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भारतीय रेलवे का पारगमन स्थतलों पर बाल तस्करों को रोकने का अभियान

by अनुराधा नागराज | @anuranagaraj | Thomson Reuters Foundation
Tuesday, 26 September 2017 14:36 GMT

Passengers make use of a signal light pole to climb atop an overcrowded train at a railway station in Ajmer, India, October 23, 2016. REUTERS/Himanshu Sharma

Image Caption and Rights Information

-    अनुराधा नागराज

    चेन्नई, 26 सितंबर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - दक्षिण भारत में सेलम रेलवे स्टेशन पर यात्रियों, कुलियों और विक्रेताओं की गहमा-गहमी के बीच एक रंगीन बूथ अलग से ही नजर आता है।

    यह बच्चों की मदद के लिये हेल्‍प डेस्‍क है, जो धर्मार्थ संस्‍था- रेलवे चिल्‍ड्रन द्वारा देश में प्रयोग के तौर पर स्थापित किए गए दो बूथों में से एक है। यहां कर्मचारी ऐसे हजारों असुरक्षित बच्चों की यात्रा की जांच करते हैं, जो तस्‍करी के शिकार, लापता या भाग गए हैं।
    भड़कीले रंग के इस बूथ से अधिकारी रेल नेटवर्क पर असुरक्षित बच्चों की तलाश के लिये रोजाना दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में सेलम जंक्शन से गुजरने वाली लगभग 200 रेलगाडि़यों की जांच करते हैं, क्‍योंकि रेलगाड़ी तस्‍करों के लिये यात्रा का पसंदीदा परिवहन साधन है।

     कार्यकर्ताओं का कहना है कि देश के रेलवे स्टेशन उन तस्करों के लिए पारगमन स्‍थल (ट्रांजिट प्वाइंट) बन गए हैं, जो बच्चों को शहर में अच्छी नौकरी दिलाने का झांसा देते हैं, लेकिन उन्‍हें घरेलू नौकरों के रूप में गुलामी करने, छोटे निर्माण कारखानों और खेतों में काम करने के लिये बेच दिया जाता है या यौन दासता के लिये वेश्‍यालयों में ढ़केल दिया जाता है।

     रेलवे चिल्‍ड्रन के वलवन वसंत सिद्धार्थ ने कहा, "सेलम जंक्शन से 45 मिनट की यात्रा करने पर आप बाल श्रम के दम पर उन्‍नति कर रहे औद्योगिक केंद्रों में या राज्य की सीमा से बाहर निकलते ही ऐसे क्षेत्र में पहुंच जाते हैं, जहां की स्थानीय भाषा और संस्कृति एकदम अलग होती है।"

      "अगर तस्करी किये गये और असुरक्षित बच्चों की यात्रा स्टेशनों पर नहीं रोकी जाती है, तो बच्चे अपने गंतव्य पर पहुंचने के बाद लापता हो जाते हैं।"

       भारतीय रेलवे के सहयोग से स्थापित 24 घंटे उपलब्‍ध दो हेल्‍प डेस्क असुरक्षित बच्चों की पहचान कर उन्हें आश्रय देती है और उन्हें उनके परिजनों से मिलवाने का कार्य करती है।

    सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2016 में देश में नौ हजार से अधिक बच्चों की तस्‍करी की गई थी, जो 2015 की तुलना में 27 प्रतिशत अधिक है।

      कार्यकर्ताओं का कहना है कि देशभर में बड़ी संख्या में अकेले और तस्करी किये गये बच्चे रेल से यात्रा करते हैं और कई प्लेटफार्मों का इस्‍तेमाल आसरे के रूप में करते हैं या यहां छोटा- मोटा सामान बेचते हैं अथवा कूड़ा बीनने का काम करते हैं।

        सेलम स्टेशन के वरिष्‍ठ रेलवे अधिकारी ए एस विजुविन ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "हमारे अधिकारियों को हमेशा बगैर टिकट यात्रा करते या रेलगाड़ी और प्‍लेटफार्म पर छोड़ दिए गये बच्‍चे मिलते हैं।"

