा निकलवाने के कारण अक्सर अत्‍यधिक पेट दर्द की समस्‍या से जूझ रही है।

इससे भी बदतर यह है कि 15 साल का उसका बेटा भी अपना गुर्दा बेचना चाहता है।

उत्तरी पाकिस्तान के पंजाब में कोट मोमिन के बाहरी इलाके में एक झुग्‍गी बस्‍ती में अपने एक कमरे के कच्‍चे मकान में बैठी 40 साल की बीबी ने कहा, "मैं अपने बेटे से ऐसा नहीं करने की मिन्‍नतें कर रही हूं, लेकिन वह जिद पर अड़ा हुआ है।"

"मैंने गुर्दा बेचकर गलती की थी, लेकिन मेरे परिवार का पेट भरने के लिये मेरे पास दूसरा कोई विकल्प नहीं था।"

पुलिस, कार्यकर्ताओं और पीड़ितों का कहना है कि पंजाब पाकिस्तान का सबसे समृद्ध क्षेत्र है, लेकिन यहां खेती से लेकर कपड़ा जैसे संपन्न क्षेत्रों के साथ ही मानव अंगों का अवैध व्यापार भी तेजी से फल- फूल रहा है।

कई वर्षों से यह काला बाजारी फल-फूल रही है क्‍योंकि तस्‍कर गरीबी और कर्ज के दुष्‍चक्र में जकड़े गरीबों को अपना शिकार बनाते हैं। इनमें से कई मजदूर इस क्षेत्र को समृद्ध बनाने में सहायक हैं, लेकिन बदले में उन्‍हें काफी कम मेहनताना दिया जाता है।

विश्व स्तर पर अंग दाताओं की कमी के कारण भी यहां आपराधिक नेटवर्क के जरिये "प्रत्यारोपण पर्यटन" बढ़ा है। अक्‍सर डॉक्टरों और व्यवसायियों जैसे प्रभावशाली लोग भी अपने विदेशी एजेंटों के माध्‍यम से अंगों के जरूरतमंद लोगों को यहां बुलाते हैं।

पाकिस्तान में गुर्दे बेचने वालों की संख्या के बारे में कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्‍ध नहीं है, लेकिन कुछ अधिकारियों का अनुमान है कि प्रतिवर्ष कम से कम 1,000  पीड़ित हो सकते हैं।

राष्ट्रीय मानवाधिकार पर नेशनल असेंबली स्थायी समिति के अध्यक्ष बाबर नवाज़ खान का कहना है कि पाकिस्तान अंग तस्करी का प्रमुख स्थान है, लेकिन अब अधिकारी इसके खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं।

खान ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "पिछले साल तक पाकिस्तान इस कारोबार का मुख्य केंद्र था।"

"कुछ अनुमानों के मुताबिक कुछ साल पहले तक दुनिया में कुल अंगों की तस्करी में से 85 प्रतिशत मामले पाकिस्तान में दर्ज किये गये थे, लेकिन अब हम शीर्ष 10 स्‍थानों की सूची में नहीं हैं।"

"संतरें, नीबू और गुर्दें"

पंजाब में 11 करोड़ से ज्यादा लोग रहते हैं, जो पाकिस्तान की करीबन आधी आबादी है। सभी प्रकार के कृषि उत्पादों का लगभग 60 प्रतिशत उत्पादन करने वाला यह प्रदेश न केवल देश का अनाज उत्‍पादक है बल्कि सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र भी है।

उपजाऊ क्षेत्र होने के कारण यहां धान के हरे भरे खेतों, गेहूं की सुनहरी बालियों और सफेद कपास की पैदावार के साथ ही वस्त्रों और सीमेंट से लेकर क्रिकेट के बैट और सर्जिकल उपकरणों का उत्‍पादन करने वाले कारखाने भी हैं।

2016  में पाकिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद में पंजाब की अर्थव्यवस्था का 50 प्रतिशत से अधिक का योगदान था और यहां गरीबी की दर लगभग 20 प्रतिशत है, जो पाकिस्तान के सभी प्रांतों की तुलना में सबसे कम है।

कार्यकर्ताओं का कहना है कि लेकिन यह समृद्धि उन हजारों श्रमिकों की मेहनत का परिणाम है, जिनका सामंती जमींदार, निर्माण ठेकेदार, ईंट भट्ठें और कारखाना मालिक दशकों से शोषण कर रहे हैं। वे उन्हें प्रतिदिन लगभग 500 पाकिस्तानी रुपये देते हैं।

