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फैशन डिजाइनर ने भारत के 'मौज-मस्तीे के राज्यय' में घरेलू गुलामी को उजागर किया

by अनुराधा नागराज | @anuranagaraj | Thomson Reuters Foundation
Monday, 13 November 2017 12:43 GMT

-    अनुराधा नागराज

 

   चेन्नई, 13 नवंबर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - जब भारतीय फैशन डिजाइनर वेन्डेल रॉड्रिक्स अपनी तीसरी किताब लिखने बैठे, तो उनके मन में फ़ैशनेबल कपड़ों का विचार नहीं था।    

       बल्कि वे अपनी पड़ोसी रोसा के बारे में सोच रहे थे, जो एक ऐसी बुजुर्ग महिला है जिसने अपना पूरा जीवन गोद ली हुई बेटी के रूप में बिताया था। उसे पश्चिम भारतीय राज्य गोवा के एक धनी परिवार ने बचपन में ही गोद ले लिया था और परिवार के नाम पर उससे जीवन भर घरेलू दासता करवाई गयी थी।

    रॉड्रिक्स का नया उपन्यास, पॉस्केम: गोवन्‍स इन द शेडोज़, अंतत: 21वीं सदी में दम तोड़ती गोवा की परंपरा में जकड़े चार लोगों की काल्पनिक कहानी है।

    प्रकाशक की टिप्‍पणी में कहा गया है कि रॉड्रिक्स ने गोद लेने की परंपरा की शिकार पिछली पीढ़ी की उस अव्‍यक्‍त दुनिया की गाथा भावी पीढ़ी को बताने के लिये यह उपन्‍यास लिखा है।  

  स्‍वयं गोवा  निवासी लेखक ने इसका वर्णन "तेजी से उभरते राज्य के अंधेरे रहस्य" के रूप में किया है।

    रॉड्रिक्स ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "एक दत्‍तक की तरह रहने की सबसे खराब बात यह थी कि पूरा गांव इन लोगों के बारे में जानता था और उन्हें सम्मान नहीं दिया जाता था।"

      रोसा के वास्तविक जीवन से प्रेरित पुस्तक की नायिका एल्डा को 10 वर्ष की आयु में पता चलता है कि वह घर के अन्‍य बच्चों से अलग है।

    उसके छह "भाई बहन" स्कूल जाते थे, लेकिन वह घर के काम करती थी, वे चीनी मिट्टी के बरतनों में भोजन करते थे और वह रसोईघर में बैठकर नौकरों के साथ खाना खाती थी।

     रॉड्रिक्स ने चेन्नई में किताब के विमोचन के अवसर पर कहा, "पॉस्केम में कौटुम्बिक व्‍यभिचार, लौंडेबाज़ी, दुष्‍कर्म, बहकावा, प्रेम, नफरत, हत्या जैसी कई भावनाएं हैं, लेकिन यह सब असलियत में घटित हुआ था।"

    भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार 40 लाख से अधिक श्रमिक 5 से 14 साल के हैं।  

    रॉड्रिक्स ने कहा कि भारत के शीर्ष पर्यटन स्थलों में से एक- गोवा में आमतौर पर गरीब परिवारों के या नाजायज बच्‍चों को गोद लिया जाता था।

     उन्होंने कहा, "उन्हें परिवार का नाम देकर परिवार में शामिल किया जाता था और वे इस नये परिवार का धर्म भी अपनाते थे, लेकिन उनके साथ परिवार के अन्य भाई-बहनों के समान व्यवहार नहीं किया जाता था।"

      "अक्सर संपत्ति पर उनका कोई अधिकार नहीं होता था और यहां तक ​​कि अपने स्वार्थ के लिये उनकी शादी भी नहीं की जाती थी, ताकि परिवार उनसे आजीवन दासता करवा सकें।"

     रॉड्रिक्स ने कहा कि उनकी मां के परिवार में एक दत्‍तक लिया गया था, लेकिन वह इतना छोटा था कि तब वह इस शब्द का अर्थ भी नहीं जानता था।

      जब वह बीस-बाईस साल का हुआ तब उसे पहली बार इसका अर्थ समझ में आया था और बाद में जब वह गोवा में बस गया और रोसा का पड़ोसी बना, तब उसे इसके बारे में अच्‍छे से पता चला।  

     उन्होंने कहा, "यह पुस्तक उन सभी पुरुषों और महिलाओं से क्षमा याचना है, जिन्होंने 200 साल पुरानी परंपरा में अपना जीवन एक दत्‍तक के रूप में बिताया और जिस पर शायद ही कभी प्रश्‍न उठाये गये हों।"

(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- रोस रसल; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

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