- रोली श्रीवास्तव
जगतियाल, 30 अक्टूबर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - दक्षिण भारतीय राज्य तेलंगाना के कल्लेदा गांव में गर्मी की सुस्त दोपहर को, लक्ष्मी मालया अपने घर के बरामदे में बैठी थी, जहां अगले दिन उसके पति चित्तम का शव लाया जाना था। वह दुबई में दिहाड़ी मजदूरी करता था।
45 वर्षीय चित्तम गांव का दूसरा प्रवासी मजदूर था, जिसका देहांत सितंबर में दुबई में हुआ था। वर्ष 2014 से चित्तम सहित लगभग 450 भारतीय प्रवासी श्रमिकों के शव उनके घर भेजे गये हैं।
कल्लेदा के पूर्व मुखिया अंकती गंगाधर ने कहा, "पिछले साल भी दुबई में गांव के तीन मजदूरों की मृत्यु हुई थी। हमें बताया गया कि चित्तम का निधन दौरा पड़ने से हुआ, लेकिन वह पिछले महीने जब घर आया तब स्वस्थ था।"
ग्रामीणों का कहना है कि पिछले महीने दुबई में 24 साल के एक और स्थानीय पुरूष की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हो गई थी।
तेलंगाना सरकार के अधिकारियों का कहना है कि तनाव, खराब स्वास्थ्य और अत्यधिक तापमान में काम करना वहां लोगों की मृत्यु के आम कारण हैं। उन्होंने कहा कि राज्य से खाड़ी जाने वाले प्रवासियों की लगातार मृत्यु हो रही है।
गंगाधर ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "लोग एक सप्ताह तक इन मौतों पर चर्चा करते हैं, लेकिन फिर यहां रोजगार देने के लिए कोई पहल नहीं होती है, और इसलिये लोग गांव छोड़कर जाते रहते हैं।"
मुख्य रूप से पानी की कमी के कारण खेती से आजीविका कमाने में असमर्थ लोग दशकों से तेलंगाना से मुंबई जैसे महानगरों तथा खाड़ी देशों में चले जाते हैं। तेलंगाना प्रमुख रूप से एक ग्रामीण क्षेत्र है जिसकी राजधानी तकनीकी केंद्र- हैदराबाद है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार प्रतिवर्ष तेलंगाना से लगभग 10,000 और कल्लेदा से औसतन 200 लोग खाड़ी देशों में जाते हैं।
अधिकतर प्रवासियों को लगता है कि वे कुछ ही वर्षों में दुबई में अच्छा पैसा कमा लेंगे, जो उनको फंसाने के लिये चालाक एजेंटों द्वारा बुना गया भ्रमजाल है।
प्रवासन की समस्या पर कार्य करने वाले तेलंगाना के नेता सुरेश रेड्डी ने कहा, "1980 के दशक में जब लोगों ने खाड़ी देशों में जाना शुरू किया था उस समय इस क्षेत्र में वर्षों से सूखा पड़ रहा था। उनके पास पलायन के सिवा कोई चारा नहीं था।"
"वहां जाने पर उन्हें कुछ आर्थिक लाभ हुआ, लेकिन उन्होंने इसकी भारी कीमत चुकाई। उन्हें अपने परिजनों को घर पर ही छोड़कर वहां अमानवीय परिस्थितियों में काम करना पड़ा।"
चित्तम की वार्षिक बचत शायद ही कभी 12,000 रुपये से अधिक हुई हो और कुछ महीनों में हर बार उसने 4,000 से 5,000 रुपये घर भेजे थे। उसने 13 वर्ष दुबई में काम किया और इस दौरान केवल पांच बार वह अपनी पत्नी और दो बच्चों से मिलने के लिये घर आया था।
सन्न और भावना शून्य बैठी चित्तम की पत्नी लक्ष्मी को देखते हुये गंगाधर ने कहा, "उसकी योजना थोड़ा और पैसा कमाने के बाद अगले साल घर लौटने की थी।"
झूठे वादे
16 साल तक दुबई में काम करने के बाद पिछले साल तेलंगाना के जगतियाल कस्बे में लौटे रमन्ना चितला लोगों को एजेंटों से धोखा खाने से बचाने के लिये प्रतिबद्ध है।
चितला ने कहा, "मैंने वहां बहुत दुःख देखे थे। मजदूरों को कम वेतन दिया जाता और उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता था। एजेंटों ने झूठे वादे कर उन्हें धोखा दिया था, इसलिए मैंने सोचा कि मैं वापस आकर बदलाव लाऊंगा।"
वर्षों से भारत सरकार और गैर-सरकारी समूहों को प्रवासी श्रमिकों की तरफ से मजदूरी न देने से लेकर प्रताड़ना और शोषण की लगातार शिकायतें मिली हैं।
श्रमिक अक्सर इस उम्मीद में एजेंटों को पैसा देने के लिये 50,000 से एक लाख रुपये तक का ऋण लेते हैं कि वे क्लीनर और निर्माण स्थलों पर मजदूरों के रूप में काम कर ऋण चुकाने के लिए पर्याप्त धन कमा लेंगे, लेकिन उनका वेतन किये गये वादे के मुताबिक नहीं होता है।
चितला ने कहा, "पैसा बचाने के लिए अस्वस्थ होने पर भी वे डॉक्टर के पास नहीं जाते हैं।" उन्होंने कहा कि खराब स्वास्थ्य के कारण होने वाली मौतों के लिये अक्सर कार्यस्थल की शोषणकारी परिस्थितियां जिम्मेदार हैं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार छह खाड़ी देशों- बहरीन, कुवैत, कतर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और ओमान में 60 लाख भारतीय प्रवासी हैं। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 2005 से 2015 तक खाड़ी देशों में 30,000 से अधिक भारतीय नागरिकों की मौत हुई है।
