- अनुराधा नागराज और नीता भल्ला
चेन्नई/नई दिल्ली, 4 दिसंबर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - भारत सरकार द्वारा जारी किए गए नए आंकड़ों के अनुसार मानव तस्करी के मामले 2015 की तुलना में 2016 में लगभग 20 प्रतिशत बढ़े हैं, लेकिन कार्यकर्ताओं ने सोमवार को कहा कि वास्तव में मानव तस्करी की घटनाएं इन आंकड़ों से काफी अधिक हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार 2016 में 8,132 मानव तस्करी के मामले दर्ज किये गये, जबकि 2015 में 6,877 मामले थे। इनमें से सबसे अधिक मामले पश्चिम बंगाल में और उसके बाद राजस्थान में दर्ज किये गये थे।
कार्यकर्ताओं ने इसका श्रेय लोगों में बढ़ती जागरूकता और पुलिस प्रशिक्षण को दिया, जिसके परिणामस्वरूप मानव तस्करी रोधी कानूनों को बेहतर ढंग से लागू किया गया।
हालांकि, उनका कहना है कि ये आंकड़े वास्तविकता से कम हैं, क्योंकि कई लोग अभी भी इस अपराध से अनजान हैं या उन्होंने अविश्वास के कारण पुलिस से मदद नहीं ली है।
दासता रोधी धर्मार्थ संस्था- फ्रीडम प्रोजेक्ट की अनीता कनैया ने कहा, "आंकड़ों का यह रूझान काफी हद तक सटीक है। मानव तस्करी के मामले बढ़ रहे हैं और यह सभी हितधारकों के लिए चिंताजनक होना चाहिए।"
"लेकिन मानव तस्करी की संख्या वास्तविकता से परे है। एनसीआरबी की रिपोर्ट में दिये गये आंकड़ों की तुलना में तस्करी के मामले काफी अधिक होंगे।"
संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन और मानवाधिकार समूह- वॉक फ्री फाउंडेशन का कहना है कि पिछले साल लगभग 4 करोड़ लोग आधुनिक गुलामों के रूप में रह रहे थे, जो जबरन मजदूरी या जबरन विवाह के जाल में फंसे हुये थे।
विश्व में दक्षिण एशिया में सबसे तेजी से मानव तस्करी के मामले बढ़ रहे हैं और इसका केंद्र भारत है।
बहुत से पीड़ित गरीब ग्रामीण इलाकों से हैं और तस्कर उन्हें अच्छी नौकरी दिलाने का झांसा देते हैं, लेकिन उनसे या उनके बच्चों से खेतों या ईंट भट्ठों में जबरन काम करवाया जाता है, घरेलू नौकरों के रूप में गुलाम बनाया जाता है या वेश्यालयों में बेच दिया जाता है।
30 नवंबर को जारी एनसीआरबी के आंकड़ों में दर्शाया गया है कि बचाये गये 23,117 पीड़ितों में से 60 प्रतिशत से अधिक बच्चे और 55 प्रतिशत महिलाएं तथा लड़कियां थीं। http://ncrb.nic.in/
45 प्रतिशत पीड़ितों की तस्करी जबरन मजदूरी करवाने के लिये और 33 प्रतिशत की वेश्यावृत्ति तथा बच्चों की अश्लील फिल्म बनाने जैसे यौन शोषण के लिए की गई थी।
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार पीड़ितों की तस्करी घरेलू गुलाम बनाने, जबरन विवाह कराने, भीख मंगवाने, नशीले पदार्थ बेचने और उनके अंग निकालने के लिये भी की गई थी।
तस्करी रोकने के लिये अभियान चलाने वालों का कहना है कि इन आंकड़ों से उनका वह निष्कर्ष पुख्ता हुए हैं कि सबसे अधिक खतरा युवा लड़कियों की तस्करी का है, जो विशेषकर यौन दासता के लिये की जाती है।
धर्मार्थ संस्था- जस्टिस एंड केयर के वकील एड्रियन फिलिप्स ने कहा, "लगभग एक दशक तक किये गये हमारे अध्ययन में हमने पाया कि नाबालिग लड़कियों, खासकर 15 से 18 साल की लड़कियों की अधिक संख्या में तस्करी की गई थी।"
उन्होंने कहा, "वे युवा हैं और इसलिए यौन कारोबार में उनकी बहुत मांग रहती है।"
अभियानकारों का कहना है कि हालांकि हाल के वर्षों में मानव तस्करी रोकने के लिए सरकार ने कई उपाय किये हैं, लेकिन कई पीड़ितों, विशेष रूप से बच्चों को अभी भी न्याय और सहायता नहीं मिल पायी है।
सरकार ने लापता बच्चों को ढ़ूंढ़ने के लिये एक ऑनलाइन प्लेटफार्म शुरू किया है, बांग्लादेश और बहरीन जैसे देशों के साथ मानव तस्करी रोधी द्विपक्षीय समझौते किये हैं और कानून लागू करने वाले अधिकारियों को प्रशिक्षित करने के लिए अधिकारी धर्मार्थ संस्थाओं के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की मानव तस्करी पर देश का पहला व्यापक कानून लाने की भी योजना है, जिसमें मौजूदा कानूनों को सम्मिलित किया जायेगा, बचाये गये लोगों की आवश्यकताओं को प्राथमिकता दी जायेगी और तस्करी के मामलों को तेजी से निपटाने के लिये विशेष अदालतों का प्रावधान होगा।
(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज और नीता भल्ला, लेखन- नीता भल्ला, संपादन- रोस रसल; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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