- अनुराधा नागराज
चेन्नई, 6 दिसंबर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) – कार्यकर्ताओं ने बुधवार को कहा कि भारत के एक ईंट भट्ठे में बंदी बनाकर रखे गये दो नन्हें बच्चों को बचाने से ऋण बंधन के व्यापक प्रचलन का खुलासा हुआ है, क्योंकि उन बच्चों को इसलिये बंदी बनाया गया था कि कर्ज चुकाने के लिए उनकी मां काम पर लौटे।
तमिलनाडु के अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने एक और तीन साल के दो लड़कों को मंगलवार को उनकी मां भवानी कुमारी को सौंप दिये हैं और पुलिस थाने में भट्ठा मालिक के खिलाफ बंधुआ मजदूरी का मामला दर्ज करवाया है।
जिला आधिकारी ई. सेल्वाराजू ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "बच्चों को जबरन उनकी मां से छीना गया था।"
"भट्ठे का पर्यवेक्षक यह सुनिश्चित करना चाहता था कि उन बच्चों की मां अपने गांव से वापस लौटे और अपने 15,000 रुपये के ऋण को चुकाने के लिए काम करती रहे।
भारत में 1976 से बंधुआ मजदूरी प्रतिबंधित है, लेकिन यह अभी भी व्यापक स्तर पर प्रचलित है और वंचित समुदायों के लाखों लोग अपने मालिक या साहूकारों का कर्ज चुकाने के लिए मजदूरी करते हैं।
कार्यकर्ताओं का कहना है कि जब बच्चों के माता-पिता किसी शादी या अंतिम संस्कार के लिए अपने घर जाते हैं तो उस समय नियोक्ता अक्सर उनके बच्चों को जमानत के रूप में अपने पास रखते हैं।
इन बच्चों को बचाने वाली चेय्यार बंधुआ मजदूर निगरानी समिति के सदस्य सर्वानन राजेंद्रन ने कहा, "ऋण बंधन में फंसे परिवारों को कभी भी एकसाथ छुट्टी नहीं दी जाती है।"
"किसी न किसी को हमेशा भट्ठों में बंदी रखा जाता है और अक्सर यह बच्चे होते हैं। यह सुनिश्चित करने का एक तरीका है कि मजदूर वापस काम पर आयें।"
उन्होंने कहा कि कुमारी और उसके पति को 1,000 ईंटें बनाने पर 600 रुपये मिलते थे और दो साल से उन्हें अपने घर नहीं जाने दिया गया था। कुमारी का पति पिछले एक महीने से लापता है।
अधिकारियों को दिये एक बयान में कुमारी ने बताया कि वह अपने परिवार का पेट पालने के लिए पर्याप्त कमाई नहीं कर पाती थी, क्योंकि वह निर्धारित संख्या में ईंटें बना ही नहीं पाती थी।
बयान में कहा गया है कि वह अपने पति को तलाशने और अपने ससुराल वालों से कुछ पैसे उधार लेने के लिए घर गयी थी, लेकिन मोटरसाइकिल पर आये दो लोगों ने उसका रास्ता रोका और उसके हाथों से बच्चों को छीन लिया था।
गुलामी रोधी संगठन- इंटरनेशनल जस्टिस मिशन के अनुसार तमिलनाडु के 11 उद्योगों में मज़दूरी करने वाले लगभग पांच लाख श्रमिक ऋण बंधन में जकड़े हुए हैं, जिनमें से ज्यादातर मजदूर ईंट भट्ठों में काम कर रहे हैं।
(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- केटी मिगिरो; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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