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ताजमहल की नगरी से तीन रोहिंग्याे परिवारों को गुलामी से छुड़ाया

Monday, 18 December 2017 10:30 GMT

-    रोली श्रीवास्तव

मुंबई, 18 दिसंबर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)– अधिकारियों ने कहा कि सप्‍ताहांत में उत्तर भारतीय शहर आगरा में म्यांमार के तीन रोहिंग्‍या परिवारों के 13 सदस्‍यों को गुलामी के जाल से छुड़ाया गया। इन परिवारों से पिछले एक साल से कबाड़ी का काम करवाया जा रहा था। 

अधिकारियों को सतर्क करने वाले कार्यकर्ताओं के अनुसार बांग्लादेश के एक शरणार्थी शिविर में एक एजेंट इन तीन परिवारों को अच्‍छी नौकरी दिलाने का वादा कर भारत लाया था, लेकिन  यहां वे बगैर वेतन के कई घंटें काम करते थे। 

संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि बांग्लादेश के शरणार्थी शिविर मानव तस्करों के लिए अनुकूल क्षेत्र हैं और हाल ही में म्यांमार से बड़े पैमाने पर लोगों के इन शिविरों में आने से मानव तस्‍करी का खतरा और बढ़ गया है।

बचाव कार्रवाई में शामिल राष्ट्रीय बंधुआ श्रम उन्मूलन अभियान समिति के संयोजक निर्मल गोराणा ने कहा, "नियोक्ताओं ने इन एजेंटों को धनराशि दी थी और इन श्रमिकों को मजदूरी नहीं दी जाती थी तथा उन्‍हें कहा गया था कि जो धनराशि एजेंट को दी गई है उसके एवज में उनसे काम करवाया जा रहा है।"

"वे यह सोच कर भारत आए थे कि उन्हें नौकरी और सुरक्षा मिल जाएगी, लेकिन यहां वे पॉलिथीन की झोपड़ी में रहते थे और इसका किराया भी उनकी कथित वेतन से काटा जा रहा था।"

अधिकारियों ने कहा कि पुलिस ने नियोक्ताओं के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं किया है। हालांकि जांच चल रही है, लेकिन उन्‍होंने शरणार्थियों को गुलाम बनाने की खबर की पुष्टि की है।

आगरा के न्यायिक मजिस्ट्रेट राजू कुमार ने कहा, "ये लोग कूड़े  के ढ़ेर से प्लास्टिक की बोतलें चुनते थे। जब हम उन्हें बचाने गए उस समय वे अत्‍यंत दयनीय स्थिति में थे।"

लगभग 8,70,000 रोहिंग्या बांग्लादेश पलायन कर चुके हैं। इनमें वे 6,60,000 लोग भी शामिल हैं, जो रोहिंग्या उग्रवादियों द्वारा सुरक्षा चौकियों पर हमला किये जाने पर म्यांमार सेना की जवाबी कार्रवाई के चलते 25 अगस्त के बाद यहां पंहुचे हैं।

लेकिन भारत में उनके आने का सिलसिला कई साल पहले से शुरू हो गया था। म्यांमार से भाग कर आये लगभग 40,000  रोहिंग्या मुसलमान पिछले दशक से भारत में रह रहे हैं।

अधिकारियों का कहना है कि ताजमहल की नगरी आगरा में घनी आबादी है और स्थानीय लोगों के बीच शरणार्थियों को पहचानना मुश्किल है।

कार्यकर्ताओं ने भारत में रह रहे रोहिंग्या परिवारों का सर्वेक्षण कराने का आग्रह किया है, ताकि पता चल सके कि ऐसी परिस्थितियों में क्या और लोग भी फंसे हुये हैं और इनके मामलों में भी देश के बंधुआ श्रम रोधी कानून लागू करने की भी मांग की है।

(रिपोर्टिंग- रोली श्रीवास्‍तव, संपादन- बेलिंडा गोल्‍डस्मिथ; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

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