कई लोग अपने मालिकों से 60 प्रतिशत से भी अधिक ब्याज दर पर उधार लेते हैं और वे काफी समय के लिये कर्ज के दुष्‍चक्र में जकड़ जाते हैं।

रसीले संतरे, नारंगी, नीबू और चकोतरे से भरे बागों के कारण पाकिस्तान के "खट्टे क्षेत्र" के नाम से प्रसिद्ध सरगोधा जिले के कोट मोमिन कस्‍बे के सैकड़ों लोगों ने अपने गुर्दे बेच दिये हैं।

सामाजिक कार्यकर्ता और अंग तस्करी पीडि़त ज़फर इक़बाल ने कहा, "मेरे पास लगभग 250 लोगों के आवेदन हैं, जिन्होंने अपने गुर्दे बेच दिए हैं और अब वे सरकारी सहायता मांग रहे हैं।"

"वे चाहते हैं कि उन्हें या उनके बच्चों को नौकरी दी जाये, क्योंकि वे अब निर्माण कार्य करने में असमर्थ हैं।"

45 वर्षीय इक़बाल ने 2003 में अपना गुर्दा बेचा था। उसके भाई की मृत्यु हो गई थी और उसे अपने भाई की पत्नी और बच्चों की देखभाल करने के साथ ही दो बहनों की शादी के लिए धन की जरूरत थी।

कोट मोमिन के मुख्य बाजार में अपने स्टॉल में ग्राहकों को चाय देते हुये उसने कहा, "हम छोटे लोग हैं। हम इन शक्तिशाली लोगों का मुकाबला नहीं कर सकते हैं।"

धूल भरा यह कस्‍बा खट्टे फलों के पेड़ों से घिरा हुआ है और यहां अत्याधुनिक फल प्रसंस्करण कारखाने हैं, जहां से यूरोप और अमेरिका को किनू के नाम से विश्व-प्रसिद्ध नारंगी निर्यात की जाती है।

कोट मोमिन के बाहरी इलाके के एक विशाल बाग में मजदूर मोहम्मद ज़हीर ने कहा कि वह रोजाना 500 पाकिस्तानी रुपये कमाता है। लेकिन अपने मालिक से लिये लगभग एक लाख पाकिस्तानी रुपये के कर्ज की राशि कटवाने के बाद उसके हाथ में आधे से भी कम मजदूरी आती है।

43 साल के ज़हीर ने कहा, "मैंने पांच साल पहले अपनी छोटी बहन की शादी के लिए अपना गुर्दा बेचा था। उसकी शादी हो गई, लेकिन मेरी परीक्षा खत्‍म नहीं हुई और मुझे अपने छह बच्चों का पेट पालने के लिये अपने मालिक से पैसे लेने पड़े।"

"प्रत्‍यारोपण पर्यटन"

पाकिस्तान सरकार ने 2010 में मानव अंगों के करोबार को गैरकानूनी घोषित किया था। इसके तहत दोषि चिकित्सकों, दलालों, प्राप्तकर्ताओं और दाताओं के लिये 10 साल तक की जेल की सजा और दस लाख पाकिस्तानी रुपए के जुर्माने का प्रावधान है।

कानूनन दाता अपने रिश्तेदार के लिये या परोपकारी उद्देश्यों से अपने अंग दान कर सकते हैं पर विदेशियों को मानव अंग बेचना प्रतिबंधित है।

लेकिन अंगों की बढ़ती तस्करी के मामलों को रोकने के प्रयासों में कम मजदूरी और नियम के कार्यान्वयन में कमी सबसे बड़ी बाधा है।

ब्रिटेन, सऊदी अरब और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों से प्राप्तकर्ता पाकिस्तान के लाहौर या कराची जैसे बड़े शहरों में आते हैं जहां आवासीय क्षेत्रों के निजी क्लीनिकों या बेसमेंट में अस्थायी रूप से बनाये गये ऑपरेशन थिएटरों में उनके अंग प्रत्‍यारोपित किये जाते हैं।

पुलिस अधिकारियों का कहना है कि विदेशियों को एक गुर्दा 40 लाख से एक करोड़ पाकिस्तानी रुपये में बेचा जाता है, लेकिन दाता को इस राशि का 10 प्रतिशत से भी कम पैसा मिलता है।

जुलाई में संघीय जांच एजेंसी ने लाहौर के नजदीक एक संभ्रात इलाके में एक निजी क्लिनिक पर छापा मारा और 14 लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें से ओमान के दो नागरिक भी थे और उन पर प्राप्तकर्ता होने का संदेह था।

