- अनुराधा नागराज
चेन्नई, 4 दिसंबर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) – एक नये अध्ययन में पाया गया है कि तस्करी कर भारतीय वेश्यालयों में लाई गई लड़कियों के "आत्मबल को तोड़ने" के लिये उनके साथ दुष्कर्म से लेकर बेरहमी से पीटने और उन्हें भूखा रखने जैसे अत्याचार किये जाते हैं, ताकि लड़कियां "किसी को अपने साथ ज्यादती करने से इनकार" ना करें या वहां से भाग ना पायें।
कोलकाता में यौन तस्करी से बचायी गयी बाल पीडि़ताओं की गवाही से देह व्यापार में ढ़केलने से पहले युवा लड़कियों के साथ होने वाली हिंसा के बारे में पता चलता है।
पश्चिम बंगाल सरकार के साथ किये गये अध्ययन के सह- लेखक धर्मार्थ संस्था- इंटरनेशनल जस्टिस मिशन के साजी फिलिप ने कहा, "तस्कर बच्चों के आत्मबल को तोड़ने के लिए 'अनुकूलन अवधि' की रणनीति का प्रयोग कर रहे हैं।''
"बचाये गये पीडि़तों में से 55 प्रतिशत बच्चों को कई वस्तुओं से पीटा गया था और कुछ बच्चों के सामने अन्य नाबालिगों की हत्या की गई थी। ये बेहद हिंसक और क्रूर तरीके हैं।"
कोलकाता में बच्चों के व्यावसायिक यौन शोषण के प्रचलन पर तैयार की गई रिपोर्ट में पाया गया कि बचायी गयी आधे से ज्यादा पीडि़ताओं को आत्मबल तोड़ने की अवधि से गुजरना पड़ा था। इस दौरान उनके साथ पहले ग्राहक ने दुष्कर्म किया, उन्हें धमकियां दी गईं और उनके साथ शारीरिक हिंसा की गई थी।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2016 में दर्ज किये मानव तस्करी के मामलों मे से 44 प्रतिशत मामले पश्चिम बंगाल में दर्ज किये गये थे, जिसकी राजधानी कोलकाता है। सबसे अधिक लापता बच्चों की शिकायतें भी यहीं दर्ज की गई थीं।
बचाये गये लोगों के साथ बातचीत के आधार पर शोधकर्ताओं ने कहा कि कुछ लोगों को दो सप्ताह से अधिक पीटा गया और सिगरेटों से जलाया गया था, कुछ लोगों को अकेले रखा गया था, जबकि एक पीडि़ता को 12 दिन बगैर भोजन के एक कमरे में बंद रखा गया था।
पिछले सप्ताह प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि अनुकूलन अवधि के अलावा प्रबंधकों ने ऋण बंधन का इस्तेमाल कर पीडि़ताओं को देह व्यापार करने के लिये मजबूर किया था।
प्रबंधकों ने लगभग आधी पीडि़ताओं के बारे में बताया कि उन्हें बेचा गया था और जब तक वे अपना कर्ज नहीं चुका देतीं तब तक उन्हें छोड़ा नहीं जायेगा।
कईयों को अच्छी नौकरी दिलवाने का झांसा दिया गया था और उन्हें बताया गया था कि देह व्यापार में ढ़केलने से पहले एक महीने के लिये उन्हें जिस घर में रखा गया था उन्हें उसके मालिक को उनके रहने, भोजन और कपड़ों का खर्च चुकाना होगा।
पीडि़ताओं ने बताया कि एक बार उनका "आत्मबल टूटने पर" उन्हें एक दिन में सात से 18 ग्राहकों को अपनी सेवाएं देनी पड़ती थीं।
रिपोर्ट के लिए बात की गई पश्चिम बंगाल की एक किशोरी ने कहा, "प्रबंधकों का कहना था कि ग्राहक के खिलाफ कभी नहीं जाना- अपने दर्द की परवाह किये बगैर उन्हें मौज करने देना।"
"अगर वे खुश होंगे, तो वे अधिक पैसा देंगे।"
(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- रोस रसल; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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