- रोली श्रीवास्तव
मुंबई, 30 अक्टूबर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) – सप्ताह के अंत में खेतों पर की गई असाधारण कार्रवाई के दौरान राजस्थान के बारां से बच्चों सहित लगभग 25 मजदूरों को छुड़ाया गया, जिन्होंने सात साल तक दिन में 15-15 घंटे मेहनत की थी।
कार्यकर्ताओं का कहना है कि ये मजदूर मध्य प्रदेश की एक जनजाति के थे और उन्हें राजस्थान के खेतों में काम करने के लिए लाने से पहले 500 से लेकर 20,000 रुपये तक के ऋण दिए गए थे।
बचाव अभियान में शामिल राष्ट्रीय बंधुआ मजदूर उन्मूलन अभियान समिति के संयोजक निर्मल गोराना ने कहा, "अच्छा रोजगार दिलाने का झांसा देकर इन लोगों की तस्करी की गई थी लेकिन उन्हें खेतों में बंधुआ मजदूर के तौर पर रखा गया था। उनका मानना था कि वे अपना कर्ज चुका रहे थे।"
बचाए गये श्रमिकों ने कहा कि जब वे खेतों में काम करते थे तो उस समय उनके बच्चे मालिक के घर बगैर पैसे के काम करते थे।
गोराना ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "मालिक उन्हें मजदूरी के बजाय केवल गेहूं की पोटली देते थे। यह भी इसलिये दी जाती थी कि वे उनके खेतों में काम करने के लिए जीवित रहें।"
भारत में गुलामों की संख्या पर राष्ट्रीय आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन श्रम और रोजगार मंत्रालय ने हाल ही में 2030 तक एक करोड़ 80 लाख बंधुआ मजदूरों की पहचान, बचाव और सहायता की योजना की घोषणा की है।
देश के ग्रामीणों को तस्कर अक्सर अच्छा रोजगार दिलाने और अग्रिम भुगतान का लालच देते हैं, लेकिन ऋण चुकाने के लिये उनसे जबरन खेतों या ईंट भट्ठों में परिश्रम करवाया जाता है, वेश्यालयों में गुलाम बनाया जाता है या घरों में नौकरों के तौर पर काम करवाया जाता है।
कई आभूषण, सौंदर्य प्रसाधन और परिधान बनाने की जटिल आपूर्ति श्रृंखलाओं में निचले स्तर पर काम करते हैं।
बारां के उप-प्रभागीय न्यायाधीश गोपाल लाल ने कहा कि बारां में छुड़ाए गए अधिकतर श्रमिकों को उनके घर वापस भेज दिया गया है।
उन्होंने कहा कि उनमें से 18 श्रमिकों को रिहाई प्रमाण पत्र दिए गए हैं, जिनसे बंधुआ श्रमिकों को उनके गृह राज्य में तीन लाख रुपये का मुआवजा मिल पायेगा।
लाल ने कहा, "हमने और श्रमिकों को तलाशने के लिए एक सर्वेक्षण भी शुरू किया है।"
अभियानकारों ने कहा कि भारत में सबसे अधिक बंधुआ मजदूर देश के खेतों में हैं, लेकिन अक्सर इसे नियमित रोजगार के रूप में देखा जाता है और सरकार की ओर से कोई कार्रवाई भी नहीं होती है।
ग्रामीण गरीबों के लिये कार्य करने वाली धर्मार्थ संस्था- सेंटर फॉर एक्शन रिसर्च एंड पीपल्स डेवलपमेंट के भरत भूषण ने कहा, "खेतों में बंधुआ मजदूरी करवाने को ऐसे अपराध या समस्या के रूप में नहीं देखा जाता है, जिसकी शिकायत दर्ज करवाई जाये। यह इतना व्यापक है कि इसे सामाजिक स्वीकृति मिल गई है।"
(रिपोर्टिंग- रोली श्रीवास्तव, संपादन- बेलिंडा गोल्डस्मिथ; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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