      सोमवार को जारी एक बयान के मुताबिक रेलवे सुरक्षा बल ने 2014 से अगस्‍त 2017 तक 28,057 बच्चों को बचाया, जिनमें स्टेशनों से तस्‍करी किये गये 1,502 बच्चे शामिल हैं।

     बयान में कहा गया है कि औसतन कम से कम 25 बच्चों को प्रतिदिन रेलगाड़ियों और रेलवे परिसरों से बचाया जाता है।

  "बचाये गये"

    मार्च में हेल्‍प डेस्क शुरू होने से अब तक सेलम स्टेशन पर 431 बच्चों को बचाया गया है, जिनमें से एक चौथाई उत्तर भारत के बच्‍चे थे।

    रेल्‍वे चिल्‍ड्रन से सिद्धार्थ ने कहा, "बचाये गये बच्चों में से कई नमक्‍कल के मुर्गी पालन फार्म, ईरोड की कताई मिलों या राजमार्गों पर ट्रक मरम्‍मत करने की दुकानों में काम करने के लिये जा रहे थे।"

   "बूथ स्‍थापित करने के समय से हमने पाया कि कई बच्‍चे आधी रात के बाद आने वाली रेलगाडि़यों से यात्रा करते हैं, क्‍योंकि उस वक्‍त कड़ी निगरानी नहीं होती है।"

   कार्यकर्ताओं का अनुमान है कि हर पांच मिनट पर एक असुरक्षित बच्चा एक रेलवे स्टेशन में आता है। विशेष रूप से लड़कियां अधिक असुरक्षित होती हैं और अक्सर स्‍टेशन पर पहुंचने के कुछ समय के भीतर ही तस्कर उन्‍हें वहां से ले जाते हैं।

     सेलम बूथ और इसी के समान बिहार के दरभंगा स्टेशन पर बना बूथ स्टेशन के पास स्थित आश्रय स्‍थलों से जुड़े हुये हैं।

   सिद्धार्थ ने कहा, "कुछ बच्‍चे यहां नहाने या साफ जगह पर बैठने के लिये आते हैं। हमारे पास परामर्शदाता हैं और हमारी मंशा इन बच्चों की मदद करना है। हमने कई बच्‍चों को उनके परिजनों के पास वापस भेजा है।"

   भारत सरकार ने पिछले दिनों देश के विशाल रेलवे नेटवर्क पर कई अभियान चलाए हैं, जबकि समय-समय पर होने वाले पुलिस के अभियान "ऑपरेशन स्‍माइल" के तहत लापता बच्‍चों की तलाश में आश्रय स्‍थलों,  रेलगाड़ी और बस स्टेशनों में तथा सड़कों पर रहने वाले बच्चों की जांच की जाती है।

  दुनिया के चौथे सबसे बड़े रेलवे नेटवर्क, भारतीय रेलवे, ने 82 स्टेशनों को कवर करने के लिए अब इन पहलों का विस्‍तार किया है।

    टिकट जांचकर्ता, खानपान कर्मचारी और रेल यात्रा के दौरान उसमें तैनात पुलिसकर्मियों को तस्करी के संकेतों को पहचानने और बच्चों के बड़े समूहों, उनके साथ यात्रा कर रहे वयस्कों के हाव-भाव और संदिग्ध दस्तावेज के बारे में सतर्क रहना सिखाया गया है।   

    विजुविन ने कहा, "हम इस प्रक्रिया पर बार-बार विचार करते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि तस्कर हमसे दो कदम आगे हैं।"

   "जब बड़े स्टेशन कवर कर लिये जाते हैं, तो वे दो स्‍टेशन पहले ही उतर जाते हैं। उम्मीद है कि धीरे-धीरे हम प्रत्‍येक स्टेशन को इन सुविधाओं से जोड़ लेंगे।" 

(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- रोस रसल; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

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