पुलिस यह स्वीकार करती है कि तस्करी नेटवर्क को तोड़ना मुश्किल है, क्‍योंकि चिकित्सकों, नर्सों और पराचिकित्‍सकों से लेकर अस्पताल मालिक और व्यवसायी तक कई लोग इसमें शामिल हैं। इनमें से कई प्रभावशाली होते हैं और कईयों के राजनीतिक तार भी जुड़े होते हैं।

लेकिन प्राधिकारियों का कहना है कि उनकी प्रत्यारोपण नियामक प्राधिकरण प्रभारी को अधिक अधिकार देकर, अस्पतालों में निगरानी रखने  और कड़े दंड निर्धारित कर नियम को सुदृढ़ करने की योजना है।

पाकिस्तान की स्वास्थ्य मंत्री साइरा अफज़ल तरार ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "हम इस अवैध व्यापार को बंद करने के लिये प्रतिबद्ध हैं। इस अमानवीय कारोबार को रोकने के लिए सख्‍त कानून बनाने के लिये हम सभी हितधारकों से चर्चा कर रहे हैं।"

हालांकि उन पीड़ितों के लिए ये शब्‍द कोई मायने नहीं रखते हैं, जो अक्सर कर्ज के बोझ तले दबे हैं और उनके अंगों के निकल जाने के बाद से स्वास्थ्य देखभाल की कमी के कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं झेल रहे हैं।

अपनी कमीज ऊपर कर पेट की बाईं ओर भूरे रंग के टांके के  निशान दिखाते हुये 30 साल के ईंट भट्ठा मजदूर सरफराज़ अहमद ने कहा, "मेरे सामने केवल दो विकल्‍प हैं या तो मैं अपने बच्चों का पेट भरूं या अपने लिए दवाई खरीदूं। मैंने अपने बच्चों के पेट पालने का विकल्प चुना है।"

(1 पाकिस्तानी रुपए = 0.60 भारतीय रुपए)

(रिपोर्टिंग-जीशान हैदर, लेखन- नीता भल्‍ला, संपादन-रोस रसल; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

Sonia, the daughter of Ismat Bibi, a 40-year house maid, who has sold her kidney to pay off her debt, comes out of her one-room house in Kot Momin, a dusty town some 220 km south of the Pakistani capital Islamabad on July 9, 2017. Thomson Reuters Foundation / Zeeshan Haider

"TRANSPLANT TOURISM"

Pakistan outlawed the commercial trade in human organs in 2010, imposing a jail term of up to 10 years and a maximum fine of one million rupees ($9,500) for doctors, middlemen, recipients and donors.

The law permits donors to give their organs to recipients who are relatives and for altruistic purposes, but bans the sale of human organs to foreigners.

But low wages and poor implementation of the law has hampered efforts to curb rising cases of organ trafficking.

Recipients from countries such as Britain, Saudi Arabia and South Africa travel to the Pakistani cities of Lahore or Karachi where they are operated on in private clinics in residential areas or houses with makeshift operating theatres in basements.

A kidney is sold to foreigners for between four to 10 million rupees ($38,000 to $95,000), but the donor gets less than 10 percent of that, say police officials.

In July, the Federal Investigation Agency raided a private clinic in an upscale neighbourhood of Lahore, and arrested 14 people, including two Omani nationals suspected to be potential recipients.

Police admit the trafficking networks are difficult to break: They involve several players - from doctors, nurses and paramedics to hospital owners and businessmen - and many are influential and with political connections.

But authorities say they plan to strengthen the law by giving more power to the regulatory authority in charge of transplantations, upping surveillance at hospitals, and imposing stricter punishments.

"We are determined to clamp down this illegal trade," Pakistan's Health Minister Saira Afzal Tarar told the Thomson Reuters Foundation. "We are consulting all stakeholders to tighten laws to curb this inhumane business."

These words however mean little to the victims who are left often still in debt and with health problems due to a lack of healthcare after their organs were removed.

"I have the option of either feeding my children or buying medicine for myself," said brick kiln worker Sarfraz Ahmed, 30, pulling up his shirt to show a thin brown scar on the left side of his abdomen. "I have opted to feed my kids."

(Reporting by Zeeshan Haider, Writing by Nita Bhalla; Editing by Ros Russell. Please credit the Thomson Reuters Foundation, the charitable arm of Thomson Reuters, that covers humanitarian news, women's rights, trafficking, property rights, climate change and resilience. Visit http://news.trust.org)

Our Standards: The Thomson Reuters Trust Principles.

-->