नई दिल्ली में संयुक्त अरब अमीरात के दूतावास ने एक ई-मेल बयान में कहा कि उनके देश ने श्रमिकों के शोषण से निपटने के लिये पिछले कुछ वर्षों में अनुबंध की पारदर्शिता बढ़ाने, विदेशी श्रमिकों के लिए मजदूरी संरक्षण प्रणाली और पांच भाषाओं में "अपने अधिकार जानिए" अभियान सहित कई सुधार किये हैं।
सरकार के अधिकृत एजेंट के रूप में चितला का काम यह सुनिश्चित करना है कि प्रवासी अपनी नौकरी के अनुबंध समझें, नियोक्ता बाद में रोजगार की शर्तों को न बदलें और आवेदक के सभी कागजी कार्य निष्पक्ष तथा पूरे हों।
लेकिन उसके पास अवैध एजेंटों जितने मजदूर नहीं आते हैं।
चितला ने कहा, "कम से कम 50 गैर-लाइसेंस प्राप्त एजेंट हैं जो सैकड़ों श्रमिकों को भेज रहे हैं। मैंने अब तक 48 मजदूर भेजे हैं।"
भारत के विदेश मंत्रालय ने भर्ती प्रक्रिया को सुचारू बनाने और ज़रूरतमंद श्रमिकों की मदद करने के प्रयास किए हैं। श्रमिकों को केवल अधिकृत एजेंटों के माध्यम से ही जाना चाहिये इस बारे में रेडियो पर रोजाना विज्ञापन गीत बजाये जाते हैं, लेकिन कई लोग अनधिकृत एजेंटों के वादों से भ्रमित हो जाते हैं।
दो साल पहले दो बच्चों के पिता 26 साल के चंद्रशेखर बोरागाला ने मुंबई जाने वाली बस में बैठकर लगभग 800 किलोमीटर (500 मील) की यात्रा कर पहली बार जगतियाल से बाहर कदम रखा था। मुंबई में समुद्र के सामने एक कार्यालय में दुबई में क्लीनर की नौकरी के लिए उसका साक्षात्कार हुआ था।
उसने कहा, "मैंने इस काम के लिए एजेंट को 70,000 रुपए दिये थे। मेरे वहां पहुंचने पर उन्होंने मुझसे वादा किये गये वेतन से काफी कम वेतन पर दो साल के अनुबंध पर हस्ताक्षर करवाये थे। मुझे तीन महीने वेतन भी नहीं दिया गया था। मुझसे घर जाने की छुट्टी के लिए 85,000 रुपये का भुगतान करने को कहा गया था।"
बोरागाला तीन महीने पहले कंगाल होकर जगतियाल लौटा था। वह अब एक वेल्डर के रूप में काम करता है और अपनी 400 रुपये की दिहाड़ी से एजेंट को देने के लिये लिया गया कर्ज चुका रहा है।
उसने कहा, "यह पर्याप्त नहीं है। दुबई में खतरा है। मैं वापस वहां नहीं जाऊंगा।"
पानी, रोजगार
कल्लेदा की सड़क के किनारे हरी-भरी कृषि भूमि और मक्का के खेतों को देखकर इसके समृद्ध गांव होने का गलत अनुमान लगाया जा सकता है। लेकिन यहां खेती की कमाई परिवारों का पेट पालने के लिये पर्याप्त नहीं है।
गरीब ग्रामीणों के मुकदमे लड़ने वाले भूमि अधिकार के वकील सुनील रेड्डी ने कहा, "वे सीमांत किसान हैं और उनके पास 5 एकड़ (2 हेक्टेयर) से भी कम भूमि है, जो उनके परिवार के लिये पर्याप्त नहीं है। बारिश पर निर्भर क्षेत्र होने के कारण यहां पानी की कमी है।"
रेड्डी ने कहा, "2014 में तेलंगाना को अलग राज्य बनाते समय दो वादे किए गए थे- अधिक रोजगार और सिंचाई के लिये अधिक पानी। लेकिन स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है।"
अब विधवा हो चुकी लक्ष्मी मालया के पास भूमि का छोटा सा टुकड़ा है, जिस पर वह मक्का, हल्दी और चावल उगाती है। दो फसलों से लगभग 60,000 रुपये की वार्षिक आय होती है, जिसमें उसके पति द्वारा घर भेजे जाने वाले धन से मदद मिलती थी।
प्रवासी अधिकारों के लिये अभियान चलाने वाले खाड़ी प्रवासियों की विधवाओं के लिए मुआवजे की मांग कर रहे हैं।
कार्यकर्ता भीम रेड्डी ने कहा, "मुआवजा उनका अधिकार है, क्योंकि मजदूरों द्वारा अपने घर भेजे जाने वाले धन से राज्य की अर्थव्यवस्था बढ़ी है।"
तेलंगाना सरकार के प्रमुख सचिव जयेश रंजन ने कहा कि राज्य की अनिवासी भारतीय नीति के तहत विधवाओं के लिए वित्तीय मुआवजे का प्रस्ताव दिया गया है।
अभी तो सिर्फ चित्तम जैसे श्रमिकों के शव हैदराबाद हवाई अड्डे से गांवों में उनके घर तक निशुल्क भेजे जाने की व्यवस्था है।
(रिपोर्टिंग- रोली श्रीवास्तव, अतिरिक्त रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- रोस रसल; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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